आपने अब तक ‘गली बॉय’ तो देख ही ली होगी! आपको फ़िल्म देख कर मुंबई रैप सीन के बारे में बहुत कुछ पता चला होगा. उनकी बोली, उनका रहना, उनकी ज़िंदगी को करीब से लेकिन फ़िल्मी अंदाज़ में दिखाया गया.
वैसे फ़िल्म आने से पहले भी ‘नेज़ी’ नाम ख़ासा चर्चित था, बस मूवी ने थोड़ी और प्रसिद्धी बढ़ा दी. Humans of Bombay इंस्टाग्राम पेज पर उनकी ज़िंदगी की असली कहानी लिखी गई है, जो फ़िल्म से अलग है.
‘मैं पैदा और बड़ा हुआ कुर्ला में, मेरे परिवार में अकादमिक जगत के लोग थे, लेकिन मैं अलग था. मेरा बचपन ‘एडवेंचर’ वाला था. पूरा दिन मैं दोस्तों के साथ ऊटपटांग हरकतें करता था, पैसों के लिए इधर-उधर की चीज़ें बेच देता था.’
‘मेरे घऱ वालों को मेरी इन हरकतों का पता नहीं था लेकिन वो ये जानते थे कि मैं कुछ तो गड़बड़ कर रहा हूं’
‘मेरी मम्मी ही मेरी परवरिश कर रही थी, डैड दुबई में रहते थे. मां ने कहा कि मैं दोस्तों से दूर रहकर ही सुधर सकता हैं. मेरा स्कूल बदल गया, मेरा घर बदल गया लेकिन गली ने कभी मुझे नहीं छोड़ा. मैंने हिप-हॉप की ज़रिये अपना रास्ता ढूंढ लिया. मुझे लिखना पसंद था लेकिन ‘रैप कल्चर’ के बारे में नहीं जानता था इसलिए मैंने रिसर्च की. मेरे भीतर एक आग जल रही थी!’
ज़ोया अख़्तर ने भी अपने फ़िल्म को प्रोमोशन के दौरान कई जगहों पर कहा कि उन्हें ‘आफ़त’ गाने से ही मुंबई के रैप के बारे में पता चला और आगे रिसर्च करने करने के बाद नेज़ी और डिवाइन को बारे में जानकारी मिली.
नेज़ी ने ‘आफ़त’ गाने को iPad से शूट किया था और उसे YouTube पर लाखों व्यूज़ मिले. इसके बाद कई जगहों से आफ़र भी मिले, लेकिन नेज़ी इस काम को घरवालों से छुप के कर रहे थे.
‘हालांकि, मुझे कई ऑफ़र्स मिले लेकिन फ़ैमली के रिस्ट्रिक्शन की वजह से सब छोड़ना पड़ा. जैसे ही मुझे लग रहा था कि सब ख़त्म हो गया, मैंने ‘मेरे गली में रिकॉर्ड’ किया और सब बदल गया. उस गाने की वजह से ज़ोया अख़्तर मुझ से और डिवाइन से गली बॉय के लिए मिली.’
जैसा कि फ़िल्म की निर्देशक भी कहती रहीं कि कहानी किसी आर्टिस्ट के ज़िंदगी के ऊपर बेस्ड नहीं बल्की उनसे प्रेरित है, Humans Of Bombay के पोस्ट में भी इसी बात को दोहराया गया है.
‘कोई ‘सैफ़ीना’ नहीं थी और न ही मेरे डैड की दी बीवियां हैं, लेकिन इस फ़िल्म ने मेरी जड़ों को दिखाया है. ये गली में रहने वाले हर लड़के की कहानी है. पीछे मुड़ कर देखता हूं, तो यक़ीन नहीं होता कि मैं यहां हूं.’
‘एक वक्त ऐसा भी था जब मैं स्कूल बंक करके दोस्तों के साथ Queen’s Necklace आता था और सिक्के चुन कर कुल्फ़ी खाता था. आज मैं वानखेड़े में Perform करता हूं, होटल में कमरा मिलता है जहां से Necklace देख सकता हूं. मैं बहुत ख़ुश होता हूं लेकिन उस वक्त में भी दिल टूट जाता है क्योंकि उस ख़ुशी को घरवालों के साथ नहीं बांट पाता. ये सफ़लता उनके बिना कुछ नहीं. मेरी इच्छा है कि वो देख पाएं कि मैं कहां पहुंच गया. मैं कोशिश करता रहूंगा… अपना टाइम कभी तो आएगा!’