जब कुछ कर दिखाने का जज़्बा हो तो, मुश्किल हालातों से लड़कर भी अपने लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है कानपुर के जाजमऊ के रहने वाले सूरज सिंह परिहार की. वो कभी कॉल सेंटर में काम करते थे लेकिन अपनी मेहनत और लगन के दम पर आज एक आईपीएस ऑफ़िसर हैं. इनकी कहानी हर उस शख़्स को प्रेरणा देगी, जो अपने सपना साकार करने में जी जान से जुटे हैं.

सूरज परिहार बचपन में अपने दादा-दादी के साथ यूपी के जौनपुर में रहते थे. यहां उनका बचपन दादा-दादी से देशभक्ति और मानवता की कहानियां सुनते हुए गुज़रा. जब वो 10 साल के थे, तब उनके पिता कानपुर के जाजमऊ में शिफ़्ट हो गए.

राष्ट्रपति से मिला था बाल श्री अवॉर्ड 

यहां उनका दाखिला एक हिंदी-मीडियम स्कूल में हुआ. सूरज पढ़ने लिखने के साथ ही खेल, कविता लिखना और पेंटिंग करने में भी अव्वल थे. उन्होंने साल 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति के. आर. नारायण के हाथों क्रिएटिव राइटिंग और कविता के लिए बाल श्री अवॉर्ड भी ग्रहण किया था.

उन्होंने यूपी बोर्ड से 12वीं की परीक्षा 85 फ़ीसदी अंकों से पास की थी. इसके बाद उन्होंने कॉलेज में एडमिशन ले लिया और आईपीएस ऑफ़िसर बनने का का सपना भी देखना शुरू कर दिया.

कॉल सेंटर में करते थे नौकरी

सूरज ने द बेटर इंडिया को दिए इंटरव्यू में बताया कि उनके घर में पिता ही अकेले कमाने वाले शख़्स थे. इसलिए ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने एक कॉल सेंटर में नौकरी करनी शुरू कर दी. लेकिन यहां पर वो 7 राउंड में पास होने के बाद अंतिम टेस्ट में फ़ेल हो गए. उन्होंने कंपनी के मैनेजर से कुछ और समय मांगा और जी जान से इंग्लिश बोलने के अपने एक्सेंट में सुधार किया. 

इस बार वो टेस्ट में अच्छे नंबरों से पास हुए. दो साल तक कॉल सेंटर में नौकरी की. नौकरी करने का असल मक़सद घर के ख़र्चों में हाथ बंटाना और सिविल सर्विस की तैयारी के लिए धन जुटाना था. लेकिन सिविल सर्विस जॉइन करने का सपना अभी भी पूरा नहीं हो सका था.

इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ना ही सही समझा. अब वो सिविल सर्विस की तैयारी करने लगे. लेकिन 6 महीने में ही उनके पैसे ख़त्म हो गए. तब उन्होंने 8 बैंक में पीओ की पोस्ट के लिए परीक्षा दी.

बैंक में की पीओ की नौकरी

सूरज सभी में उत्तीर्ण हुए और स्टेट बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र में नौकरी करनी शुरू कर दी. सूरज ने साल 2008 से 2012 तक बैंक में पीओ की नौकरी की. साल 2012 में एसएससी सीजीएल की परीक्षा में उनका चयन हो गया था. फिर उन्होंने कस्टम और एक्साइज़ डिपार्टमेंट में इंस्पेक्टर की नौकरी जॉइन कर ली. हालांकि, उन्होंने सिविल सर्विस का सपना नहीं छोड़ा. इसके लिए तैयारी करना जारी रखा.

सूरज के मुताबिक पहले अटेंप्ट में उनका सलेक्शन नहीं हुआ. इसके बाद उन्होंने दोबारा मेहनत की और दूसरा अटेंप्ट दिया. दूसरे अटेंप्ट में उन्होंने इंटरव्यू तक का सफ़र तय किया. तीसरे अटेंप्ट में उन्हें सफ़लता हासिल हुई. उनकी ऑल इंडिया रैंक 189 थी. 30 साल की उम्र में जाकर उनका सपना पूरा हुआ. 

