अब वो बीते ज़माने की बात हो गई है, जब लड़कियों को लक्ष्मी की उपमा दे कर घर की चार दीवारी में क़ैद कर लिया जाता था. आज लड़कियां नीले आसमान में उड़ने के साथ ही पहाड़ों की ऊंचाई माप रही है. आज हम आपको एक ऐसी ही लड़की की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने तमाम बाधाओं को पार करते हुए अपनी किस्मत ख़ुद लिखी. सिक्किम की रहने वाली अपराजिता बचपन से ही पढ़ने में तेज़ थीं. अपराजिता 8 साल की हुई ही थीं कि उनके पिता का देहांत हो गया. इसके बाद तो परिवार पर जैसे विपदाओं का पहाड़ टूट पड़ा, आर्थिक तंगी ने परिवार की कमर तोड़ कर रख दी.

इन हालातों में भी अपराजिता ने सपने देखना नहीं छोड़ा और उस सपने को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करने लगी. इसी मेहनत का परिणाम था कि 12वीं में अपराजिता के 95% मार्क्स आये और वो स्टेट की टॉपर रहीं.

समाज सेवा के रुझान के चलते अपराजिता ने पश्चिम बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई की. यहां पढ़ाई के साथ-साथ अपराजिता यूपीएससी के लिए तैयारी भी करने लगी. अपने पहले ही प्रयास में अपराजिता ने यूपीएससी में 768वीं रैंक हासिल की, पर अपराजिता इससे संतुष्ट नहीं थी. 2011 में उन्होंने दोबारा यूपीएससी की परीक्षा दी, जिसमें उनकी 358वीं रैंक आई. इसी के साथ वो यूपीएससी की परीक्षा में सिक्किम में सबसे ज़्यादा अंक पाने वाली महिला बन गईं.

28 साल की उम्र में ही अपराजिता सिक्किम की पहली आईपीएस ऑफ़िसर बन गईं. फ़िलहाल अपराजिता पश्चिम बंगाल में अपनी सेवाएं दे रही हैं और अपने कामों की वजह से अकसर सुर्ख़ियों में बनी रहती हैं.

अपराजिता की कहानी न सिर्फ़ रूढ़िवादी सोच को तोड़ती हुई दिखाई देती है, बल्कि इसके साथ ही कहती है कि अगर उड़ने की चाहत हो, तो ज़मीन भी आपको आसमान लगने लगती है.