‘उन्हें ग़ैर समझ हाथ बढ़ाने से बचता है वो
दुनिया में बहुत रंज़िशें हैं. एक नज़र देखें तो सबकुछ एक-दूसरे के ख़िलाफ़ मालूम पड़ता है. कहीं धर्म, तो कहीं जाति, कहीं रंग तो कहीं समुदाय… तमाम वजह हैं, जो इंसान और मानवता के बीच दरार पैदा करती हैं. ये दरार सदियों से बहाये रहे ख़ून के प्रवाह से लगातार चौड़ी होती जा रही है.
लेकिन कुछ लोग आज भी हैं, जो इस उफ़नाती ख़ून की नदी के आगे बांध का काम कर रहे हैं. वो लगातार किनारे पे बसी मानवता को इसकी चपेट में आने से बचा रहे हैं.
हम आज ऐसे ही लोगों का ज़िक्र करेंगे, जिन्होंने इस साल यानि 2020 में बिना किसी भेदभाव के एक-दूसरे की मदद की और पेश की ऐसी मिसाल, जो आने वालों कई सालों तक इंसानियत की झंडाबरदारी करती रहेगी.
1-अयोध्या में मस्जिद के लिए हिंदू शख़्स ने दिया दान
अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद एक अरसा पुराना है. फ़िरकापरस्तों ने इस मुद्दे के ज़रिए आम लोगों को लड़ाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की. लेकिन समाज के एक बड़े तबके ने हैवानियत का साथ देना नामंज़ूर कर दिया. इसी का सबूत है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद जब अयोध्या में मस्जिद निर्माण शुरू हुआ तो सबसे पहला दान एक हिंदू शख़्स की तरफ़ से आया है. लखनऊ के रहने वाले रोहित श्रीवास्तव ने मस्जिद के लिए 21 हज़ार रुपये दान किए हैं.
2- मुस्लिम बच्ची को दफ़नाने के लिए हिंदू परिवार ने दिया अपने खेत की ज़मीन
ये घटना हरियाणा के जींद की है. यहां एक मुस्लिम परिवार में एक बच्ची की मौत हो गई. कब्रिस्तान में पानी भरने के चलते शव को वहां दफ़नाया नहीं जा सकता था, ऐसे में हिंदू समुदाय के एक शख़्स ने श्मशान के पास अपने खेत का टुकड़ा देकर गमगीन परिवार की मदद की. जिसके बाद बालिका के शव को दफ़नाया जा सका.
3- मस्जिद में धूम-धाम से हुई हिंदू जोड़े की शादी
केरल के कायमकुलम में एक मस्जिद में हिन्दू जोड़े की शादी धूमधाम से कराई गई. दरअसल, 24 साल की अंजू अशोकन ने कुछ साल पहले अपने पिता को खो दिया था. संसाधनों की कमी के कारण उसकी मां बिंदू, शहर की मस्जिद में अपनी बेटी की शादी के लिए मदद मांगने पहुंची.
चेरवली मुस्लिम जमात मस्जिद के सचिल नुजुमुदेने अलुममुट्टिल ने बताया कि जब उन्होंने जमात कमेटी के सामने ये मामला रखा तो सभी ने इस जोड़े की शादी मस्जिद में हिंदू रीति-रिवाज से कराने का फ़ैसला किया. इसके साथ ही जमात कमेटी ने दुल्हन को 2 लाख रुपये के सोने के जेवरात भी दिए.
4- बेटी के निकाह के कार्ड पर चांद-सितारों के साथ-साथ छपवाई गणेश की फ़ोटो
उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक शख़्स मोहम्मद सराफ़त ने सांप्रदायिक सौहार्द की एक अनोखी मिसाल पेश की. उन्होंने अपनी बेटी अस्मा ख़ातून के निकाह के कार्ड पर चांद-सितारों के साथ-साथ गणेश की फोटो छपवाई है. उन्होंने ये कदम हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के लिए उठाया. शादी के कार्ड में एक तरफ़ गणेश जी, राधा-कृष्ण के मोर के पंख तो दूसरी ओर चांद सितारे और गुलाब की फ़ोटो छपी थी.
5- कोरोना महामारी के दौरान सिख समुदाय ने की लोगों की मदद
सिख समुदाय के लोग हमेशा ही ज़रूरतमंदों की मदद के लिए आगे रहे हैं. कोरोना महामारी के दौरान भी उन्होंने अपनी सेवा जारी रखी. लॉकडाउन के दौरान जब लाखों की संख्या में प्रवासी मज़दूर पलायन कर रहे थे, तब सिखों ने उनके लिए जगह-जगह लंगर की व्यवस्था की. ऐसा करते वक़्त उन्होंने किसी की भी जाति या धर्म को नहीं देखा.
इसके साथ ही कोरोना वायरस से लड़ने के लिए दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी ने मुफ़्त एंबुलेंस सेवा की शुरुआत की . कमेटी ने गुरु हरिकृष्ण साहिब के प्रकाश पर्व पर दिल्ली में कोरोना के मरीज़ों को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाने के लिए 12 एंबुलेंस तैयार की और ये सभी एंबुलेंस एडवांस मेडिकल सुविधाओं से लैस हैं.
