14 फरवरी, 2019…
कैसा लगता हो किसी अपने को इतनी बुरी तरह खोना, ये वही समझ सकता है जिसने किसी अपने को खोया है. सोशल मीडिया साइट्स पर कई बार ये लाइन पढ़ी है,
पुलवामा में 14 फरवरी को हुए आतंकी हमले में और 18 फरवरी को चरमपंथियों के साथ मुठभेड़ में जो जवान शहीद हुए, उनमें से कुछ जवानों के परिवारवालों का कुछ ये कहना था:
मेजर विभूती ढोंढियाल की पत्नी ने ये कहा:
#WATCH Wife of Major VS Dhoundiyal (who lost his life in an encounter in Pulwama yesterday) by his mortal remains. #Dehradun #Uttarakhand pic.twitter.com/5HWD6RXwnO
— ANI (@ANI) February 19, 2019
इन परिवारों का इतना गुस्सा समझ में आता है, पर जो इस घटना की आड़ में अतिरिक्त नफ़रत फैला रहे हैं उनका ये रवैया समझ नहीं आता. शहीदों के बदले की मांग करने वालों, युद्ध की मांग करने वालों, 1 बदले 10 सिर की मांग करने वालों को अंदाज़ा भी है कि युद्ध करना क्या होता है?
सोशल मीडिया साइट्स पर इस तरह की तस्वीरें दिख रही हैं.
इन तस्वीरों और पोस्ट को बनाने वाले ने क्या खोया है? जवानों को खोने का ग़म सभी को है, पर क्या उन परिवारों से ज़्यादा है? हो ही नहीं सकता.
आज तक कई जवान शहीद हुए हैं. हर हफ़्ते दहशतगर्दो से लड़ते-लड़ते होते हैं और आगे भी होंगे पर शहीदों की शहीदी की आड़ में अपना उल्लू सीधा करना कहां तक उचित है? सवाल करिए, ख़ुद से, अपन दोस्तों से और उनसे जिनके पास निर्णय लेने की ताकत है.