30 मई 1826 को युगल किशोर शुक्ल ने ‘हिन्दुस्तानियों के लिए’ विश्व का पहला हिन्दी समाचार पत्र प्रकाशित किया. हालांकि आर्थिक अभावों के कारण ये अख़बार ज़्यादा दिन तक नहीं चला पर युगल किशोर शुक्ल ने हिन्दी पत्रकारिता की जो लौ जलाई, वो आज भी निरंतर जल रही है.
1850 से 1857 के बीच हिन्दी में ‘बनारस अख़बार’, ‘सुधाकर तत्व बोधिनी’, ‘पत्रिका’ जैसे कई अख़बार प्रकाशित हुए. 1900 में हिन्दी की पहली पत्रिका, ‘सरस्वती’ का प्रकाशन इलाहाबाद से चिंतामणि घोष ने शुरू किया. 1903 से 1920 तक महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसका संपादनकार्य किया और उस दौरान हिंदी पत्रकारिता को नए आयाम मिले.
1) महावीर प्रसाद द्विवेदी
महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के आधुनिककाल के लेखक थे. हिन्दी साहित्य का ‘द्विवेदी युग’ उन्हीं के नाम पर रखा गया है. रेलवे की 200 रुपए प्रतिमाह की नौकरी को ठोकर मारकर उन्होंने सरस्वती का संपादक बनना स्वीकार किया, जहां उन्हें 20 रुपए की तनख़्वाह मिलती थी. अपने लेखकों को उन्होंने तर्कसंगत लेखन, स्पष्ट और सरल भाषा में बात करने आदि के निर्देश दे रखे थे. उन्होंने अपने पाठकों का समसामयिक, वैज्ञानिक, सामाजिक, राजनैतिक विषयों में भी ज्ञानवर्धन किया.
2) गणेश शंकर विद्यार्थी
गणेश शंकर विद्यार्थी, एक ऐसे निर्भीक पत्रकार थे जो अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ अपने लेखों के द्वारा ज़हर उगलते थे. अपने पाठकों में वे देशभक्ति और ग़ुलामी की ज़ंजीरें तोड़ने की भावना जगाते. निर्भीक विचारों के कारण उन्हें कई नौकरियां छोड़नी पड़ीं. उनके लेख, ‘हितवादी’, ‘कर्मयोगी’, ‘अभ्युदय’ पत्रिकाओं में छपते थे. उन्होंने महावीर प्रसाद द्विवेदी के साथ सहायक संपादक के रूप में काम किया. 1913 में उन्होंने कानपुर से ‘प्रताप’ नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया. ये पत्रिका और गणेश शंकर अंग्रेज़ों की आंखों में चढ़ गए थे और अपने लेखों के कारण वे कई बार जेल भी गए.
4) रामधारी सिंह दिनकर
राष्ट्रकवि दिनकर, कवि ही नहीं, पत्रकार भी थे. आज़ादी से पहले वे कई अख़बार और पत्रिकाओं में लिखते थे. आज़ादी के बाद उन्हें प्रचार विभाग का डिप्टी डायरेक्टर बनाया गया. निर्भीक पत्रकारिता के कारण कई बार उनकी नौकरी जाते-जाते बची थी. देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का साक्षात्कार लेने के दौरान भी कुछ विवाद हुआ था और उनकी नौकरी पर बन आई थी पर उन्होंने इसकी भी परवाह नहीं की.
5) धर्मवीर भारती
धर्मवीर भारती ने ‘धर्मयुग’ की स्थापना की और 1 दशक से भी ज़्यादा समय तक उसे शीर्ष पर बनाए रखा. इस पत्रिका के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व दे दिया.
6) विष्णु पराड़कर
‘आज’ अख़बार विष्णु पराड़कर की वजह से ही जाना जाता है. आज का प्रकाशन 1920 में शुरू हुआ. कुछ लोग इन्हें हिंदी पत्रकारिता का ‘भीष्म पितामह’ भी कहते हैं. आज़ादी के लड़ाई में उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को एक शस्त्र के रूप में इस्तेमाल किया. वे सहज-सरल शब्दों में आम जनता तक अपनी बात पहुंचाते थे.
7) आर.के.लक्ष्मण
आर.के.लक्ष्मण के कार्टून कई पत्रकारों के शब्दों से ज़्यादा ज़ोर से बोलते थे. उनके कार्टून्स से आम जनता ख़ुद को आसानी से जोड़ लेती थी. उनके कार्टून कई गंभीर मुद्दे उठाते और कड़े सवाल करते. उनके कार्टून्स का ज़ोर ऐसा था कि लोग अपनी समस्याएं लेकर उनके पास आते थे. वे बिना डरे सत्तापक्ष की ग़लतियां दिखाने वाले कार्टून बनाते.
8) राहुल देव
राहुल देव, टीवी मीडिया का एक जाना-माना चेहरा हैं. हिंदी पत्रकारिता के गिरते मूल्यों में कुछ पत्रकारों ने इसकी साख बचाकर रखी है, उन्हीं में से एक हैं राहुल देव. 30 सालों से भी अधिक समय तक वे हिंदी पत्रकारिता में रहे हैं और आज भी हैं. उन्होंने ‘आज तक’ पर भी एंकरिंग की. उनकी भाषा बेहद सरल और संजीदा है. वे कड़वी बात भी बहुत मीठे ढंग से करते हैं.
9) ओम थानवी
ओम थानवी ने पत्रिका समूह के साप्ताहिक पत्र ‘इतवारी’ से पत्रकारिता की शुरुआत की. वे इसके संपादक भी बने. 1989 से 2015 तक वे एक्सप्रेस ग्रुप के समाचार-पत्र ‘जनसत्ता’ के संपादक रहे. संपादक के रूप में जनसत्ता को उन्होंने अलग आयाम तक पहुंचाया. जनसत्ता के आलोचनात्मक लेख पत्रकारिता विद्यार्थियों के लिए किसी क्लास-नोट्स से कम नहीं थे.
10) मृणाल पांडे
भारतीय पत्रकारिता का एक ऐसा नाम जिनके लिए शब्द कम पड़ जाते हैं. वे जानी-मानी लेखिका शिवानी की बेटी हैं. मृणाल शब्दों को अलग मायने देती हैं. उन्होंने दूरदर्शन, स्टार न्यूज़ और ‘हिन्दुस्तान समूह’ के साथ काम किया है.
11) सलमा सुल्तान
गुलाब लगाकर न्यूज़ पढ़ने वाली न्यूज़ एंकर… इंदिरा गांधी की मृत्यु की ख़बर देने वाली वो पहली एंकर थीं. उन्होंने दूरदर्शन के एंकर के रूप में 1967 से 1997 तक काम किया. इसके बाद उन्होंने दूरदर्शन के शोज़ निर्देशित किए. आज भी दर्शकों को ये गुलाब के फूल वाली एंकर और सलमा की आवाज़ याद है.