बहुत ही छोटी उम्र से हम लड़कियों को ये बताते आए हैं कि उनके बाल उनकी ख़ूबूसरती है. जितने लम्बे बाल उतनी ज़्यादा ख़ूबसूरती. और जिन लड़कियों के बाल छोटे होते हैं उन पर लोग अपनी राय देना नहीं छोड़ते, ‘लड़के जैसी लग रही हो’ ‘बड़े बालों में ज़्यादा सुन्दर लगोगी’! 

मगर परोमिता के लिए तो बिलकुल ही अलग था. परोमिता Alopecia का शिकार थी ये एक डिसऑर्डर में लोगों के बाल झड़ने लगते हैं. 

परोमिता दार्जिलिंग में अपने माता-पिता और बड़ी बहन के साथ बड़ी हुई हैं. चूंकि उसके पिता जो एक चाय बागान कंपनी के लिए काम करते थे, इसलिए अक्सर बाहर रहते थे. पारोमिता को चार साल की उम्र में Kurseong के एक आवासीय स्कूल में भेज दिया गया था. लेकिन चौथी क्लास में आने से पहले ही पारोमिता को एहसास हो गया था कि उनके साथ कुछ तो सही नहीं है. 

जब मैं उठती थी, तो मेरा तकिया बालों से ढंका हुआ होता था. जब मैं शावर लेती तो नाली में बहुत बाल जा रहे होते थे. मैं जो कुछ भी करती थी मेरे बाल बस झड़ते ही रहते थे और एक हफ्ते के भीतर मैं पूरी तरह से गंजी हो गई. 

परोमिता के माता-पिता डर गए और उन्हें नहीं पता था कि क्या करना है. परोमिता याद करती हैं कि किस तरह वो अनगिनत डॉक्टरों के पास गई थीं, जो की उनके इस डिसऑर्डर का इलाज़ न बता सके. उन्होंने आयुर्वेदा से लेकर घरेलू नुस्खों तक सब किया. 

कुछ लोगों ने मुझे बाल उगाने के लिए अपने सिर पर प्याज़ और अदरक का लेप भी लगाने को कहा था. मैंने उनकी भी बात सुनी और दिन भर एक आचार की तरह घूमती रहती थी. 

एक 10 साल की बच्ची के रूप में परोमिता बताती है कि ख़ुद को लेकर लोगों की राय के बारे में वो कितनी परेशां थी. वो बताती हैं कि बहुत सारे बच्चों ने उनकी हंसी बनाई थी.   

मैं अपने आप को बाथरूम में बंद करके रोया करती थी. कुछ बड़े लोगों ने भी मेरा मज़ाक बनाया था. उनकों लगा मेरा मजाक बनाने से चीज़ें थोड़ी नॉर्मल होंगी मगर उनको बिलकुल अंदाज़ा नहीं था कि इन सब का मेरे ऊपर क्या असर पड़ेगा. 

लोगों द्वारा हंसी-मजाक बनाए जाने के कारण परोमिता का विश्वास पूरी तरह से हिल गया था. परोमिता उन सब चीजों से दूर हटने लगी जिनसे वो प्यार करती थी जैसे कि क्विज़, वाद-विवाद, और योग्यता प्रतियोगिताओं में भाग लेना.   

वो एक ऐसी घटना भी याद करती है, जिसमें वह मंच पर जाकर एकदम से फ्रीज़ हो जाती हैं इस बात से चिंतित होकर कि देखने वाला हर कोई उन पर हंस रहा था. 

2015 में अपनी मास्टर्स की डिग्री पाने के बाद परोमिता बेंगलुरु शिफ़्ट हो गईं. और वहां उन्होंने एक ऐसा फ़ैसला लिया जिसने उनकी ज़िंदगी बदल दी. 

“इन सभी साल में इतनी टेंशन में थी और मैंने कभी यह ही सोचना बंद नहीं किया कि मेरे बाल कब झड़ेंगे या कब वापस उगेंगे. तब मैंने फैसला किया कि मैं अपने सारे बाल मुंडवा लुंगी और दवाइयों को पूरी तरह से बंद कर दूंगी.” 

इस ही बीच परोमिता ने अपने ऑफिस में अपने इस फैसले के बारे में सबको एक मेल लिखा. हालांकि, परोमिता ने एक बड़ा और साहस भरा क़दम उठाया था मगर मन में फिर भी उनके काफ़ी सवाल रहते थे कि क्या वो इस कपड़े में अच्छी लगेंगी? क्या कोई लड़का उनकों पसंद करेगा मगर ज़ल्द ही लोगों ने उनकी तारीफ़ करनी शुरू कर दी और उनको सरहाया जिसने उनका खोया हुआ आत्मविश्वास उन्हें वापिस मिल सका. 

तुम्हें किसी की पुष्टि कि ज़रूरत नहीं है. मुझ पर भरोसा करो. ये चीज़ अंदर से आएगी और आप खोज़ ही लेंगे. बस आपको इतना करना है कि लोगों के शोर को सुनना बंद कर दें. ये लोग आपको बेहतर ढंग से नहीं जानते है. ये लोग आपकी प्रतिक्रिया का चोट पहुंचाने वाले शब्दों से जवाब दे रहे हैं. ये मात्र शब्द हैं. जो आपको कमज़ोर नहीं कर सकते. डट कर खड़े रहें. 

उन्होंने हाल ही में बेंगलुरु में एक Human Library के तौर पर अपनी जीवन यात्रा के बारे में बात करी थी, जहां वो एक ‘पुस्तक’ थी और ‘पाठकों’ ने उनकी बात सुनी.