हममें से कई लोग अपनी नौकरी से ख़ुश नहीं होते. अपनी कम तनख़्वाह का रोना भी रोते हैं. बीतते वक़्त के साथ, बड़े-बड़े शहर में गुज़र-बसर करना भी मुश्किल होता जा रहा है. हर सामान की कीमत आकाश छू रही है. अच्छी-खासी रकम अदा करने के बाद भी अच्छी चीज़ के मिलने की कोई गारंटी नहीं.

हमारे पास इतनी सहूलियत है कि हम अपनी कंपनी और तनख़्वाह को बूरा-भला कह सकते हैं, पर सब इतने भाग्यशाली नहीं होते. हमारे आस-पास कई ऐसे लोग हैं जो हमसे बहुत कम आय में काम करने पर मजबूर हैं.

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ज़रा सोचिये एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जो पिछले 17 सालों से सिर्फ़ 2 रुपये में काम कर रहा हो. रवि कुमार तमिलनाडु के, पशु-पालन विभाग के Vellodu प्रखंड में सन् 2000 में स्वीपर नियुक्त किए गए थे. रवि पिछले 17 सालों से 2 रुपए के मामूली से वेतन में गुज़र-बसर कर रहे हैं.

नियुक्ति के समय रवि को आश्वासन दिया गया था कि 2 साल बाद उनकी तनख़्वाह बढ़ाई जायेगी. लेकिन समय बीतने के साथ ही वो वादे भी खोखले साबित हुए.

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अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ़ अब रवि ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है.

60 रुपये महीने की मामूली तनख़्वाह में किसी भी व्यक्ति के लिए गुज़र-बसर करना संभव नहीं है. सरकार के इस रवैये पर रवि ने कहा,

‘सरकार ने अमानवीय हरकत की है. किसी भी व्यक्ति को उसका हक़ देने में इतनी देरी नहीं करनी चाहिए.’
The Logical Indian

जिस देश में आज भी लोग सिर पर मैला ढोने का काम करते हैं, वहां के लोगों से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है. यहां दोष सिर्फ़ सरकार का ही नहीं है, हम सब का भी है. रवि कुमार द्वारा उठाया गया ये कदम सराहनीय है.

ये आपको भी सोचना चाहिए की जो आपके लिये काम करते हैं, उनके प्रति आपका व्यवहार कैसा है? सोचिये और कुछ करिए.

Source: Topyaps

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