किसी ने सही कहा है कि ग़रीबी से बुरा कुछ नहीं होता, ये इंसान को शिक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकता से भी दूर कर देती है. झुग्गियों में पलने वाले बच्चों को भी शिक्षा नसीब हो, ऐसा बहुत कम हो पाता है. लेकिन सुमीती मित्तल जैसे लोग ऐसे बच्चों के जीवन में किसी फ़रिश्ते से कम नहीं होते. सुमीती मित्तल अब तक 5000 से ज़्यादा बच्चों को शिक्षा तक पहुंचाने में कामयाब रही हैं.

ये बच्चे अपना दिन कचरा बीनते हुए या भीख मांगते हुए बिताया करते थे, क्योंकि ऐसा कोई नहीं था, जो इनके भी भविष्य की चिंता करता. अगर इन्हें शिक्षा नहीं मिल पाती, तो ये गरीबी के उसी चक्र में फंसे रह जाते, जिसमें पहले गरीबी आती है फिर अशिक्षा और फिर गरीबी. सुमीती ‘प्रथम शिक्षा’ नाम के जयपुर के एक चैरिटेबल ट्रस्ट की संस्थापक हैं. ये संस्था गरीब बच्चों को पढ़ाने का ज़िम्मा उठाती है.

वो बताती हैं कि जब वो विदेश घूम रही थीं, तब उन्होंने देखा कि वहां के गरीब बच्चे भी शिक्षित थे. जबकि, भारत में शिक्षा का स्तर बेहद चिंताजनक है. तब उन्होंने फैसला किया कि वो भारत आकर गरीब बच्चों को शिक्षा देने के लिए काम करेंगी.

2005 में इसकी स्थापना हुई. ये संस्था गरीब बच्चों को आठवीं कक्षा तक की प्राथमिक शिक्षा देता है. यहां शिक्षा के अलावा, बच्चों को सिलाई, प्लंबिंग जैसे काम भी सिखाए जाते हैं. यही नहीं, यहां लड़कियों के लिए सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन भी लगायी गयी है.

यहां पढ़ने वाले बच्चों की माओं को रोज़गार देने के लिए भी ये संस्थान कुछ न कुछ करता रहता है, स्कूल के एनुअल फंक्शन के लिए भी बच्चों के कपड़े उनकी मांएं सिलती हैं, इससे पैसे भी बचते हैं और उन्हें रोज़गार भी मिल जाता है. नर्सिंग की ट्रेनिंग देकर भी बच्चों को यहां आन्त्निर्भर बनाया जाता है.

जो बच्चे पढ़ते हुए कमाई भी करना चाहते हैं, उनके लिए भी यहां अलग टाइम की व्यवस्था है. काम करने के लिए बच्चे स्कूल आना न छोडें, इसलिए यह सुविधा दी गयी है. हम सुमीती की इस पहल की सराहना करते हैं. शिक्षा से अच्छा तौफ़ा गरीब बच्चों के लिए और कुछ नहीं हो सकता.