बचपन में ध्यान है कैसे हम ‘पान पसंद’ वाली टॉफ़ी बड़े ही चाव से खाते थे. उसको खाने के बाद हमारी जीभ लाल हो जाती थी और फिर तुलना करते थे कि किसकी जीभ कितनी लाल है. यही नहीं, ‘मैंगो मूड’ वाली टॉफ़ी के लिए भी ख़ूब लड़ाई होती थी.
जिन टॉफ़ियों से हमारी इतनी यादें और बातें जुड़ी हैं आइए आज जानते हैं कहां से शुरू हुई इसकी कहानी.
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वालचंद हीराचंद दोशी, जो सोलापुर में एक व्यापारिक परिवार में पैदा हुए थे, पहले से ही एक जाना माना चेहरा थे.
‘फ़ादर ऑफ़ द इंडियन ट्रांसपोर्टेशन इंडस्ट्री’ के नाम से मशहूर, वालचंद का व्यवसाय पहले से चारों ओर फैला हुआ था. मगर Ravalgaon(जिस कंपनी के अंदर ये सभी टॉफ़ियां बनी हैं.) की शुरुआत एक ट्रेन के सफ़र से शुरू होती है.
एक ट्रेन यात्रा के दौरान किसी सरकारी अधिकारी ने वालचंद को महाराष्ट्र के नासिक जिले के रावलगांव की खाली पड़ी हज़ारों एकड़ ज़मीन के बारे में बताया जिसे कृषि प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जा सकता था. जिसके बाद, वालचंद ने 1,500 एकड़ ज़मीन ख़रीद ली और उस जगह गन्ने की खेती करने लगे और ऐसे वहां भारत की पहली चीनी मिलों में से एक की स्थापना हुई.
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साल 1933 में Ravalgaon Sugar Farm Limited नाम पड़ा और सात साल बाद वहां Ravalgaon ब्रांड के अंदर टॉफ़ियां बनना शुरू हो गईं.
कंपनी में 10 चीज़ें बनती हैं जो 100 प्रतिशत शाकाहारी और प्राकृतिक सामग्री जैसे आम का गूदा, दूध और कॉफ़ी पाउडर जैसी चीज़ों के इस्तेमाल से बनती हैं.
इसके हर प्रोडक्ट को बड़ी सोच समझ कर बनाया गया है, यहां तक कि इन टॉफ़ियों के रैपर्स को भी. जैसे, चेरी वाली टॉफ़ी जो नारंगी, पीले या लाल जैसे रंग में आती है. इसके रैपर्स को चमकदार पारदर्शी रखा गया है ताकि एक नज़र पड़ते ही लोग पहचान लें ये कौन सी टॉफ़ी है.
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कारमेलाइज़्ड दूध से बनी Laco का रैपर बांस की बची हुई चीज़ों से बना हुआ है.
अपने रैपर्स को कंपनी पारदर्शी इसलिए रखना चाहती थी ताकि लोग उन पर भरोसा करें और बच्चे बाहर से ही रंग रूप देख अपनी मनपसंद टॉफ़ी चुन लें.
पान पसंद, मैंगो मूड, टूटी फ़्रूटी, Assorted Centre, कॉफ़ी ब्रेक, सुप्रीम टॉफ़ी, Laco, Chococream जैसी सभी हमारी मन पसंद टॉफ़ियां यहीं की देन हैं.