बचपन में दादा-दादी, नाना-नानी हमें कई तरह की कहानियां सुनाया करते थे. राजा, राक्षस और विचित्र जीवों वाली ये कहानियां धार्मिक ग्रन्थों से ही प्रेरित होती थीं.

कितनी मज़ेदार लगती थी, कितनी रोमांचक. सारी कहानियों को इस प्रकार सुनाया जाता था, मानो वो सामने ही घट रही हों.

पुराणों, उपनिषदों और अन्य ग्रन्थों में कई पशुओं का भी ज़िक्र है. आज जानिए इनसी जुड़ी कहानियां:

1. गरुड़

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गरुड़ और उसकी मां को सर्पों ने अपना दास बना लिया था. सर्पों ने आज़ादी के बदले अमृत की मांग की. अमृत रखा था इंद्र के राज्य में. गरुड़ ने अकेले ही इंद्र की पूरी सेना को हराया और सर्पों के लिए अमृत ले आया. इस तरह गरुड़ ने ख़ुद को और अपनी माता को आज़ाद करवाया.

विष्णु देव ने गरुड़ को अमृत ने पीने देने को कहा. जैसे ही सर्प अमृत पीने के लिए बढ़े, गरुड़ ने उन्हें हाथ-मुंह धोने के लिए कहा. सर्प चले गए और इधर इंद्र ने गरुड़ पर आक्रमण कर दिया. इंद्र ने वज्र के सहारे अमृत पर पुन: अधिकार कर लिया. इंद्र जब अमृत लेकर जा रहे थे, तब उसकी कुछ बूंदें धरती पर गिर गई, सर्पों ने वही चाट लिया. अमृत इतना शक्तिशाली था कि सर्पों की जीभ जल गई. कहते हैं इसी वजह से सर्पों की जीभ बंटी हुई होती हैं.

2. ऐरावत

गरुड़ का जन्म जिस अंडे से हुआ था, उसके दो टुकड़ों के सामने ब्रह्म देव ने 7 स्त्रोत पढ़े और इस तरह ऐरावत का जन्म हुआ. कहा जाता है कि जब इंद्र ने वृत्तासुर (सूखा करवाने वाले असुर) का वध किया, तब एरावत ने अपनी सूंड में जल भरकर मेघों पर छिड़का था और फिर इंद्र ने मेघ बरसाए थे. इस तरह सूखे से राहत मिली थी.

3. शेषनाग

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शेषनाग के 1000 भाई थे, जो हमेशा दूसरों को सताते रहते. ऐसे दुराचारी भाईयों के से तंग आकर शेषनाग हिमालय चले गए. वहां उन्होंने घोर तप किया और तप से प्रभावित होकर ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिए. 

शेषनाग ने वरदान में सिर्फ़ परोपकार की क्षमता मांगी. ब्रह्मा ने उन्हें धरती के चारों तरफ़ लिपटकर उसका संतुलन बनाए रखने को कहा. ऐसा कहा जाता है कि जब शेषनाग आगे की ओर कुंडली बनाते हैं तब ब्रह्मांड चलता है, जब वो पीछे की ओर कुंडली बनाते हैं, तब ब्रह्मांड रुक जाता है.

4. शिव के गले का सर्प

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इस सर्प से जुड़ी कई कहानियां हैं. एक कहानी के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को महादेव के साथ कुछ सर्पों ने भी पी लिया था. इससे प्रसन्न होकर, शिव ने वासुकी (सर्पों के राजा) को अपने गले में धारण करने का निर्णय लिया. ऐसा भी कहा जाता है कि वासुकी के विष को महादेव के गले तक ही सीमित रखने में सहायता करता है और इसे शरीर में फैलने से रोकता है.

एक अन्य कथा के अनुसार, वासुकी की 3 कुंडली भूत, वर्तमान और भविष्य का प्रतीक है और दाएं ओर उसका फ़न महादेव के न्यायप्रिय होने का प्रतीक है.

5. इंद्रधनुषी मछली जिसने बुद्ध को निगला

कहते हैं इंद्रधनुषी मछली व्हेल जितनी बड़ी थी और इसने बुद्ध को निगल लिया था. इसे कुछ मछुआरों ने पकड़ लिया और बुद्ध को छुड़ाया. ये इतनी बड़ी थी कि एक पूरे राज्य को एक वर्ष तक भोजन मिलता रहा.

6. तिमिंगिल

तिमिंगिल का वर्णन महाभारत में मिलता है. ये धरती पर पैदा होने वाले समुद्री जीवों में अब तक का सबसे बड़ा जीव था. ये इतना बड़ा समुद्री जीव था कि ये व्हेल मछलियों को एक बार में निगल जाता था. कहा जाता है कि जब भी ये शिकार पर निकलता, तो पूरे समुद्र में हड़कंप मच जाता.

