सोशल मीडिया का हमारी ज़िन्दगी में बहुत गहरा असर है. हमारे दिन की शुरुआत से लेकर अंत तक हर चीज़ इससे जुड़ी है. आज की तारीख में लोग इसके इतने आदी हो चुके हैं कि आप का हाल-ए-दिल कोई भी आपकी फेसबुक फ़ीड या टाइमलाइन से पता लगा सकता है. सिर्फ़ Facebook ही नहीं, Twitter, YouTube और भी तमाम वेबसाइट हैं जहां लोग वक्त गुज़ारना पसंद करते हैं. सोशल मीडिया ने नाम के साथ बदनामी भी खूब कमाई है.
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मां बाप का कहना है कि बच्चा सोशल मीडिया से बर्बाद होता है. कई अफ़वाहों के लिए सोशल मीडिया ज़िम्मेदार है पर सोशल मीडिया कई बार आपके अकेलेपन का साथी भी बन जाता है. ये वो दोस्त बन जाता है जिसकी आपको अपने बुरे वक्त में सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. इंटरनेट कुछ अच्छे उदाहरण देता रहता है जिससे हमें ये विश्वास होता है कि ये लोगों के साथ, उनके बुरे वक्त में भी खड़ा है.
क्या आपने Google का ये फीचर देखा है!
कभी Google पर Suicide लिखिए, तो देखिए क्या होता है. वो आपको तरीके बताने से पहले मदद के लिए हेल्पलाइन नंबर देता है.
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जब सोशल मीडिया बना Counselor और बच गई एक बच्चे की जान
लोगों के लिए आत्महत्या करना बेहद आसान तरीका बन जाता है. खासतौर से उस वक्त, जब वो हर तरफ़ से हार देखने लगते हैं. तब सारी तकलीफ़ों का एक ही समाधान नज़र आता है, आत्महत्या. अकसर लोग चुपचाप आत्महत्या कर लेते हैं लेकिन एक 12वीं के बच्चे ने आत्महत्या करने से पहले कुछ लोगों से सोशल मीडिया के ज़रिए बात की और उसका मन बदल गया.
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12वीं के इस बच्चे ने Quora पर एक सवाल पूछा. Quora एक सवाल जवाब का आॅनलाइन प्लैटफ़ॉर्म है जिस पर आप अपने सवालों के जवाब कई लोगें से पा सकते हैं. इस लड़के ने लिखा कि ‘मैं एक ड्रॉपर हूं, इस साल मैं JEE Advance पास नहीं कर सका (101/360). मैं ये सब अपने पापा को नहीं बता सकता. मैं अब क्या करूं, क्या आत्महत्या ही समाधान है.’
इस सवाल पर कई लोगों की प्रतिक्रिया आई, पर एक जवाब ने इस छात्र को एक नहीं उम्मीद दे दी.
इस छात्र को इसी के जैसी परिस्थिति में रह चुके दूसरे व्यक्ति ने अपनी बात बताई और लिखा-
Hi Dude,
मैं तुम्हें अपनी कहानी बताता हूं.
8वीं तक मैं एक पढ़ाकू छात्र था. क्लास के टॉपर्स में रहता था. 9वीं क्लास में आने के बाद मेरे कई दोस्त दूसरे स्कूल या सेक्शन में चले गए. क्लास के दूसरे बच्चों के साथ तब मेरी बनती नहीं थी, पढ़ाई में भी मन नहीं लगता था. मैने किसी तरह 64% पर अपनी 10वीं कक्षा पास की.
12वीं के इम्तिहान तक मैं रात 12 बजे तक पढ़ता था और सुबह 3 बजे उठ जाता था. मेरे घर पर दिन में काफ़ी शोर होता था, इसलिए मैं रात में पढ़ता था. देर तक पढ़ने की वजह और बोर्ड्स की टेंशन की वजह से मैं बीमार पड़ गया. किसी तरह मैंने 12वीं के इम्तिहान दिए और पास हुआ. CET Entrance में मेरे 140/200 आए थे, लेकिन PCM में 49.3% की वजह से मैं इंजीनियरिंग नहीं कर सका. मुझे ये अपने पापा को बताना पड़ा पर वो मेरे साथ खड़े थे.
उन्होंने मुझे B.sc करने की सलाह दी. मेरे कम नंबर की वजह से मेरे पापा मैनेजमेंट कोटा में ज़्यादा पैसे देने पड़े. मुझे ये बात बुरी लगी और खुद पर गुस्सा था आया. यहां पर भी मेरे साथ वही हुआ जो स्कूल में था. मेरा कोई खास दोस्त नहीं था. मैं पढ़ाई पर ध्यान देता था पर मेरा मन नहीं लगता था. इस वजह से मैं फ़ेल हो गया. मेरी उस वक्त वहीं कंडीशन थी जो तेरी है आज. मैं कमरे से बाहर नहीं निकल रहा था. मैं भी यहीं सोच रहा था कि पापा से ये कैसे बताऊं. शाम को जब पापा घर आए तो उन्होंने मेरा रिज़ल्ट देखा और उस समय भी धैर्य से काम लिया और मुझसे बात की.
