अर्ज़ किया है, ‘सबब रुस्वाई का होती है मैकशी, जिगर को मैकशी ने मगर मुम्ताज़ कर दिया’.

आज इस आर्टिकल की शुरुआत हम जिगर मुरादाबादी के इस बेहद ही खूबसूरत इस शेर से कर रहे हैं. ‘जिगर’ मुरादाबादी उर्दू के एक ऐसे शायर थे, जिनकी कलम से निकली एक-एक शायरी प्यार में टूटे आशिक की कहानी बयां करता है. जिगर साहब की शायरियों के तो क्या ही कहने दिल के दर्द को वो बख़ूबी शब्दों में पिरो कर शायरी बना देते थे. ‘जिगर’ मुरादाबादी, वो शायर थे, जिन्होंने बेपनाह मुहब्बत की, मगर जब उनका दिल टूटा, तो उन्होंने शराब को अपना सहारा बना लिया. वो शराब में इस कदर डूब गए कि उनकी शायरी में मय-कशी, मय-कदे और मय-कशी की ही ख़ुशबू आने लगी. ‘जिगर’ पीते ज़रूर थे, मगर वो थे बहुत नेक और सलीक़ेमंद इंसान. अक्सर वो लोगों की मदद करके भूल जाया करते थे.

उर्दू शायरी में उनका नाम इसलिए भी लोकप्रिय है क्योंकि ’जिगर’ मुरादाबादी के लिए कहा जाता है कि जिस मुशायरे में वो बैठते थे, फिर उस मुशायरे में दूसरा शायर टिक नहीं पाता था. जिगर मुरादाबादी का असली नाम अली सिकंदर था. जिगर साहब के लिए कहा जाता है, कि वो हुस्न और इश्क़ के क़द्रदान थे और जब-जब उनका दिल टूटा उन्होंने मयखाने का रूख किया. जैसे -जैसे उनके गले से शराब नीचे उतरती थी, उनकी कलम से उनका ग़म शब्दों के रूप में निकलता था.

आज हम आपके लिए जिगर मुरादाबादी के ही कुछ चुनिंदा शेरोन का खज़ाना लेकर आये हैं.

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दोस्तों अब समझ आया न कि दर्द को अल्फ़ाज़ देना क्या होता है… जाते-जाते एक और शेर:

‘मुझे उठाने को आया है वाइज़े-नादां,

जो उठ सके तो मेरा साग़रे-शराब उठा

किधर से बर्क़ चमकती है देखें ऐ वाइज़,

मैं अपना जाम उठाता हूं, तू किताब उठा.’