‘लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती…’ सोहनलाल द्विवेदी जी द्वारा लिखी गई ये प्रेरणादायक पंक्तियां वेस्ट बंगाल के इस शख़्स की ज़िन्दगी पर बिलकुल सटीक बैठती हैं. इस शख़्स का नाम बसम सोनार है और ये दिव्यांग हैं.

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मगर आज बसन सोनार अपने कामों की वजह से अन्य दिव्यांगों और दूसरे लोगों के लिए आदर्श बने हुए हैं. जल्द ही बसन को जलपाईगुड़ी डीएम द्वारा रोल मॉडल घोषित किया जाने वाला है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बसन सोनार के हाथ बहुत कमज़ोर हैं और वो अपने पैर भी हिला नहीं सकते हैं. वो बैसाखियों के सहारे चलते हैं. लेकिन उन्होंने अपनी इस कमज़ोरी को कभी अपने बुलंद हौसलों के आड़े नहीं दिया. आज वो जलपाईगुड़ी में चाय बागानों में काम करने वाले कर्मचारियों के परिवारवालों (जो दिव्यांग हैं) के लिए सराहनीय काम कर रहे हैं. उन्होंने एक कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र खोला है और वहां वो लोगों को कंप्यूटर भी सिखाते हैं और सरकारी कामों को करवाने के लिए लोगों की मदद भी करते हैं. अपने कंप्यूटर सेंटर के ज़रिये बसन दिव्यांगों को विभिन्न प्रमाणपत्र और दूसरी अन्य सुविधाएं मुहैया कराते हैं. इतना ही नहीं बल्कि बसम ने दिव्यांगों की उनके पुनर्वास के लिए भी मदद की है.

आइये अब जानते हैं बसम की कहानी

पश्चिम बंगाल में बानरहाट के लक्ष्मीपाड़ा में स्थित एक चाय बागान में रहते हैं बसम. लेकिन वो शुरुआत से दिव्यांग नहीं थे. एक कंपनी में बतौर मार्केटिंग मैनेजर कार्यरत बसम भी पहले बाकी लोगों की तरह ही सामान्य थे और फुटबॉल खेलते थे. मगर इसे उनका दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि साल 2005 में एक बार ऊंची कूद लगाते वक़्त बसम की रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी जिसने आगे चलकर गंभीर रूप धारण कर लिया. काफ़ी दिन चले इलाज के बाद भी उनको ज़्यादा रहत नहीं मिली थी और धीरे-धीरे उनके हाथों और पैरों ने काम तक करना बंद कर दिया. इस हादसे के बाद वो बहुत ज़्यादा निराश हो गए थे क्योंकि उनकी पीड़ा असहनीय होती जा रही थी. इसी के चलते एक बार उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी.

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फिर एक दिन उनकी ज़िन्दगी में उम्मीद की किरण आई. हुआ यूं कि जब अलीपुरदुआर के विधायक दशरथ तिर्के को बसम के बारे में पता चला तो, उन्होंने बसम की मदद करने के लिए उनको जिले के SSKM हॉस्पिटल में एडमिट कराया. जिसके बाद बसम की रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन किया गया. और उसी हॉस्पिटल में करीब 8 महीनों तक उनका इलाज चला जिसके बाद बसम के हाथ तो काम करने लगे लेकिन पैरों की हालत में कोई सुधार नहीं आया. पर इस ऑपरेशन के बाद बसम का आत्मविश्वास जरूर लौट आया.

अपनी ज़िन्दगी को नए सिरे से शुरू करने के लिए बसम ने लॉटरी का बिज़नेस शुरू किया था, जिससे उन्होंने 35 हज़ार रुपये कमाए और जिसमें से 30 हज़ार उन्होंने दिव्यांगों की मदद के लिए दान कर दिए थे. और बाकी 5 हज़ार से उन्होंने फिर से लॉटरी का काम शुरू किया और एक बार फिर वो 60 हजार रुपये जीते. इस पैसों से बसम ने 3 कंप्यूटर खरीदे और चाय के बागान में दिव्यांगों के लिए कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र खोला और लोगों की मदद करने का काम शुरू कर दिया. जब बसम के सराहनीय कार्यों की जानकारी स्थानीय प्रशासन ने सरकारी अधिकारियों तक पहुंचाई तो बसम के कार्यों की तारीफ़ करते हुए राज्य सरकार ने उनको सम्मानित करने का फ़ैसला लिया है.

रचना भगत, जिलाधिकारी, जलपाईगुड़ी ने बताया,

आने वाली 3 दिसंबर को कलकत्ता विश्वविद्यालय के सभागार में बसम को रोल मॉडल के रूप में सम्मानित किया जाएगा. वो वास्तव में एक प्रेरणास्रोत हैं. वो ऐसा काम कर रहे हैं, जो हर किसी के लिए संभव नहीं है. इतना ही नहीं जलपाईगुड़ी जिला प्रशासन की ओर से बसम के संस्थान को 10 कंप्यूटर दिए गए हैं.

अलीपुरदुआर विधानसभा क्षेत्र से विधायक दशरथ तिर्के ने बताया कि बसम के लिए यही कहा जा सकता है कि वो किसी आश्चर्य से कम नहीं हैं, जहां सबने उनके ज़िंदा बचने की उम्मीद खो दी थी, वहीं आज वो जीवन से हार चुके लोगों के लिए एक उदाहरण पेश कर रहे हैं और ये किसी चमत्कार से कम नहीं है.

बसम का कहना है,

‘मैंने दो हिस्सों में ज़िन्दगी देखी है. पहला हिस्सा तो एक आम इंसान की तरह मैं जी रहा था. लेकिन ज़िन्दगी के इस दूसरे हिस्से में मैंने चुनौतियों का सामना करना सीखा है. आज भी मुझे कई बार दिक्कतें होती हैं. हालांकि, इस सम्मान के साथ मैं काफी गौरवान्वित महसूस करता हूं. यदि सरकार मेरा आगे इलाज कराए तो मैं आभारी रहूंगा.’

बसम सोनार जैसे व्यक्तियों की बदौलत आज की मतलबी दुनिया में थोड़ी बहुत इंसानियत बची हुई है. बसम के जज़्बे को ग़ज़बपोस्ट का सलाम!