ये दो लाइनें IPS इल्मा अफ़रोज़ पर बिल्लुट सटीक बैठती हैं. आज भले ही देश की सुरक्षा में लगी इल्मा के पीछे पुलिसवालों का काफ़िला चलता है, लेकिन कभी एक वक़्त ऐसा भी था जब उसे घर चलाने के लिये खेत में काम करना पड़ा था.  

‘हौसले जिनके अकेले चलने के होते हैं, एक दिन उनके पीछे ही काफ़िले होते हैं’  
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कहानी किसान इल्मा अफ़रोज़ की! 

IPS की कुर्सी पर बैठने वाली इल्मा उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से हैं और एक किसान की बेटी हैं. छोटी सी उम्र में इल्मा के पिता का निधन हो गया, जिसके बाद घर की सारी ज़िम्मेदारी उसकी मां पर आ गई. घर और बच्चों की देखभाल के लिये मां ने खेतों में काम करना शुरू किया और उन्हें कभी पिता की कमी महसूस नहीं होने दी. हांलाकि, कभी-कभी इल्मा मां और भाई के साथ खेतों में जाकर, उनकी मदद करती थी.  

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मुश्किल हालातों के बावजूद इल्मा अपने सपनों के लिये संघर्ष करती रही और स्थानीय स्कूल विल्सनिया इंटर कॉलेज से पास होने के बाद, दिल्ली के सेंट स्टीफ़न कॉलेज से स्नातक पूरा किया. इल्मा पढ़ाई में काफ़ी अच्छी थी, इसलिये उसे ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में आगे की पढ़ाई करने के लिये स्कॉलरशिप मिल गई. इल्मा की सफ़लता का सिलसिला यहीं नहीं रुका, बल्कि उसे लंदन,इंडोनेशिया और पेरिस में पढ़ने का मौका मिला. इसके साथ ही उसने क्लिंटन फ़ाउंडेशन के साथ काम भी किया. 

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विदेश जाकर छोटे से गांव की ये लड़की बहुत कुछ हासिल कर रही थी, लेकिन बस उसका दिल भारत में ही लगा हुआ था. इस वजह से वो भारत वापस आ गई और सिविल सर्विस की तैयारी में जुट गई. कमाल देखिए, पहले ही प्रयास में किसान की इस बेटी ने सफ़लता का परचम लहराते हुए 217वीं रैंक हासिल की, वो भी बिना किसी कोचिंग के.  

इल्मा का लक्ष्य देश की सेवा करना है, इसके अलावा वो अपने गांव कुंदरकी के बच्चों के लिये भी बहुत कुछ करना चाहती.