दुनिया में कुछ लोग अपनी धुन के पक्के होते हैं. परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, ऐसे लोगों का जिस काम में मन लग जाता है, वो उसे पूरा कर के ही छोड़ते हैं चाहे दुनिया इधर से उधर ही क्यों न हो जाए.

चंडीगढ़ को रॉक गार्डन की पहचान देने वाले जाने-माने शिल्पकार नेक चंद भी एक ऐसे ही शख़्स थे. अपने दम पर कचरे के ढेर को एक विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल में तब्दील कर देने वाले नेक चंद की लाइफ़ बेहद प्रेरणादायक है. दो साल पहले ही कैंसर से जूझ कर उनकी मृत्यु हो गई थी और उनका पूरा जीवन इस बात की मिसाल है कि अगर इंसान चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकता.

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नेकचंद सैनी का जन्म 15 दिसंबर 1924 को शंकरगढ़ नामक कस्बे में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. उनका परिवार सब्जियां उगाकर घर का खर्च चलाता था. देश के विभाजन के बाद वो भारतीय पंजाब के एक छोटे शहर में रहने लगे. सन 1991 में उन्हें राज्य सरकार में रोड इंस्पेक्टर की नौकरी मिल गई और जल्दी ही उनका तबादला चंडीगढ़ हो गया.

जब चंडीगढ़ के निर्माण का कार्य शुरू हो रहा था तब नेक चंद को 1951 में सड़क निरीक्षक के पद पर रखा गया था. नेकचंद ड्यूटी के बाद अपनी साइकिल उठाते और शहर बनाने के लिए आस-पास के खाली कराए गए गांवों या PWD स्टोर से टूटे-फूटे सामान उठा लाते. वो खाली पड़े जंगल की खुद सफ़ाई करते और औद्योगिक कचरों से इसे कुछ क्रिएटिव रंग देने की कोशिश करते. वो अपने काम को इतनी सावधानी से निपटा रहे थे कि सरकारी अधिकारियों को इस बात की भनक 19 साल बाद यानि 1975 में लगी. वो तब तक चार एकड़ जगह पर कलाकृतियां बना चुके थे.

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जब सरकार ने इसे गिराने की कोशिश तो लोग नेक चंद के समर्थन में आ गए और आखिरकार लेंडस्केप एडवायज़री कमेटी ने इस गार्डन को बनाने की परमिशन दे दी. उस ज़माने में चीफ़ एडमिनिस्ट्रेटर डॉ. एमएस रंधावा ने इसे रॉक गार्डन का नाम दिया. 40 एकड़ में बने गार्डन का उद्घाटन फिर 1976 में कराया गया.

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ये गार्डन तीन चरणों में बनकर तैयार हुआ था. पहले फ़ेज़ में वो काम हुआ, जो उन्होंने लोगों से छिपा कर किया था. इसके बाद दूसरे फ़ेज़ का काम उन्होंने 1983 में खत्म किया. इस बार इस गार्डन में एक झरना, एक छोटा सा थियेटर, बगीचा जैसी कई चीज़ें शामिल थीं. इसके अलावा कंक्रीट पर मिट्टी का लेप चढ़ाकर 5,000 छोटी-बड़ी कलाकृतियां बनाई गई थी.

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तीसरे चरण में कई बड़े निर्माण भी हुए, जिनमें मेहराबों की एक लिस्ट शामिल थी. इन मेहराबों से झूले लटकाए गए. इसके अलावा, मूर्तियों के प्रदर्शन के लिए एक मंडप, एक मछलीघर और ओपन सिंच थियेटर भी बनाया गया और यहां हर रोज करीब 5000 पर्यटक आते हैं. गार्डन में झरनों, रंग बिरंगी मछलियों और जलकुंड के अलावा ओपन एयर थियेटर भी है. उन्होंने 1993 और 1995 के बीच केरल के पलक्कड़ जिले में डेढ़ एकड़ का एक छोटा रॉक गार्डन भी बनाया. उन्होंने चंडीगढ़ की पहली पक्की सड़क का भी निर्माण कराया था.

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बिना किसी प्रशिक्षण और अकेले दम पर एक पूरा गार्डन बनाकर नेक चंद ने आउटसाइडर आर्ट नाम के कॉन्सेप्ट को ख्याति दिलाई थी. इसका मतलब होता है खुद से सीखी गई कला, जहां इंसान के पास किसी तरह की आधिकारिक ट्रेनिंग नहीं होती और न ही मेनस्ट्रीम आर्ट की दुनिया से कोई वास्ता होता है. टूटे-फूटे सामान और मलबे से इकट्ठी की गई सामग्री से वर्ष 1975 में रॉक गार्डन जैसी हैरतअंगेज़ रचना के लिए केंद्र सरकार ने उन्हें वर्ष 1984 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था, उन्होंने 90 साल की उम्र में 11 जून, 2015 को अपनी आखिरी सांसें ली. वो आज भी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा हैं.