एक ज़माना था जब लोगों को किताबें पढ़ने की लत होती थी, अब मोबाईल और कंप्यूटर सक्रीन की लत है. किताबी कीड़े इस बात से ख़फ़ा हो सकते हैं, पर इस बात से वे इंकार भी नहीं करेंगे. बस, ट्रेन, मेट्रो में चेतन भगत और दुर्जोय दत्त के अलावा किसी और लेखक की किताब किसी के हाथ में दिख जाए तो दिल को तसल्ली ज़रूर होती है.
पिछले कुछ सालों में इंग्लिश की किताबों का चलन देश में बढ़ा है. अग्रेज़ी की किताबें समझ में आए या ना आए, पर हाथ में रखना बहुतों के लिए एक स्टाइल स्टेटमेंट है. हिन्दी की किताबें पढ़ना तो दूर कुछ लोग तो हिन्दी में बात तक करना पसंद नहीं करते. ऐसे हालात में क्षेत्रीय भाषाओं की दुर्गति स्वाभाविक है.
क्षेत्रिय भाषा जैसे कि मराठी, पंजाबी और उड़िया में लिखने वाले कवि और लेखकों के अनुसार सिर्फ़ कविताएं लिखकर उनका जीवनयापन नहीं हो सकता. कारण, सिर्फ़ एक पाठकों का अभाव. पिछले दो दशकों में क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य की जो दुर्दशा हुई है वो भी एक चिंता का विषय है. पाठकों के अभाव में अच्छी-अच्छी किताबें भी ठंडे बस्ते में जा रही हैं. यही नहीं, इन्हें दूसरी भाषाओं में भी ट्रांसलेट नहीं किया जाता. एक समय था जब क्षेत्रिय भाषाओं की किताबों को दुनिया की कई भाषाओं में ट्रांसलेट किया जाता था.
मैथिली लेखक चंदन कुमार झा को उनकी कृति ‘धरती सउ अकास ढेर’ 2017 में साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार से नवाज़ा गया लेकिन चंदन का भी यही मानना है कि सिर्फ़ कविताएं लिखकर वे इस देश में अपना गुज़ारा कभी नहीं कर सकते. 32 वर्षीय चंदन कोलकाता की एक प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनी में काम करते हैं.
चंदन ने कहा,
‘एक कवि अपनी कलम से कामयाबी हासिल कर सकता है. पर ये ज़रूरी है कि आने वाले समय में भी उसे उसकी रचना के लिए सराहा जाए.’
चंदन इकलौते लेखक नहीं हैं जो ऐसा सोचते हैं, ऐसे कई क्षेत्रिय भाषा के कवि और लेखक हैं, जो कुछ ऐसा ही सोचता है. ऐसे बहुत से कवि हैं देश में जिनकी रचना बेहद उत्कृष्ट है, उन्हें कई तरह के पुरस्कारों से नवाज़ा गया है पर उन्हें पढ़ने वाले लोग नहीं हैं.
सुर्यास्नता त्रिपाठी को उनकी उड़िया रचना ‘इ संपर्क इमिती’ के लिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार मिला है.
त्रिपाठी अभी IIT Hyderabad से Phd कर रहे हैं. उन्होंने ने बताया,
”क्षेत्रिय भाषा में लिखने से आपको पैसे नहीं मिलते. इससे भी बड़ी मुसीबत है Publishers को विश्वास दिलाना की किताब चल जाएगी. Publishers नए कवियों की कविता छापकर रिस्क नहीं लेना चाहते.
कश्मीर की निघत साहिबा को भी साहित्य अकेदमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. 34 वर्षीय निघत ने कहा,
‘पहले के ज़माने में कवि भी थे और पढ़ने वाले भी. पढ़ने वाले कम हो गए हैं और शायद इसीलिये कवि भी.’
निघत को उनकी रचना ‘ज़र्द पानिके दैर’ के लिए पुरस्कृत किया गया है.
जिस देश में लोग ये सोचते हैं कि चेतन भगत ने बंदों को अंग्रेज़ी सिखाई है, वहां के लोग क्षेत्रिय भाषा के कवियों को पढ़ेंगे ये उम्मीद करना बेकार है.
Source: HT
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