मानसिक स्वास्थ्य ऐसी बात है जिससे हम अक्सर भागते हैं. हम कभी भी इसके बारे में खुलकर बात नहीं करते जहां तक हो सके इसे टालते रहते हैं. 

नतीजा ये होता है कि हमें पता भी नहीं चलता कि कब किसी इंसान की कोई हरकत दूसरे इंसान की ज़िंदगी बर्बाद कर सकती है. 

मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक ऐसी ही कहानी हम लेकर आए हैं. 

मेरी पहली याद मुझे क्लास-3 में तंग (Bullie) किए जाने है. एक दिन कुछ लड़कों ने मुझे किनारे ले जाकर मेरे ऊपर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए. वो मुझे अपने मोज़ों से बांध देते थे और मेरे विरोध करने पर मुझे थप्पड़ भी मारा करते थे. कभी-कभी वो लोग मुझे चाटने भी लगते थे. एक बार विरोध करने पर किसी लड़के ने मुझे पेट पर मारा था. मुझे नहीं पता था कि ऐसा क्यों हो रहा था. मैं बहुत भोली थी.
लोगों का तंग करना छोटे और बड़े दोनों रूपों में चलता रहा. मुझे इतना दुख हुआ कि मैं अपने माता-पिता को भी नहीं बता सकती थी कि क्या हो रहा है. इन सब चीज़ों ने मुझे गहराई से प्रभावित किया और मेरा मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. 

मृदु ने छोटी सी उम्र में ही इतना कुछ झेल लिया था. 

सबसे ज़्यादा मुझे तब तंग किया गया, जब मैं पांचवीं कक्षा में थी. एक दिन, जब कोई भी आसपास नहीं था, मेरे घर में काम करने वाले नौकर ने मुझे ग़लत तरीक़े से छूना शुरू कर दिया. मैं समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या कर रहा है. मुझे बस इतना पता था कि मुझे अच्छा महसूस नहीं हो रहा था. मुझे अपने माता-पिता को बताने में भी शर्म आ रही थी. मगर अगले हफ़्ते उन्होंने मेरे साथ फिर से छेड़छाड़ की. मैं अपनी मां को बताना चाहती थी लेकिन नहीं कह पाई. अगले साल तक नौकर और हम सब एक ही छत के नीचे रहे. मुझे अपने कमरे से बाहर जाने में भी डर लगता था.इस समय तक, मेरा मानसिक स्वास्थ्य खराब हो चका था. मैं 9वीं कक्षा में थी और आख़िरकार मेरे माता-पिता को अहसास हुआ कि मेरे साथ कुछ बहुत ग़लत हो रहा है. वे मुझे एक डॉक्टर के पास ले गए और मैंने डॉक्टर को वो सब बताया जो मैंने सहा था. मुझे डिप्रेशन के बारे में पता चला. इसके बाद मुझे Anti Depressants पर डाल दिया गया था.

हम अपनी निज़ी ज़िंदगी में भी डिप्रेशन जैसी चीज़ों को तवज्जो नहीं देते. बल्कि, हमें हमेशा से इन चीज़ों को टालना सिखाया गया है. 

मृदु के माता-पिता ने उसे डॉक्टर के पास ले जाकर सही क़दम उठाया. मृदु ने भी हिम्मत नहीं हारी. शुरू में बेशक़ मृदु को तक़लीफ़ हुई. उसने बहुत बार ख़ुद को चोट पहुंचाने की भी कोशिश की. यहां तक कि एक बार उसने दवाओं की ओवरडोज़ भी ले ली थी. मग़र अब चीज़ें धीरे-धीरे सही होने लगी थीं.

मुझे याद आता है कि पहली बार मुझे 12वीं क्लास में आकर यह अहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी के क्या मायने हैं. मेरे माता-पिता ने मुझे फ़ाइनल परीक्षा देने से मना कर दिया था. उनके हिसाब से मैं इस ‘लायक़’ नहीं थी कि परीक्षा पास करूं. लेकिन मैं नहीं चाहती थी कि मेरी नकारात्मकता मुझ पर हावी हो. मुझे बदलाव की ज़रूरत थी.तो मैंने माता-पिता को बोला कि में परीक्षा देने जाऊंगी. मैंने ख़ुश रहना शुरू किया. मैंने पूरे जी-जान से पढ़ाई की और एग्ज़ाम देने गई. परिणाम सामने आए तो अवाक थी. मैंने 93% स्कोर किया था. मुझे लगा जैसे मैं सातवें आसमान पर थी.
आज, मैं अपने ड्रीम कॉलेज से मीडिया कोर्स कर रही हूं और अपनी सेहत को भी अच्छा रखने की कोशिश कर रही हूँ. यहां तक कि मेरी यात्रा आसान नहीं थी. असल में मैंने यह माना था कि मुझे मदद की ज़रूरत थी और मुझे पता है कि चुपचाप सहते रहना कोई समाधान नहीं है. मुझे पता है कि मुझे लोगों से बात करने और ख़ुश रहने की ज़रूरत है. 

आप भी ध्यान रखें कि बुली होने जैसी चीज़ों को कभी नज़रअंदाज़ न करें. हमेशा किसी से बात करें.