अमृतसर स्थित सिखों का सबसे बड़े तीर्थ स्थल ‘स्वर्ण मंदिर’ या ‘दरबार साहिब’ भारत की सबसे व्यस्त Tourist Destinations में से एक है. यहां पहुंच के एक अलग ही सकारात्मक ऊर्जा मिलती है. गुरूद्वारे में सोने से जड़े गुम्बद की ख़ूबसूरती भी देखते ही बनती है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि इस गुरुद्वारे के पास ही एक राजमहल हुआ करता था. वह इतना भव्य था कि देख कर किसी के भी होश उड़ जायें. फिर ऐसा क्या हुआ कि वह ग़ायब हो गया? आज हम आपको यही बताने वाले हैं.
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वर्ष 1849 तक अंग्रेज़ सिख साम्राज्य को मात देकर अमृतसर पर कब्ज़ा जमा चुके थे. उस समय से अमृतसर आने वाले यूरोपीय कलाकारों और फोटोग्राफर्स की तादाद बढ़ने लगी. फोटोग्राफर ‘Alice Beato’ और कलाकार ‘William Carpentor’ की कुछ तस्वीरें और पेंटिंग्स 1850 में सामने आयीं. इनमें दिखाया गया कि एक भव्य महल था, जिसकी छाया सरोवर के पानी में टिमटिमाती थी.
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ग़ायब
दरबार साहिब Complex पर छपे फ्रांसीसी चिन्ह सत्यापित करते हैं कि वह महल वर्ष 1930 से 1941 के बीच बना था. इसी बीच एक आर्टिस्ट ‘August Schoefft’ यहां पंहुचा था, जिसने सिख साम्राज्य के आखरी किंग ‘महाराजा रंजीत सिंह’ का चित्र बनाया था. इस चित्र में भी उस महल की मौजूदगी आप देख सकते हैं.
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महाराजा ‘रंजीत सिंह’ सिख साम्राज्य के आखिरी राजा थे. माना जाता है कि इस रहस्यमयी महल में उनका बेटा ‘शेर सिंह’ रहा करता था. यही नहीं, महाराजा रंजीत सिंह की सल्तनत में वृद्धि के साथ-साथ ‘ग्रंथ साहिब’ के आस-पास महल व इमारतें बढ़ती जा रहीं थी. करीब 84 छोटी-बड़ी इमारतें खडी हो गयीं थी, जिनमे से एक ये महल था. महाराजा अकसर किसी न किसी महल या इमारत की छत पर बैठ कर स्वर्ण मंदिर में चल रही गुरबाणी को सुनते थे.
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महल आखिर गया कहां? वह गायब कैसे हुआ?
अंग्रेज़ नहीं चाहते थे कि ज़्यादा लोग सिख समुदाय से जुड़े. ईसाई धर्म को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने स्वर्ण मंदिर के आस-पास की इमारतों को गिराना शुरू किया. इन इमारतों को गिरा कर वे संकेत देना चाहते थे कि सिख साम्राज्य ख़त्म हो चुका है और इन महलों में रहने वाले राजा अब राजा नहीं रहे. उस विशाल महल की जगह लाल ईंटों वाले एक घंटाघर का निर्माण भी किया गया था, जिसे आप नीचे दिए गए चित्र में देख सकते हैं.
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अंग्रेजों को सिख धर्म की संरचना में कोई विश्वास नहीं था. लाल घंटाघर बनवा कर, राजा का महल गिरा कर वे सिखों की आस्था की जड़ों को काटना चाहते थे ताकि वे ईसाई धर्म में शरण ले लें. लेकिन सिखों की ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ में सच्ची आस्था ने अंग्रेजों के इस सपनों को कभी सच न होने दिया.
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