‘एनी दिव्या’ 

ये नाम ख़बरों में कई बार सुना होगा. बोइंग 777 विमान उड़ाने वाली दिव्या ने महज़ 30 साल की उम्र में दुनिया की यंगेस्ट महिला कमांडर का ख़िताब हासिल कर, नया इतिहास रच चुकी हैं. विजयवाड़ा की रहने वाली दिव्या बचपन से ही हवाई जहाज उड़ा कर आकाश में उड़ने का ख़्वाब देखती थी, पर ख़ुद के सपनों को अंजाम तक ले जाना हर किसी के लिये आसान काम नहीं होता.  

ज़िंदगी को लेकर दिव्या का ये सपना भी कुछ ऐसा ही था. हाल ही में Humans Of Bombay ने एक पोस्ट शेयर की है. ये पोस्ट दिव्या के बारे में है, जिसमें दिव्या ने ख़ुद अपने पायलट बनने की कहानी बयां की है.  

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“I dreamt of becoming a pilot since I was young. My dad was in the army–we lived in Pathankot & then moved to Vijaywada. In school, I was taught to read & write in English–but spoken English was rare. In class 9, a teacher asked me to write 10 things I wanted from life & I took it seriously. The first thing was to become a pilot & the second was to become a lawyer. Someone told me that I had to get above 90% for that so I worked hard & got a 100 in everything. I was that passionate. But there was social & financial pressure on my parents. It was an unconventional field for a girl. It was expensive–but they used their savings, took loans & overcame it to send me to flight school. I worked harder–for them. Flight school wasn’t easy. People teased me when I spoke in English and how I spoke. But instead of hiding, I learned from them & perfected my English. I was so happy to be there–that got me where I needed to go. I didn’t worry about the future–I just learned along the way & kept going. Once I graduated, I immediately got a job & my license on the same day! In fact, I got my job before the license, which doesn’t happen. Before I knew it, I was a 19 year old pilot! After my training in Spain, I became a first officer. It wasn’t easy–a new city with no set schedule & you go back to an empty house. But I kept taking each challenge in my stride–I knew this was the way of the world. This somehow motivated me to cross out the next thing on my list–becoming a lawyer. At 19, I came back to Bombay & took an LLB course. I wanted to learn everything & never worried about chasing success. I’d attend classes whenever I was here. Even if my flight landed at 2am, I’d go to class at 6am! I’d study during my breaks on flight–I couldn’t be stopped! Now, a decade later after a lot of flights & fights, I became the youngest female commander to fly a Boeing 777 with the largest twin-jet engine in the world–it was a different ‘high’ all together! I was able to pay off my loans, contribute to my siblings’ education & travel the world–making my parents travel too! Now with most things crossed off that list, I’m making a new one–because the best is always yet to come!”

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पोस्ट के मुताबिक, दिव्या के पापा के सेना में थे और उनकी फ़ैमिली पठानकोट में रहा करती थी, लेकिन बाद वो लोग विजयवाड़ा शिफ़्ट हो गए. दिव्या कहती हैं कि उनकी शिक्षा एक ऐसे स्कूल में हुई, जहां इंग्लिश और हिंदी दोनों में पढ़ना-लिखना सिखाया जाता था. हांलाकि, वहां अंग्रेज़ी का इस्तेमाल कम ही किया जाता था. आगे दिव्या ने बताया कि 9वीं कक्षा के दौरान एक टीचर ने उन्हें 10 वो चीज़ें लिखने के लिये कही, जो उसे से जीवन चाहिए थी. वहीं दिव्या ने भी असाइनमेंट को काफ़ी गंभीरता से लिया और इस सूची में उन्होंने पहली इच्छा पायलट बनने की जताई, तो दूसरा वकील बनना था.  

पर पायलट बनने के लिये दिव्या को हर सबजेक्ट में कम से कम 90 प्रतिशत से अधिक का स्कोर चाहिए और जैसे ही उन्हें ये बात चली वो शिद्दत से पढ़ाई में जुट गई, इसके बाद लगभग हर विषय में 100 नबंर हासिल किये. फ़िलहाल अब समय आ चुका था, दिव्या को फ़्लाइट स्कूल में भेजने का, पर ये सब उनके माता-पिता के बिल्कुल आसान नहीं था. क्योंकि उनके परिवार की वित्तीय हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि बिना किसी दवाब के दिव्या को आगे की पढ़ाई के लिये भेजा जा सके. इन सबके बावजूद दिव्या के पापा ने बैंक लोन और दोस्तों से उधार लेकर किसी तरह उन्हें फ़्लाइट स्कूल में भेजा.  

घरवालों की मदद से दिव्या फ़्लाइट स्कूल, तो पहुंच गई, लेकिन आगे का सफ़र और मुश्किल नज़र आने लगा. दरअसल, दिव्या की इंग्लिश बाकि छात्रों की तरह नहीं थी, इसलिये हर कोई उसका मज़ाक उड़ाता था. हांलाकि, इन सारी चीज़ों से भगाने के बजाये दिव्या ने सबका सामना किया और वो बन कर दिखाया जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी.  

वहीं डिग्री मिलते ही दिव्या को नौकरी मिल गई और पायलट लाइसेंस भी. शायद पूरी कायनात दिव्या को उसके सपनों तक पहुंचाने में लगी थी, वरना पायलट लाइसेंस मिलने से पहले किसी को नौकरी नहीं मिलती, लेकिन दिव्या के केस में ऐसा हुआ और 19 साल की उम्र में वो पायलट का ख़िताब ले चुकी थी. वहीं स्पेन में प्रशिक्षण लेने के बाद वो पहली अधिकारी बन गई. नया शहर, नये लोग, सीमित समय और काम के बाद घर की खाली दिवारें, ये सब दिव्या को काफ़ी परेशान करता था. पर वो अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटी और लगातार ख़ुद को मोटिवेट करती रही.  

इसके बाद दिव्या का अगला टारगेट वकील बनना था और मुंबई आते ही एलएलबी का कोर्स करने लगी. कभी-कभी दिव्या की फ़्लाइट 2 बजे लैंड करती और वो 6 बजे एलएलबी की क्लास लेने के लिये तैयार रहती थी. इस लड़की के अंदर हर वो चीज़ सीखने का जुनून और ख़्वाहिश थी, जिससे उसे लगाव था.  

सारी मुश्किलों को पार कर अपने लक्ष्य तक पहुंचने वाली दिव्या ने सारे लोन चुकाये. इसके साथ ही अपने भाई-बहनों की पढ़ाई का ख़र्च भी उठा रही और देश के साथ-साथ अपने मम्मी-पापा का नाम रौशन कर, उन्हें हवाई जहाज़ से दुनिया की सैर कर रहा रही हैं. इसके साथ ख़ुद भी दुनिया का आनंद ले रही है. इतना सब कुछ हासिल करने के बाद भी दिव्या का कहना है कि Best Is Always Yet To Come!