7. नवगुंजर

नवगुंजर, नौ पशुओं से मिलकर बना था. इसका सिर मुर्गे का था. इसके तीन पैर थे, एक हाथी का, एक बाघ का और एक हिरण या घोड़े का. इसकी गर्दन मोर की थी और इसके पास ऊंट की कूबड़ भी थी. इसकी शेर जैसी कमर थी और सर्प जैसी पूंछ भी. 

इस रूप में कृष्ण ही अर्जुन से मिलने वन में पहुंचे थे. अर्जुन इसे मारने ही वाले थे कि उनके मन में ख़्याल आया कि आख़िर ऐसा प्राणी जीवित कैसे है. कृष्ण की लीला को समझकर उन्होंने इसके सामने सिर झुकाया और आशीर्वाद लिया.

8. मकर

मकर ज़मीन और पानी में रहने वाला जीव है. इसका अगला भाग हिरण, मगर और कभी-कभी हाथी का दर्शाया गया है और पिछला भाग मछली की पूंछ का. ये देवी गंगा का, समुद्र की देवी वरुणा का वाहन है.

9. कामधेनु

कामधेनु, गाय की मां को सुरभि भी कहा जाता है. कहते हैं समुद्र मंथन से ही कामधेनु का जन्म हुआ था. देवताओं ने इसे सप्तर्षि को भेंट कर दी. कहते हैं कामधेनु समस्त इच्छाओं को पूरी कर सकती हैं.

गाय के शरीर के हर हिस्से का कुछ न कुछ धार्मिक महत्व भी है. गाय के चारों पैर, चारों वेदों के, चारों थन, चार पुरुषार्थ के द्योतक हैं. उसके सिंग देवताओं के और उसका मुख सूर्य और चंद्रमा और उसके कंधे अग्नि के प्रतीक हैं.

10. नंदी

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महादेव का वाहन, नंदी. समस्त पशुओं का रक्षक

कामधेनु, विश्व की सारी गाय की मां ने कई बछड़ों को जन्म देना शुरू कर दिया. शिवालय में हर तरफ़ दूध फैलने लगा. इस हल-चल ने शिव के ध्यान को भंग कर दिया और वो क्रोधित हो गए. महादेव का तीसरा नेत्र खुल गया और उसमें से निकली बिजली सभी गाय पर गिरी. शिव के क्रोध को शांत करने के लिए देवताओं ने उनके सामने एक बैल, नंदी प्रस्तुत किया. नंदी कश्यप और कामधेनु की संतान है.

11. गणेश का चूहा

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इस चूहे से भी जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं. एक कथा के अनुसार, क्रोंच नामक एक संगीतकार था जिसे चूहा बन जाने का श्राप मिला था. लेकिन उसका आकार बहुत बड़ा था और वो बहुत उत्पात मचाता था.

एक बार वो उस आश्रम में पहुंचा जहां गणेश ठहरे हुए थे. चूहे को पकड़ लिया गया, उसने गणेश से क्षमा मांगी और उनका वाहन बन गया.

12. नरसिंह

असुर राजा हिरण्यकश्यप को ब्रह्म देव ने वरदान दिया था कि न उसकी मृत्यु दिन में हो सकती थी न रात में. न किसी जानवर के हाथों और न ही किसी मनुष्य के. वो न तो घर के भीतर न घर के बाहर, न ही धरती और न ही आसमान में मर सकता था. और न ही किसी अस्त्र या शस्त्र से उसकी मृत्यु हो सकती थी. 

हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से धरती को मुक्त करवाने के लिए विष्णु देव ने नरसिंह(आधा मानव और आधा सिंह) अवतार लिया था. नरसिंह ने घर की चौखट पर, नाखूनों से उस समय हिरण्यकश्यप का वध किया जब दिन और रात आपस में मिल रहे थे.

13. शरभ

हिरण्यकश्यप को मारने के बाद भी नरसिंह का क्रोध कम नहीं हुआ. सारे देवता महादेव के पास अपनी याचना लेकर पहुंचे. महादेव ने पहले वीरभद्र को नरसिंह को शांत करने के लिए भेजा लेकिन वीरभद्र विफल होकर लौटे. इसके बाद महादेव ने शरभ का अवतार लिया. शरभ मानव, चील और सिंह के शरीर वाला एक भयानक रूप वाला प्राणी था.

शरभ के 8 पैर, दो पंख, चील की नाक, अग्नि, सांप, हिरण और अंकुश थामे चार भुजाएं थीं. शरभ ने अपने पंखों की सहायता से नरसिंग को शांत किया. लेकिन ये प्रयास विफल रहा और दोनों में युद्ध होने लगा. युद्ध समाप्त करने के लिए शरभ ने अपने पंख से देवी प्रत्यंकरा को बाहर निकाला, जो नरसिंह को निगलने का प्रयास करने लगी. नरसिंह शांत हो गए. नरसिंह ने प्राण त्यागने का निर्णय लिया और महादेव से प्रार्थना की कि वे उनकी चर्म को अपने आसन के रूप में स्वीकार करें.

सही में, पुराण और उपनिषद कहानियों का भंडार हैं.