हम सबको वतन से मोहब्बत होती है और हम अपने-अपने तरीके से सेवा करते हैं, इसकी रक्षा सुनिश्चित करते हैं. हम में से कुछ लोगों के लिए देश, अपने और अपने परिवार से बढ़कर होता है. सबकुछ त्याग कर ये लोग सेना में भर्ती होते हैं.
मेरे तायाजी अब भी मुझ से कहते हैं कि जब मेरे भाई ने पहली बार मुझे गोद में लिया था, वो सातवें आसमान पर थे, किसी ने उन्हें कभी उतना ख़ुश नही देखा था. वो हमेशा एक छोटी बहन चाहते थे और मुझे वो सबसे ज़्यादा प्यार करते थे.
कैप्टन जी.एस.सुरी अपनी बहन को प्यार से ‘सिल्की’ बुलाते थे. सिल्की ने आगे बताया कि वो उसके तायाजी के बेटे थे और सिल्की के साथ खेलते हुए कभी बोर नहीं होते थे.
भैया पढ़ाई में बहुत अच्छे थे- तायाजी चाहते थे कि वो डॉक्टर बने. लेकिन भैया के इरादे पक्के थे- वो सेना में भर्ती होना चाहते थे और देश सेवा करना चाहते थे, ठीक अपने पिता और दादा की तरह. उन्होंने UPSC की परीक्षा पास की, मिलिट्री ट्रेनिंग पूरी की और 1997 में लेफ़्टिनेंट बन गये.
सिल्की को अब भी याद है, अपने भैया को परेड लीड करते हुए देखना. सिल्की को क्राउड में देखकर वो बहुत ख़ुश हुए. उन्होंने सिल्की को अपने सभी दोस्तों से मिलाया.
ये मेरी छोटी बहन है जो मुझे पोस्टकार्ड्स भेजती है. मैं पोस्टकार्ड्स पर कुछ शब्द लिखकर भेजती, और वो उन्हें काफ़ी संभाल कर रखते. हम दोनों की उम्र में काफ़ी फ़र्क था और क्योंकि मैं छोटी थी इसलिए मैं काफ़ी कुछ एक्सप्रेस नहीं कर पाती थी पर मैं उनसे बहुत प्यार करती थी.
सिल्की अपने भैया कि चिट्ठियों को इंतज़ार करती और उनके राखी पर घर न पहुंचने पर रोती थी.
मेरे जन्मदिन से 3 दिन पहले की बात है, मैं उनके फ़ोन का इंतज़ार कर रही थी. लेकिन एक आर्मी अफ़सर का फ़ोन आया- भैया को ग्रेनेड लगी थी और वो बुरी तरह घायल हो गये थे. तायाजी फूट-फूटकर रोने लगे. अगले दिन हमें ख़बर मिली की भैया देश के लिए लड़ते हुए शहीद हो गये हैं.
उनकी चीज़ें वापस आईं- एल्बम्स, यूनिफ़ॉर्म, कड़. हर एल्बम में पहली तस्वीर मेरी थी. जब वो घर नहीं आ पाते थे तब वो मेरी तस्वीरें मंगवाते थे और उन्होंने सभी तस्वीरें संभालकर रखी थीं.
अगले कुछ महीनों तक सिल्की स्कूल नहीं गई. सिल्की को इससे उबरने में सालभर से ज़्यादा लगा, वो ये मान ही नहीं पा रही थीं कि वो अपने भैया को कभी नहीं देखेगी.
मेरे भैया सिर्फ़ 25 के थे जब उन्होंने मातृभूमि के लिए हम सब के लिए क़ुर्बानी दी. उन्हें महावीर चक्र मिला, पर कोई अवॉर्ड उन्हें वापस नहीं ला सकता था.
कैप्टन सूरी की शहादत के बाद उनके भाई ने अपनी कॉरपोरेट की नौकरी छोड़ दी और उनकी जगह ली.
भैया भारतीय सेना में अभी लेफ़्टिनेंट कर्नल हैं. मैं उनसे हफ़्ते में 2 से 3 बार बात करती हूं. जैसलमेर सैंडस्ट्रॉम के दौरान मेरी उनसे बात नहीं हो पाई, मैं बहुत ज़्यादा डर गई थी. जब मेरी उनसे बात हुई, मैंने उनको लौट आने को बोला पर उन्होंने कहा कि वो ठीक हैं और वो उनका कर्तव्य है.
मैं जब भी किसी सैनिक की क़ुर्बानी की ख़बर सुनती हूं, मैं सहम जाती हूं. लेकिन आर्मी फ़ैमिली होने की वजह से मुझे पता है कि क्या होने वाला है- हमारे जवानों के लिए देश पहले आता है.
कहानी कैसी लगी कमेंट बॉक्स में बताइए.