जीवन के फलक को देखने के कई नज़रिए होते हैं. कभी हम रोते हैं तो कभी मुस्कुराते हैं. कभी रूठते हैं तो कभी मनाते हैं. कभी उदास होते हैं तो शाम के साए में बैठ सोचने लग जाते हैं कि ‘सुबह होती है,शाम होती है, जिंदगी यूँ ही तमाम होती हैं’ लेकिन उदासियों के घने अंधेरों को जो पार कर जाए, उसे ही सच्चा ज़िंदादिल कहा जाता है.
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मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव में रहने वाले बसोरी लाल भी एक ऐसे ही ज़िंदादिल हैं. पचास साल के बसोरी की लंबाई महज 29 इंच है लेकिन उनकी मानसिक मज़बूती का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने कभी इस ख़्याल को अपनी ज़िंदगी पर हावी नहीं होने दिया.
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वो अपने 55 वर्षीय भाई गोपी लाल और उनकी पत्नी सतिया के साथ ही रहते हैं. गोपी ने कहा कि कई अलग-अलग गांवों से लोग हमारे घर मेरे भाई को देखने आते हैं. ये हमारे लिए गर्व की बात है. हमें बसोरी की लंबाई न बढ़ पाने का कोई मलाल है. वहीं बसोरी का कहना था, ‘मैं जैसा भी हूं, ठीक हूं. मुझे अपनी लंबाई की वजह से कोई परेशानी नहीं है.’
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बसोरी ने कहा कि आज भले ही उनके छोटे कद के लिए वे कई लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हो, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. अपने जीवन के शुरुआती सालों में उन्हें अपनी लंबाई की वजह से मानसिक पीड़ा का शिकार होना पड़ा था. गांववाले उनका मज़ाक उड़ाते, उन्हें एलियन कह कर पुकारते हैं.
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ज़िंदगी के पांचवे दशक में पहुंचने के बाद बसोरी अब चैन की सांस ले रहे हैं. अब उनकी लंबाई को लेकर कोई मज़ाक नहीं बनाता है. दूसरे लोगों की तरह ही अब वो एक सामान्य जीवन बिता रहे हैं.
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गौरतलब है बचपन में बसोरी के साथ कोई समस्या नहीं थी, लेकिन जब वो पांच साल के हुए तो घरवालों ने ध्यान दिया कि उनकी लंबाई बढ़ ही नहीं रही है.
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बसोरी के भाई, गोपी के मुताबिक, ‘हमारे परिवार में से कोई भी उसे इलाज के लिए नहीं ले जा पाया. आखिर हम कैसे बसोरी का इलाज कराते? हम गरीब लोग हैं. मैं एक मज़दूर हूं. हमारे पास पेट भरने लायक पैसा ही हो पाता है. हम इसका इलाज कराने कहां लेकर जाते? आज भी बसोरी के रिश्तेदार ये नहीं समझ पाए हैं कि उनकी लंबाई इतनी कम कैसे रह गई है.’
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बसोरी जैसे-जैसे बड़ा हुआ, उसे काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. गांववालों के लिए वो मज़ाक का पर्याय तो था ही, साथ ही भयंकर गरीबी से भी दो चार होना पड़ा. हालांकि, वक़्त के थपेड़ों को झेलकर आज वो जहां कहीं भी हैं, संतुष्ट है. उसने कहा, ‘लोग मेरा मज़ाक बनाते, मुझे एलियन कह कर पुकारते. पर वो समय अब गुज़र चुका है. अब गांववाले मेरे साथ इज़्ज़त से पेश आते हैं.’
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बसोरी अपनी भाभी के साथ ही एक स्थानीय फ़ैक्ट्री में काम करते हैं. सतिया भी 50 साल की ही हैं. उन्होंने बताया कि बसोरी बेहद सकारात्मक इंसान हैं. कई मुसीबतें झेलने के बाद भी वो एक खुशमिज़ाज व्यक्ति हैं. उन्हें जीवन में अपने परिवार और अपनी विहस्की से बेहद लगाव है.
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बसोरी शादी के बारे में नहीं सोचते हैं और वे अपने परिवार के साथ ही रहना चाहते हैं. उन्होंने कहा, ‘मेरा शादी करने का कोई इरादा नहीं है. मैं जैसे आज काम कर रहा हूं, ताउम्र वैसे ही करना चाहता हूं. मैं हमेशा अपने भाई के साथ ही रहना चाहता हूं.’ फैक्ट्री से बसौरी जब घर लौटते हैं, तो सोने से पहले अपनी पसंदीदा विहस्की ज़रुर लेते हैं. बसौरी के मुताबिक, ‘रात को सोने से पहले जब मैं विहस्की लेता हूं, तो अपने सभी गम भुला देता हूं.’