14 फरवरी, 2019…

इस तारीख को हम और आप भले भूल जाएं, पर वो 40 से ज़्यादा परिवार नहीं भूल पाएंगे जिन्होंने अपने घर के सदस्यों को खोया. वो मां नहीं भूल पाएगी, जिसने बुढ़ापे में अपना बेटा खोया, वो पत्नी नहीं भूल पाएगी जिसने अपना पति खोया.  

आप और हमारे लिए पुलवामा की घटना, देश की सुरक्षा को चुनौती देना है, पर उन 40 से ज़्यादा परिवारों के लिए ये कही ज़्यादा है.  

Indian Express

 कैसा लगता हो किसी अपने को इतनी बुरी तरह खोना, ये वही समझ सकता है जिसने किसी अपने को खोया है. सोशल मीडिया साइट्स पर कई बार ये लाइन पढ़ी है,

‘एसी वाले लिविंग रूम से ख़बरें लिखना, पोस्ट लिखना आसान है, सीमा पर जाओ पता चलेगा.’

16 आने सच बात है ये. जो वहां पर होते हैं वही समझ सकते हैं कि युद्ध क्या होता है, मौत के साये में रहकर रोज़ जीना क्या होता है? 

पुलवामा में 14 फरवरी को हुए आतंकी हमले में और 18 फरवरी को चरमपंथियों के साथ मुठभेड़ में जो जवान शहीद हुए, उनमें से कुछ जवानों के परिवारवालों का कुछ ये कहना था: 

मेजर विभूती ढोंढियाल की पत्नी ने ये कहा:

इन परिवारों का इतना गुस्सा समझ में आता है, पर जो इस घटना की आड़ में अतिरिक्त नफ़रत फैला रहे हैं उनका ये रवैया समझ नहीं आता. शहीदों के बदले की मांग करने वालों, युद्ध की मांग करने वालों, 1 बदले 10 सिर की मांग करने वालों को अंदाज़ा भी है कि युद्ध करना क्या होता है? 

सोशल मीडिया साइट्स पर इस तरह की तस्वीरें दिख रही हैं. 

Firstpost
Firstpost
Firstpost

इन तस्वीरों और पोस्ट को बनाने वाले ने क्या खोया है? जवानों को खोने का ग़म सभी को है, पर क्या उन परिवारों से ज़्यादा है? हो ही नहीं सकता. 

आज तक कई जवान शहीद हुए हैं. हर हफ़्ते दहशतगर्दो से लड़ते-लड़ते होते हैं और आगे भी होंगे पर शहीदों की शहीदी की आड़ में अपना उल्लू सीधा करना कहां तक उचित है? सवाल करिए, ख़ुद से, अपन दोस्तों से और उनसे जिनके पास निर्णय लेने की ताकत है.