On the occasion of Parkash Purab of Bala Pritam Sri Guru Harkrishan Sahib Ji, we are blessed to inaugurate “Ambulance Sewa” for Corona Patients. These ambulances are laced with advanced healthcare facilities and would operate all across Delhi 🙏🏻 pic.twitter.com/2dg86SD0B3
— #Istandwithfarmers Manjinder Singh Sirsa (@mssirsa) July 14, 2020
वहीं, दिल्ली में कोरोना मरीज़ों की बढ़ती संख्या को देखते हुए दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने अपने सभी गुरुद्वारों को कोविड केयर सेंटर में बदलने की पेशकश की. कमेटी ने इस संदर्भ में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिख कर आवश्यक मंज़ूरी देने की अपील की थी. सिख समुदाय ने महामारी के दौरान आपसी सौहार्द के ऐसे ही सैकड़ो उदाहरण पेश किए हैं.
ताज़ा उदाहरण दिल्ली के बांग्ला साहब गुरुद्वारे में इसी साल दिसंबर से शुरू होने जा रही डायग्नोस्टिक फ़ैसिलिटी है. सभी को सस्ती स्वास्थ सुविधा उपलब्ध हो इसके लिए गुरुद्वारे ने ये कदम उठाया है, जिसके तहत ग़रीबों को एमआरआई स्कैन के लिए महज़ 50 रुपये अदा करने होंगे. ये सेवा देश में सबसे सस्ती होगी. साथ ही डायलिसिस कराने के लिए केवल 600 रुपए शुल्क देना होगा. वहीं, निम्न आय वर्ग वालों के लिए एक्स रे और अल्ट्रासाउंड केवल 150 रुपए में होगा.
6- हिंदू महिला और उसके बच्चे की जान बचाने के लिए मुस्लिम शख़्स ने तोड़ा रोज़ा
दिल्ली के काका नगर में रहने वाले रूपेश कुमार की पत्नी प्रेग्नेंट थीं और उन्हें अस्पताल में एडमिट कराया गया. बच्चा सीज़ेरियन होना था इसलिए डॉक्टर ने तुरंत 2 यूनिट ख़ून का इंतजाम करने को कहा. मगर रूपेश को लाख कोशिश करने के बाद भी कहीं से B+ ब्ल्ड नहीं मिला.
तब एक उनके एक दोस्त संदीप कुमार ने एक व्हाट्सएप ग्रूप में इसकी पूरी जानकारी और अस्पताल का पता शेयर कर दिया. उस ग्रूप से सूचना मिलने पर समाज सेवक आबिद सैफ़ी ने उनसे संपर्क किया और बताया कि वो ब्लड डोनेट करने को तैयार हैं. लेकिन हैरत की बात ये है कि उस वक़्त वो रोज़े से थे मगर स्थिति की गंभीरता को देखते उन्होंने अपना रोज़ा तोड़ दिया और रक्तदान किया. आबिद सैफ़ी के इस नेक क़दम से मां और बच्चे दोनों की जान बच गई.
7- बेटे ने शव लेने से किया इन्कार तो मुस्लिम युवकों ने किया हिंदू शख़्स का अंतिम संस्कार
ये घटना महाराष्ट्र की है. यहां 78 वर्षीय हिंदू बुज़ुर्ग़ की हार्ट अटैक से मौत हो गई. वहीं, मृतक की पत्नी का अकोला के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (GMCH) में कोरोना वायरस का इलाज चल रहा था. नागपुर में रहने वाले उनके बेटे से संपर्क किया गया लेकिन कथित तौर पर उसने शव का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. ऐसे में एक स्थानीय संगठन अकोला कच्छी मेमन जमात के कुछ मुस्लिम युवा सामने आए और बुज़ुर्ग़ की चिता को आग दी.
मुस्लिम संगठन के अध्यक्ष जावेद ज़केरिया ने उस वक़्त जानकारी दी थी कि, ‘वो अब तक 21 Covid मरीज़ों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं जिनमें से पांच हिंदू थे.’
8- लॉकडाउन में फंसे मदरसे के बच्चों की मदद के लिए आगे आया गुरुद्वारा
लॉकडाउन के दौरान पंजाब के मालेरकोटला स्थित गुरुद्वारा ‘साहिब हा का नारा’ के पास में ही एक मदरसे में क़रीब 40 बच्चे फंस गए हैं. अचानक हुए लॉकडाउन के चलते मदरसा इन बच्चों के ख़ाने का इंतज़ाम नहीं कर पाया है. इसके चलते बच्चों को काफ़ी परेशानी हो रही थी. ये बात जब गुरुद्वारा को पता चली तो उन्होंने सभी बच्चों की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और उन्हें खाना खिलाया.
ये महज़ कुछ घटनाएं हैं, जिनका ज़िक्र हमने यहां किया है. वास्तव में हमारे समाज में हर रोज़ ऐसे मामले सामने आते हैं, जहां लोग आपसी भाईचारे की मिसाल क़ायम करते हैं. जब कभी आपके मन में किसी की प्रति नफ़रत पैदा हो, तो एक बार को इन घटनाओं को याद कर लीजिएगा. क्योंकि…
‘मरने के बाद तेरा-मेरा मज़हब क्या मुसाफिर