अल्फ़ा ग्रेड के साथ पूरी की कमांडो की ट्रेनिंग

इसके बाद इंडियन पुलिस एकेडमी में उनकी ट्रेनिंग हुई. सूरज ने अपनी कमांडो ट्रेनिंग अल्फ़ा ग्रेड के साथ पूरी की. सूरज अपनी सफ़लता का क्रेडिट अपने परिवार को देते हैं. उनका कहना है कि उनके माता-पिता और पत्नी सभी उनके जीवन के हर उतार-चढाव में उनके साथ रहे. ट्रेनिंग के 18 महीने बाद उन्हें रायपुर का एसपी नियुक्त किया गया.

रायपुर में उनके काम को देखते हुए उन्हें प्रमोट करते हुए उनका ट्रांस्फर दंतेवाड़ा कर दिया गया. दंतेवाड़ा एक नक्सल प्रभावित इलाका है. सूरज ने बताया कि पिछले 5 महीने में अपने सीनियर्स के सहयोग के साथ उन्होंने यहां के हालात काफ़ी सुधार दिए हैं. उन्होंने कई नक्सलवादियों को पकड़ा है और उनसे करीब 1 करोड़ रुपये भी बरामद किए हैं. 

कविता और वीडियो के ज़रिये लोगों को कर रहे हैं जागरुक

वो इस क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए Soft And Hard पुलिस टेक्नीक का सहारा लेते हैं. उन्होंने यहां लोगों को जागरुक करने के लिए एक फ़िल्म का भी निर्माण किया है. इसका नाम है नई सुबह का सूरज. इसके अलावा वो कविता और वीडियो बनाकर भी लोगों नकसलियों से होने वाले ख़तरों के प्रति जागरुक करते हैं.

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नक्सल समस्या पर अनुभवजनित स्वरचित प्रस्तुति- बनकर तुमने नक्सलवादी, छीनी शांति, छीन ली प्रगति, छीन ली आज़ादी सबकी, और खो दी अपनी आज़ादी, बनकर तुमने नक्सलवादी| मारे तुमने किसान के बच्चे, मारे सपने, दुश्मन बनकर मारे अपने, अपन देश के, सपन देश के, मारे तुमने सपने, उड़ा दी तुमने सड़क-पुल-पुलिया, रंग दी लाल अमन की गलियाँ, अस्पताल-स्कूल की बुनियाद हिला दी, बनकर तुमने नक्सलवादी। देश विकास में बाधक बन गए, बन गए तुम हिंसा के आदी, बनकर तुमने नक्सलवादी| किसी ने तुमको बहला दिया है, किसी ने सच फुसला दिया है, तुम्हारा विकास-सुख-चैन छीनकर, किसी ने तुमको धोखा दिया है। देखो-जाँचों-परखो बूझो, अपना और पराया सूझो, क्या ग़लत है क्या सही है, तुमको जिन मंत्रों को रटाया, किसने छीने तुमसे उनको, सब जल-जंगल-ज़मीन यहीं हैं। अभी भी समय है, लौट आओ समाज में, भूल अव्यवहारिक भविष्य के सपने, लौटो व्यावहारिक आज में, लौटो कि कहीं देर ना हो जाए, हमारे चमकते सहिष्णु देश में, असहिष्णुता की अंधेर ना हो जाए! -सूरज सिंह परिहार, दन्तेवाड़ा। #dantewada #dantewadadiaries #upsc #hmo #pmo #internalsecurity #naxalism #redcorridor #maoism #hypocrisy #welfarestate #ips #ipsassociation #ipsatwork #creativewriting #serviceofthenation #guidingtheyouth #nextgen

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उनका कहना है कि इंडियन पुलिस सर्विस कोई नौकरी नहीं है, ये एक सेवा है. अच्छे लोगों की संगत रखें और अपनी और दूसरों की ग़लतियों से सीख लें. जीवन में सफ़ल होने के लिए Work-Study-Hobbies-Play इन्हीं सब चीज़ों में संतुलन बनाए रखने की ज़रूरत है.

सूरज की कहानी बताती है कि कोई भी सपना इतना बड़ा नहीं होता कि उसे पूरा न किया जा सके.