26/11/2008 का मुम्बई आतंकी हमला आज भी लोगों के रौंगटे खड़े कर देता है. इस आतंकी हमले को अपनी आंखों से देखने वालों का खून आज भी उतना ही खौलता है. वो डर, वो बेबसी उनके ज़हन में आज भी गुबार बनकर दबी हुई है.
जहां इस हमले से पीड़ित कई लोग जान के ख़तरे का हवाला देते हुए सामने नहीं आ रहे थे, वहीं एक नौ साल की बच्ची बेहिचक सामने आई. इस बच्ची का नाम देविका रोतावन था. उस वक़्त ये छत्रपति शिवाजी टर्मिनस में ही मौजूद थी. पैर में गोली लगने के कारण देविका वहीं बेहोश हो गई थी.
देविका की आंखों में वो कत्लेआम आज भी वैसा ही बसा है. अब ये बच्ची 18 साल की हो चुकी है. 2012 में देविका के बयान के दो महीने बाद ही कसाब को फ़ांसी हुई थी. इसे ख़ुशी होती है, जब ये किसी आतंकवादी के मारे जाने की ख़बर सुनती है, पर हिम्मत दिखाने का ख़ामियाज़ा आज भी ये भर रही है.
When I saw Kasab in the courtroom I was livid. I wished I had a gun in my hand, would have shot him there. Anyway Kasab was a mosquito, hope someday the big terrorists are brought to book: Devika,26/11 survivor and eyewitness pic.twitter.com/iuSfeR6tEu
— ANI (@ANI) November 26, 2017
कोई सम्बंध नहीं रखना चाहता!
इतनी हिम्मत और ज़िन्दादिली दिखाने के बावजूद भी देविका और परिवार को काफ़ी परेशानियां झेलनी पड़ी. शुरुआत में देविका और परिवार को जान से मारने की कई धमकियां मिलीं. मुम्बई में एक किराए के घर में रहने वाली देविका उस दिन अपने पापा और भाई के साथ पुणे शिफ़्ट हो रही थी. हमले के बाद करीब एक महीने अस्पताल में रहने के बाद देविका राजस्थान अपने पुश्तैनी घर चली गई.
तफ़्तीश के लिए वापस आई तो मानों लोगों ने उसे अपनाने से ही मना कर दिया. आतंकवादियों और धमकी देने वालों के खौफ़ से कोई उन्हें पनाह नहीं दे रहा था. रिश्तेदार कोई नाता नहीं रखना चाह रहे थे और यहां तक की लोग उसे ‘कसाब की बेटी’ कह कर ताने भी मार रहे थे. अपने गांव जाने पर उसे होटल में रुकना पड़ता था.
इस सभी चुनौतियों को देविका और परिवार ने डट कर सामना किया. देविका अब आईपीएस आॅफ़िसर बन कर आतंकवादी मसलों पर काम करना चाहती है.