ज़रूरी नहीं कि वो ट्रैफ़िक की रेड लाइट ही हो. आप घर से निकलते हैं और अगर नज़रें मोबाइल स्क्रीन से उठा कर बाहर देखेंगे, तो लगभग हर नुक्कड़, फुटपाथ या स्टेशन पर कोई न कोई बेघर दिख ही जाता है. कई बार हम मदद करते हैं, कई बार हम मदद को लेकर असमंजस में पड़ जाते हैं और अक्सर दुविधा के साथ ही आगे बढ़ जाते हैं.
ख़ैर शुक्र है ऐसे लोगों का, जो आगे बढ़ जाने की बजाय मदद का हाथ आगे बढ़ाते हैं. ऐसे ही लोगों में से एक हैं तमिलनाडु के डी. अरुल राज, जो हर रोज़ घंटों सड़कों पर बेघर लोगों की तलाश कर उन्हें आश्रय मुहैया कराते हैं.
अरुल हर रोज़ कम से कम 8 घंटे अपना ऑटो लेकर तमिलनाडु की सड़कों पर बेघर लोगों को ढूंढते हैं और उन्हें प्राथमिक चिकित्सा से लेकर शेल्टर होम्स तक हर तरह की मदद करते हैं.
अरुल ने पहली बार 2015 की बाढ़ के समय मदद की थी. अरुल की पत्नी के कुछ दोस्तों ने उनसे उस वक़्त मदद मांगी थी. बाढ़ के क़हर के चलते उन के पास खाने-पीने को कुछ नहीं था और न ही वो लोग घर से निकल पा रहे थे. ऐसे में अरुल ने उनकी मदद की और इस ही दौरान उसे एहसास हुआ कि ऐसे और कितने लोग होंगे, जिन्हें मदद की ज़रूरत होगी. तब अरुल ने बाढ़ में फंसे बाकी लोगों को भी खाना पहुंचाने में मदद की.
अरुल और अन्य लोगों ने लगातार छः महीनों तक बाढ़ राहत और सफ़ाई पर काम किया था.
अरुल उस वक़्त एक बैंक में काम किया करते थे, मगर सोशल सर्विस को तवज़्ज़ो देने की वज़ह से उन्हें वहां से निकल दिया गया.
एक दिन 2016 के अंत में अरुल को एक बेघर महिला मिली, जिसे उन्होंने एक शेल्टर होम में ले जाने के लिए कहा. ख़ैर, उस वक़्त अरुल बिलकुल बेख़बर थे.
मुझे इससे पहले पता भी नहीं था कि शेल्टर होम क्या होता है. इससे पहले भी, बाढ़ के दौरान भी एक महिला ने मुझसे यहीं कहा था लेकिन मैं उनकी मदद नहीं कर पाया. लेकिन इस अनुरोध के बाद मैंने बेघर लोगों की मदद करने के लिए क़दम बढ़ाया और इससे मेरी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई.
जनवरी 2017 में अरुल को एक जख़्मी बेघर इंसान की मदद करने के लिए एक फ़ोन आया था. उस दौरान अरुल ने काफ़ी NGO से बात की और अंत में उस व्यक्ति को एक प्राइवेट शेल्टर होम में भेज दिया गया.
अरुल को आख़िर में पता चल गया कि उनकों जीवन में करना क्या है. उन्होंने पहले से ही समाजिक कार्य के लिए चलने वाला फेसबुक पेज का नाम बदल कर ‘करुणाई उल्लंगल ट्रस्ट’ किया. ट्रस्ट के लिए उनकी दृष्टि बेघर लोगों को आश्रय खोजने में मदद करने के लिए थी.
अपने एक दोस्त की मदद से अरुल 2017 में एक ऑटो रिक्शा ख़रीदते हैं. वह सुबह 6 बजे से 10 बजे तक, फिर शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक ऑटोरिक्शा ड्यूटी पर होते हैं. सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक वह बेघरों की मदद करते हैं.
हर रोज़ बेघर लोगों से मुलाक़ात होने की वजह से अरुल ने प्राथमिक-चिकित्सा देना भी सीख ली.
दो वर्षों में, अरुण ने 320 से अधिक बेघर लोगों को राहत पहुंचाई है.
अरुल ने हाल ही में करुनाई उल्लांगल ट्रस्ट मोबाइल एप्लिकेशन पेश किया जिसके माध्यम से लोग बेघरों की तस्वीरें अपलोड कर सकते हैं और उनकी मदद के लिए स्वयंसेवकों को नियुक्त कर सकते हैं. इसमें ऐसे लोगों का डेटाबेस भी होता है ताकि उनके परिवार वाले उन्हें ढूंढ ले.
अरुल राज अपने नेक प्रयासों से समाज का भला कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि कई बेघर लोग उसकी वजह से आश्रय पा सकते हैं!