कक्षा 7वीं या 8ठीं में पढ़ी थी एक बेहद संवेदनशील कविता, ‘यह दंतुरित मुस्कान’. किताब में कविता के अलावा, एक कोने में लेखक का छोटा सा परिचय भी छपा होता था, उसी में पहली बार ‘जनकवि’ के बारे में जाना.

लाइब्रेरी खंगाल डाली और बाबा की एक पुस्तक मिली. पढ़ने की कोशिश की और शब्द इतने सरल की समझ आने लगे. उसी में पहली बार ‘बोफ़ोर्स’ आदि शब्दों के बारे में पता चला. ये था बाबा से मेरा पहला परिचय. इतने सरल शब्दों में भी लिखा जा सकता है, ये बाबा को पढ़कर समझ सकते हैं.

E-mithila

बाबा नागार्जुन का असल नाम था वैद्यनाथ मिश्र. शुरुआती दिनों में वो ‘यात्री’ उपनाम से लिखते थे. वो कविताएं लिखने के साथ ही कहानियां और उपन्यास भी लिखते थे.

वैद्यनाथ मिश्र का जन्म 30 जून 1911 को हुआ. कहां हुआ इस पर इंटरनेट की अलग-अलग वेबसाइट्स पर एक मतांतर मिला. कहीं दरभंगा तो कहीं मधुबनी को इनकी जन्मस्थली बताया गया है. लेकिन इतना तय है कि मिथिला की धरती के पुत्र हैं वैद्यनाथ.

Divya Narmada

बचपन में उन्हें राहुल सांकृत्यायन की ‘संयुक्त निकाय’ पढ़ने का मौका मिला. इसे पढ़कर उन्हें इस किताब को मूल भाषा में पढ़ने की इच्छा हुई और वो श्री लंका के एक मठ में पाली सीखने चले गए. बौद्ध मठ में बौद्ध धर्म में दीक्षित होने के बाद वैद्यनाथ ‘नागार्जुन’ बन गए. लोग उनकी कविताओं से काफ़ी प्रभावित थे इसलिए उन्हें बाबा बुलाने लगे.

जनकवि होने के बावजूद नागार्जुन के अंतिम दिन अभाव और कष्ट में ही बीते. 4 नवंबर, 1998 को इस कालजयी कवि ने दुनिया को अलविदा कह दिया.

आज पढ़िए बाबा की कुछ ज़मीन से जुड़ी तो कुछ सत्ता पर प्रहार करती कविताएं- 

1. गुलाबी चूड़ियां

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,

सात साल की बच्ची का पिता तो है!

सामने गियर से ऊपर

हुक से लटका रक्खी हैं

कांच की चार चूड़ियां गुलाबी

बस की रफ़्तार के मुताबिक

हिलती रहती हैं…

झुककर मैंने पूछ लिया

खा गया मानो झटका

अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा

आहिस्ते से बोला: हां सा’ब

लाख कहता हूं नहीं मानती मुनिया

टांगे हुए है कई दिनों से

अपनी अमानत

यहां अब्बा की नज़रों के सामने

मैं भी सोचता हूं

क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियां

किस जुर्म पे हटा दूं इनको यहां से?

और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा

और मैंने एक नज़र उसे देखा

छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आंखों में

तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर

और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर

और मैंने झुककर कहा –

हां भाई, मैं भी पिता हूं

वो तो बस यूं ही पूछ लिया आपसे

वरना किसे नहीं भांएगी?

नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियां!

2. मेरी भी आभा है इसमें

नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है

यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है

मेरी भी आभा है इसमें.

भीनी-भीनी खुशबूवाले

रंग-बिरंगे

यह जो इतने फूल खिले हैं

कल इनको मेरे प्राणों मे नहलाया था

कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था.

पकी सुनहली फसलों से जो

अबकी यह खलिहाल भर गया

मेरी रग-रग के शोणित की बूंदें इसमें मुसकाती हैं.

नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है

यह विशाल भूखंड आज जो चमक रहा है.

The Darbhanga Express

3. शासन की बंदूक

खड़ी हो गई चांपकर कंकालों की हूक

नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक

उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक

जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक

बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक

धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक

सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक

जहां-तहां दगने लगी शासन की बंदूक

जली ठूंठ पर बैठकर गई कोकिला कूक

बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक

4. बाकी बच गया अण्डा

पांच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूंखार

गोली खाकर एक मर गया, बाक़ी रह गए चार

चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन

देश-निकाला मिला एक को, बाक़ी रह गए तीन

तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो

अलग हो गया उधर एक, अब बाक़ी बच गए दो

दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक

चिपक गया है एक गद्दी से, बाक़ी बच गया एक

एक पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झण्डा

पुलिस पकड कर जेल ले गई, बाकी बच गया अण्डा

Stree Kaal

5. अकाल और उसके बाद

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास

कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास

कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त

कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त.

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद

धुआं उठा आंगन से ऊपर कई दिनों के बाद

चमक उठी घर भर की आंखें कई दिनों के बाद

कौए ने खुजलाई पांखें कई दिनों के बाद.

6. गुप चुप हजम करोगे

कच्ची हजम करोगे

पक्की हजम करोगे

चूल्हा हजम करोगे

चक्की हजम करोगे

बोफ़ोर्स की दलाली

गुपचुप हजम करोगे

नित राजघाट जाकर

बापू-भजन करोगे

वरदान भी मिलेगा

जयगान भी मिलेगा

चाटोगे फैक्स फेयर

दिल के कमल खिलेंगे

फोटे के हित उधारी

मुस्कान रोज दोगे

सौ गालियां सुनोगे

तब एक भोज दोगे

फिर संसदें जुड़ेंगी

फिर से करोगे वादे

दीखोगे नित नए तुम

उजली हंसी में सादे

बोफ़ोर्स की दलाली

गुपचुप हजम करोगे

नित राजघाट जाकर

बापू-भजन करोगे

Stree Kaal

7. सोनिया समन्दर

सोनिया समन्दर

सामने

लहराता है

जहां तक नज़र जाती है,

सोनिया समन्दर!

बिछा है मैदान में

सोन ही सोना

सोना ही सोना

सोना ही सोना

गेहूं की पकी फसलें तैयार हैं-

बुला रही हैं

खेतिहरों को

…”ले चलो हमें

खलिहान में–

घर की लक्ष्मी के

हवाले करो

ले चलो यहां से”

बुला रही हैं

गेहूं की तैयार फसलें

अपने-अपने कृषकों को…

8. यह दंतुरित मुस्कान

तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान

मृतक में भी डाल देगी जान

धूली-धूसर तुम्हारे ये गात…

छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात

परस पाकर तुम्हारी ही प्राण,

पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण

छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल

बांस था कि बबूल?

तुम मुझे पाए नहीं पहचान?

देखते ही रहोगे अनिमेष!

थक गए हो?

आंख लूं मैं फेर?

क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?

यदि तुम्हारी मां न माध्यम बनी होगी आज

मैं न सकता देख

मैं न पाता जान

तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान

धन्य तुम, मां भी तुम्‍हारी धन्य!

चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!

इस अतिथि से प्रिय क्या रहा तम्हारा संपर्क

उंगलियां मां की कराती रही मधुपर्क

देखते तुम इधर कनखी मार

और होतीं जब कि आंखे चार

तब तुम्हारी दंतुरित मुस्कान

लगती बड़ी ही छविमान!

बाबा नागार्जुन के बारे में हमने बहुत कम लिखा है, क्योंकि शब्द कम पड़ जाएंगे पर उनकी अथाह कीर्ति के बारे में लिखने में. आप कमेंट बॉक्स में उनकी कुछ और कविताएं साझा कर सकते हैं.