रामायण के अभी इतने रहस्य अनजाने हैं, जिसकी कल्पना करना भी हमारे लिए मुश्किल होता है. रामायण एक अथाह सागर की भांति है, जिसमें डुबकी लगाने पर भी इसकी गहराई का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता. रामायण की घटनाओं का अलग-अलग तरीके से व्याख्यान किया गया है. रामायण के कुछ विशेष पात्रों अथवा चरित्रों की बात तो सभी करते हैं, लेकिन एक ऐसा भी पात्र है जिसकी चर्चा विरले ही कहीं मिलती है. आज हम बात कर रहे हैं लक्ष्मण की पत्नी देवी उर्मिला की. लोगों का मानना है कि रामायण में उर्मिला के त्याग, सेवा, प्रेम और नि:स्वार्थ भक्ति को कम आंका गया है. रामायण में ‘देवी उर्मिला’ एक साधारण महत्व की तरह अंकित की गयी हैं जबकि सत्य यह है कि ‘उर्मिला’ का त्याग और समर्पण अतुलनीय था, अनमोल था. उर्मिला ने जो दुःख सहे, उस पर तो वो आंसू भी नहीं बहा पाईं. बावजूद इसके रामायण में उर्मिला और उनके योगदान को वो जगह नहीं मिल पाई, जिसकी वे हक़दार थीं.
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तो चलिए जानते हैं त्याग और समर्पण की अतुलनीय प्रतिमूर्ति देवी उर्मिला को.
राजा जनक की असीम सुंदरी कन्या और महाराज दशरथ की पुत्रवधू ‘देवी उर्मिला’ माता सीता की ही छोटी बहन थी. उनका विवाह भगवान राम के अनुज लक्ष्मण के साथ हुआ था. राम के वनवास जाने के समय उर्मिला भी एक पतिव्रता स्त्री की तरह अपने पति लक्ष्मण जी के साथ जाना चाहती थीं लेकिन लक्ष्मण जी ने उन्हें ले जाने से इंकार कर दिया. उर्मिला ने बहुत मिन्नतें की. वो अपने पति की सेवा करना चाहती हैं, पति के हर दुःख-सुख की साथी बनना चाहती हैं, पर लक्ष्मण जी ने कर्तव्य और धर्म की दुहाई देकर देवी उर्मिला को वन जाने से रोक दिया. लक्ष्मण के मुताबिक, ‘मैं अपने भ्राता राम और भाभी सीता की सेवा करने के लिए जा रहा हूं. मैं नहीं चाहता कि सेवा में कोई भी कमी रह जाये.’
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लक्ष्मण जी ने मां-बाप की सेवा करने के लिए उर्मिला को अयोध्या ही छोड़ना उचित समझा. उन्हें शायद पता था कि वे लोग जब वनवास जाएंगे, तो उनके माता-पिता को इसका गहरा सदमा लगेगा. इसलिए लक्ष्मण जी विकट क्षणों में मां-बाप को सहारा और सहानुभूति देने के लिए उर्मिला को छोड़ कर वनवास चले गये.
कुछ पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, माना ये जाता है कि उर्मिला के उन नाजुक कंधों पर लक्ष्मण जी बहुत बड़ा दायित्व डाल कर चले गये. किसी भी स्त्री के लिए विवाह, उसके संपूर्ण होने की निशानी होती है. वैवाहिक जीवन के वो अनमोल पल, वो जीवन सरिता, जो कोई भी नववधू अपने पति के साथ गुजारती है या गुजारना पसंद करती है. शायद वो पल उर्मिला के नसीब में नहीं थे. इस दुनिया की कोई भी नववधू अपने पति से कुछ समय के लिए दूर नहीं रह सकती. देवी उर्मिला अपने पति से एक नहीं, दो नहीं, बल्कि पूरे 14 साल अलग रहीं. भला किसी नवविवाहित स्त्री के लिए इससे बड़ा त्याग और समर्पण क्या हो सकता है.
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खैर, उर्मिला ने पूरे 14 वर्षों तक अपने पति के वियोग में ज़िंदगी बिताई. यह उर्मिला का अखंड पतिव्रत धर्म ही था कि उन्होंने कभी किसी की तरफ देखा तक नहीं. उर्मिला के महान चरित्र, अखंड पतिव्रत, स्नेह और त्याग की चर्चा रामायण में जितनी होनी चाहिए, उतनी हो न सकी.
उर्मिला के लिए सबसे अजीब स्थिति तो यह थी कि लक्ष्मण को दिये वचन के कारण वह आंसू भी नहीं बहा सकती थीं. अगर उर्मिला पति के वियोग मे आंसू बहाती और अपने दुख में डूबी रहतीं तो फिर परिजनों का ख्याल कैसे रख पातीं? यह शायद ही कोई कल्पना कर सकता है कि किसी नवविवाहित स्त्री के लिए अपने पति को 14 वर्षों के लिए अपने से दूर जाते देखना और उसकी विदाई पर आंसू भी न बहाना कितना कष्टकारी होता है. जब श्री राम जी के वनवास के बाद महाराज दशरथ स्वर्ग सिधार गये, तब भी अपनी वचनबद्धता के कारण उर्मिला नहीं रोईं. आखिर उस हृदय विदारक क्षण में अपने को संभालना उर्मिला के लिए कितना मुश्किल पल रहा होगा.
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हालांकि, महाराज जनक अपनी पुत्री को मायके अर्थात मिथिला ले जाना चाहते थे ताकि मां और सखियों के बीच में उर्मिला के पति वियोग का दुःख कुछ-कुछ कम हो सके. लेकिन उर्मिला ने मिथिला जाने से साफ इंकार कर दिया. उर्मिला के मुताबिक, ‘अब पति के परिजनों के साथ रहना और दुखों में उनका साथ न छोड़ना ही उनका धर्म है.’
इसलिए इतने सारे त्याग-बलिदान और कष्ट सहने के बावजूद भी वचनों में बंधी देवी उर्मिला रामायण में नेपथ्य में रहीं. उर्मिला ने जो सहा शायद ही आज की कोई स्त्री ऐसा कर पाये. इसलिए वर्तमान की दृष्टि से देखें तो उर्मिला रामायण की सबसे अतुलनीय और पवित्र पत्नी के साथ-साथ त्याग, बलिदान और समर्पण की देवी हैं. आज की पीढ़ी के लिए उर्मिला का व्यक्तित्व सबसे ज़्यादा सम्माननीय और पूज्यनीय होना चाहिए.
Feature image Source: blogspot and youngisthan