भारतीय इतिहास में वैसे तो कई ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैं, लेकिन 12 मई 1666 को एक आश्चर्यजनक घटना घटी थी. जब मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज को कैद कर लिया था, लेकिन शिवाजी चतुराई से औरंगज़ेब की क़ैद से भाग निकले थे. इस घटना को आज भी इतिहास की सबसे आश्चर्यजनक घटनाओं में से एक माना जाता है. 

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तो चलिए कुछ तथ्यों पर नज़र डाल लेते हैं- 

बात सन 1665 की है, जब मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने महसूस किया कि मुगल साम्राज्य के साथ युद्ध केवल साम्राज्य को नुकसान पहुंचाएगा और उनके लोगों को इससे भारी नुकसान होगा, तो उन्होंने मुगलों के अधीन अपने लोगों को छोड़ने के बजाय एक संधि करने का फ़ैसला किया. 

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इसके बाद 11 जून, 1665 को मुगल साम्राज्य के सेनापति राजपूत शासक जय सिंह प्रथम और मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज के बीच ‘पुरन्दर की संधि’ पर हस्ताक्षर किए गए थे. इस दौरान जय सिंह द्वारा पुरंदर किले की घेराबंदी करने के बाद शिवाजी को समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा था.   

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दरअसल, ‘पुरन्दर की संधि’ के पश्चात औरंगजेब ने जब अपने जन्मदिन के मौके पर छत्रपति शिवाजी को आगरा आने का न्योता दिया तो उन्होंने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, लेकिन राजा जयसिंह के काफ़ी समझाने व सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेने के बाद शिवाजी महाराज आगरा जाने के लिए राज़ी हो गए. 

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11 मई 1666 को छत्रपति शिवाजी महाराज पुत्र संभाजी व अपने कुछ खास लोगों के साथ आगरा के लिए निकले. 12 मई को औरंगज़ेब के जन्मदिन का जश्न होना था. 12 मई को जब छत्रपति शिवाजी आगरा पहुंचे तो सिर्फ़ दो लोगों ने उनका स्वागत किया तो उन्हें हैरानी हुई. इस दौरान राजा जयसिंह के पुत्र कुंवर रामसिंह ने औरंगज़ेब को शिवाजी के आगमन के बारे में बताया. 

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इस दौरान दरबार में पहुंचते ही छत्रपति शिवाजी महाराज ने बादशाह औरंगज़ेब के समक्ष नज़राना पेश किया, लेकिन औरंगज़ेब ने शिवाजी का हालचाल पूछना तो दूर उनकी तरफ़ देखा तक नहीं. कुछ देर बाद शिवाजी महाराज को क़रीब 5 हज़ार दरबारियों के साथ खड़ा कर दिया गया. इस दौरान दरबार में लगातार शिवाजी महाराज का अपमान किया जा रहा था. 

बार-बार जान-बूझकर अपमान किये जाने से परेशान होकर आख़िरकार छत्रपति शिवाजी महाराज के सब्र का बांध फ़ूट पड़ा. शिवाजी महाराज ने कहा उनके साथ विश्वासघात हुआ है तो कुंवर रामसिंह उन्हें समझाने लगे. इस पर शिवाजी भरे दरबार निडर होकर कहा कि उन्हें मौत का कोई डर नहीं है. इस बीच अपने पुत्र संभाजी को लेकर वहां से जाने लगे. तो औरंगज़ेब के इशारे पर कुंवर रामसिंह शिवाजी के साथ गये. ये शिवाजी महाराज की औरंगज़ेब के साथ पहली और आख़िरी मुलाकात थी. 

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दूसरे दिन काफ़ी समझाने के बावजूद भी शिवाजी मुग़ल दरबार में उपस्थित नहीं हुए. इस बीच औरंगज़ेब ने एक बैठक बुलाई जहां अधिकतर लोगों ने शिवाजी को मौत की सज़ा देने की बात कही. लेकिन जब कुंवर रामसिंह को ये बात पता चली तो उसने औरंगज़ेब को साफ़-साफ़ कह दिया कि मेरे पिताजी के कहने पर शिवाजी महाराज यहां आये हैं, शिवाजी को मारने से पहले आप मुझे मार दिजिए. इस पर औरंगज़ेब ने जहांआरा बेगम से कहा कि पहले पता किया जाए कि राजा जयसिंह ने शिवाजी से क्या वादे किए हैं? 

इस बीच छत्रपति शिवाजी महाराज ने कुछ भी खाने से इंकार कर दिया. इस दौरान उन्हें राजा विट्ठलदास की हवेली में कड़े पहरे में क़ैद करके रखा गया था. औरंगज़ेब ने पूरी हवेली में पांच सुरक्षा चक्र बना दिए. हवेली में कुछ गिने चुने लोगों को ही आने की इज़ाज़त थी. जब बीच शिवाजी को एहसास हुआ कि वो अब फ़ंस चुके हैं.  

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21 मई को शिवाजी महाराज ने मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को संदेश भेजा कि वो अपने एक क़िले और बड़ी रकम उनको देने के लिए तैयार हैं बशर्ते कि उन्हें छोड़ दिया जाए, लेकिन औरंगज़ेब ऐसी बातों में आने वाला नहीं था. 16 जून को एक बार फिर से शिवाजी महाराज ने औरंगज़ेब को एक और संदेश भेजा कि वो अब फ़कीर बनकर बनारस में रहना चाहते हैं, लेकिन शातिर औरंगज़ेब ने ये भांप लिया था. 

इस बीच समय बीतता गया औरंगज़ेब की क़ैद में शिवाजी महाराज बीमार भी रहने लगे, लेकिन साथ ही भागने की योजना भी बनाते रहे. एक दिन शिवाजी ने देखा कि क़िले के सैनिक हर दिन बड़ी-बड़ी टोकरियां में ग़रीबों व ब्राह्मणों को प्रसाद बांट रहे हैं. योजना के तहत शिवाजी महाराज ने भी ग़रीबों को प्रसाद बांटने की इच्छा जताई. एक दिन मौका पाकर शिवाजी महाराज अपने हमशक्ल चचेरे भाई हिरोजी को अपनी जगह सुलाकर बेटे संभाजी के साथ मिठाई की टोकरियों में बैठ कर क़िले से भाग निकले. 

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इस दौरान आगरा के बहार कुछ दूरी पर शिवाजी महाराज के भरोसेमंद लोग उनका इंतज़ार कर रहे थे. अपने पुत्र संभाजी को वहां एक भरोसेमंद साथी के पास छोड़ शिवाजी साधु के भेष में रायगढ़ के लिए निकल पड़े.