समाज में महिलाओं और पुरुष के लिए कुछ मापदंड तय कर दिए गए हैं. इन पर न चलने वालों को ‘तू लड़की होकर ऐसा कैसे कर सकती है’ या ‘तू लड़का होकर ऐसा कैसे कर सकता है’ जैसी बातें सुननी पड़ती है.
मैं हमेशा अपने मन में एक रानी थी. बचपन में मैं मम्मी-पापा के जाने का इंतज़ार करता था ताकी मैं मां का मेकअप लगाकर, ज़ेवर पहनकर और ज़ोर-ज़ोर से गाने लगाकर डांस कर सकूं. ये बाहर नहीं, घर की चार दिवारी में ही होता. मुझे हमेशा लोगों के सवालों से, Bully करने से और दूर कर देने से डर लगता.
अक़्सर ज़िन्दगी में होता वही है, जो हम नहीं चाहते. बड़े-बड़े होते-होते उसकी आवाज़ लड़कों जैसी नहीं, लड़कियों जैसी हो गई और वो समाज के तय मापदंडों पर फ़िट नहीं हुआ.
7वीं कक्षा में मुझे मेरे एक दोस्त ने छक्का कहा, मुझे समझ नहीं आया कि मुझे कैसे रिएक्ट करना चाहिए.
एक संयुक्त परिवार में बड़े होने के कारण उसकी आवाज़ अनसुनी ही रह गई. उसके रिश्तेदारों ने भी उस पर उंगलियां उठाईं कि वो लड़कों जैसी हरकतें क्यों नहीं करता. रिश्तेदारों को लगा कि उसके साथ कुछ गड़बड़ है और उन्होंने उससे बात-चीत तक बंद कर दी.
ज़िन्दगी का ज़्यादातर वक़्त मैंने घुटते-घुटते और Frustrate होते हुए, अपनी सच्चाई से भागते हुए बिताया. कॉलेज पहुंचते-पहुंचते मुझे समझ आ गया था कि मैं महिलाओं से आकर्षित नहीं हूं, मैं एक Queer हूं.
उसने अपने दोस्तों को बताने का निर्णय लिया और उसके दोस्तों ने भी उसके ‘Coming Out’ को सेलिब्रेट किया. माता-पिता ने ठीक इसके उलटा था और वो बिल्कुल सन्न रह गए.
मुझसे कहा गया कि मैं थेरेपी लूं और ये सिर्फ़ एक ‘फ़ेज़’ है. 25 साल लड़ने के बाद जब मुझे लगा कि जीत मेरी हुई मुझे याद दिलाया गया कि अभी ये ख़त्म नहीं हुआ.
उसकी ज़िन्दगी का ये काफ़ी मुश्किल दौर था. तभी एक दिन उसे 9वीं कक्षा की डायरी मिली जिसमें ‘कॉलेज जाने से पहले क्या-क्या करना है’ इसकी लिस्ट थी.
माता-पिता की उम्मीदों पर ख़रे उतरना है सबसे बड़ा लक्ष्य था. मुझे ये एहसास हुआ कि किसी और के लिए जीना, और वो करना जो उनके अनुसार मेरे लिए सही है- ऐसी ज़िन्दगी मैं नहीं जीना चाहता. पूरा बचपन मैं सामाजिक दायरों के आस-पास ही चला पर अब बहुत चुका था. मैं बेड़ियां तोड़कर आज़ाद होना चाहता था.
उसने बतौर प्रोफ़ेसर सैंकड़ों बच्चों को फ़ैशन डिज़ाइनिंग पढ़ाई और उसने ख़ुद पर जो-जो बीती थी उससे दूसरों की मदद की. एक बार उनका एक छात्र मानसिक तौर पर अस्वस्थ चल रहा था और इसका असर उसके ग्रेड्स पर भी पड़ रहा था.
मैंने उससे बात की और उसे अपनी कहानी बताई. उसे एहसास हुआ कि बस वो अकेली नहीं ही. वो अब बहुत अच्छा कर रही है, उसके ग्रेड्स भी अच्छे होने लगे. मैं कैसा दिखता हूं और मेरे Sexual Preferences क्या हैं इससे मेरे बहुत से छात्रों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता. मुझे कोई ऐसा भी मिल गया है जिसे में अपनी ज़िन्दगी की मोहब्बत कह सकता हूं. मेरे माता-पिता अभी भी मेरी Sexuality के सवाल को टाल देते हैं. पर ठीक है मैं ख़ुद से ख़ुश हूं और मुझे सच से डर नहीं लगता. क्या यही वो तरीका नहीं जिसके हिसाब से सभी को जीना चाहिए?
कहानी कैसी लगी कमेंट बॉक्स में बताएं.