उन्होंने मुझसे कहा, ‘तुम फ़ेल हुए हो, पर तम्हारे हाथ-पैर सलामत हैं. दिमाग वही है, तुम मेरे साथ मेरे बिज़नेस में आ सकते हो, कॉमर्स ले लो और चाहो तो अपना दिमाग मेरे बिज़नेस में लगाओ. तुम्हें अपने आप में नुकसान पहुंचा कर कुछ नहीं मिलेगा, अपने आप को सज़ा न दो और न ही ऐसे चुप रहो. उन्होंने मुझसे जो कहा वो मैं आज तक नहीं भूल सकता ‘कोई भी परिस्थिति तुमसे बड़ी नहीं होती. तुम परिस्थिति से बड़े हो. ये परिस्थिति सिर्फ़ तुम्हें ये हार का स्वाद याद रखने के लिए आती है जब आप अपने मुकाम को हासिल कर लेते हैं.
हम जैसे बड़े होते हैं, हमारे माता-पिता भी बड़े होते हैं. वो भी बहुत कुछ सीखते हैं. सोचो अगर उन्हें भी तुम्हारे जैसा डर होता वो शायद वो कभी तुम्हें घर से निकलने नहीं देते. कभी साइकिल नहीं चलाने देते. तुम्हें भी बड़े होते हुए ये ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए और अपने पिता को ये अफ़सोस नहीं करानी चाहिए कि उन्होंने तुम्हें क्यों पढ़ाया.
मैं दोबारा पढ़ने लग गया पर इस बार मेरे मन में डर नहीं था. मैंने अपनी स्ट्रीम नहीं बदली. मैं सकारात्मक सोच से साथ पढ़ता गया. मैंने देखा कि मुझमें एक्ज़ाम का डर है. मैं इस पर काम करने लगा. मुझमें आत्मविश्वास की कमी थी, मैं लोगों से मिलने से डरता था इसलिए मैंने लोगों को जानने की कोशिश की और BPO में नौकरी करने लगा. मैंने 3 महीने BPO में काम किया वहां दोस्त बनाए. मैं दिनभर 500 कॉल करता था जो काफ़ी फ्रस्टेटिंग होता था. इन्में से 50 ही लोग जवाब देते थे बाकी तो बिना बात सुने रख देते थे. उससे मैंने बहुत कुछ सीखा.
मैं अपने एक्ज़ाम में अच्छे नंबर लाया. इसके बाद मैने M.sc भी की. मेरे अच्छे नंबर आने लगे. मेरा Aggregate 60% आया जो कि बहुत अच्छा था. मैं पहला छात्र था जिसका कैंपस प्लेसमेंट हुआ था. 300 छात्रों में 3 ही को आॅफ़र लेटर मिला था. ये कोमा से बाहर आने जैसा था. मैं बहुत खुश था, मुझे अच्छा पैकेज मिल रहा था. इससे ज़्यादा मैं अपने पापा के लिए खुश था. मुझे अपने पापा के चेहरे की खुशी याद है.
कुछ दिन बाद मुझे दोबारा झटका लगा.
मैं अच्छी नौकरी कर रहा था. मेरा परिवार मुझ पर निर्भर था. ऐसे में मेरी नौकरी चली गई. पर ऐसे में मुझे अपने पापा की वो बात याद थी कि ‘कोई परिस्थिति आपसे बड़ी नहीं होती.’ मैंने अपने पापा से ये बात बताई और एक बार फ़िर वो मेरे साथ खड़े थे. उन्होंने कहा कि, ‘तुम एक बार जीत चुके हो, तुम एक बार फ़िर जीतोगे. टेंशन लेने से कुछ नहीं होगा क्योंकि तुम्हें ज़िम्मेंदारी का एहसास है और तुम उसे समझते हो.
अगर तुम खुदगर्ज़ लोगों में से हो जिन्हें परिवार की परवाह नहीं है और आत्महत्या करना चालते हो, तो एक बार सोचो कि ये 2-3 साल की नाकामयाबी तुम्हें मंज़ूर है या तुम खुदगर्ज़ की तरह माता-पिता की 23-24 साल की मेहनत को दर्द में बदल कर चले जाना चाहते हो.
गुड लक दोस्त, उम्मीद है तुम सही फ़ैसला लोगे.
खराब परिस्थिती में एक सलाह आपकी सोच बदल सकती है और आपको एक अच्छा और बेहतर नज़रिया मिल सकता है. ये सलाह आपके करीबी से मिल सकती है या सोशल मीडिया पर किसी अजनबी से भी.