हममें से ज़्यादातर लोगों को लगता है कि समय बदल गया है. सुप्रीम कोर्ट के समलैंगिक संबंधों को अपराध न मानने के फ़ैसले के बाद चीजें आसान हो गई हैं. लेकिन आप अपने आस-पास नज़र मारेंगें तो आपको ये पता होगा कि समय उनके लिए जैसा तब था वैसा ही आज भी है. आज भी ज़्यादातर LGBTQ+ समुदाय के लोगों की ज़िंदगी अपनों द्वारा न अपनाए जाने की ही संघर्ष कहानी बताती है. कुछ ऐसी ही कहानी अल्ली महानंद की भी है.   

मैं केवल 5 साल की थी, जब मुझे प्रिंसिपल के ऑफ़िस बुलाया गया. मुझे बोला गया कि मैं अलग हूं और मुझे स्कूल छोड़ देना चाहिए क्योंकि दूसरे बच्चों पर मेरा ‘ग़लत’ असर पड़ेगा. मैं एक लड़के के रूप में पैदा हुआ था मगर मेरी आदतें लड़कियों जैसी थी. 

अल्ली को समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे इन सब चीज़ों से जूझे क्योंकि अभी वो ख़ुद अपनी पहचान को लेकर परेशान थी. 

मैंने अपने माता-पिता को बताने से पहले पूरा एक साल ख़ुद को ही मनाने में लगा दिया. मेरा उनको बताने पर उन्होंने मुझे घर से 2 बजे रात को निकाल दिया. मैंने 2 दिन बस स्टॉप्स पर खाना ढूंढने और सोने में बिता दिया. फ़िर में सौम्या से मिली जो मेरे जैसे लोगों के लिए ही एक NGO चलाती थी. वो मुझे अपने साथ ले गई और उसने मुझे LGBTQIA+ समुदाय के बारे में मुझे सिखाया. उसने मुझसे पूछा कि मैं कौन हूं और मुझे याद है मैंने पहली बार बोला कि मैं एक लड़की हूं.   

अल्ली लड़कियों की तरह जीना चाहती थी. मगर पैसे कमाने के लिए उसके पास भी बाकि ट्रांसजेंडर की ही तरह दो विकल्प थे प्रॉस्टीटूशन या पटरी पर पैसे मांगना. और अल्ली ने दोनों ही किया. 

जब अल्ली को हर जगह अंधेरा दिख रहा वहीं उसके साथ कुछ ऐसा हुआ कि उसकी ज़िंदगी बदल गई. 

जब में 14 साल की थी मेरी मां ने मुझे घर बुलाया. आश्चर्य की बात है कि मुझे देखते ही वो रोने लगीं. उन्होंने कहा, ‘तुम मेरा हिस्सा हो. मैं तुम्हे छोड़ नहीं सकती चाहे जो हो जाए’. मैंने उनकों माफ़ किया और वापिस घर चली गई. मेरा बाक़ी परिवार मेरे बारे में थोड़ा अनिश्चित था और मुझे दोनों लड़का/लड़की कह कर बुलाते थे. लेकिन ये सब तब बदल गया जब एक सामुदायिक बैठक में, हमारे पड़ोसी मुझ पर उंगली उठाने लगे. तब मेरा बड़ा भाई मेरे लिए खड़ा हुआ. उन्होंने कहा कि मैं चाहे कोई भी हूं मैं हमेशा उनका छोटा भाई ही रहूंगा और वह अपनी अंतिम सांस तक मेरी देखभाल करेंगे! 

आज अल्ली एक मॉडल, मेकअप आर्टिस्ट और एक बेली डांसर भी है. 

मैं अभी भी गाड़ियों पर पैसा इकट्ठा करती हूं क्योंकि मेरे पास एक स्थायी नौकरी नहीं है. मैं एक ऐसी संस्था बनाने का प्रयास कर रही हूं जो छोड़े हुए LGBTQIA+ बच्चों को उनके परिवारों के साथ दोबारा मिला सके या उनकी शिक्षा पूरी करवाए. हम भी आपकी बेटियों और बेटों की तरह ही इंसान है. यदि समान अवसर दिए जाएं, तो हम भी बहुत कुछ कर सकते हैं!