कोरोना वायरस ने इंसानी जीवन को पूरी तरीक़े से बदलकर रख दिया है. लोगों का एक-दूसरे से मिलना-जुलना, घर से बाहर निकलना और यहां तक कि रोज़मर्रा के काम तक नहीं हो पा रहे. इस दौरान स्कूल भी बंद हो गए, जिसके कारण बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी बुरी तरह प्रभावित हुई.   

ऐसे मुश्किल समय में देशभर से कुछ शिक्षक आगे आए, जिन्होंने न सिर्फ़ बच्चों को पढ़ाने के बेहद अनूठे तरीक़े निकाले बल्कि उन्हें कोरोना महामारी को लेकर जागरूक भी किया. इन टीचर्स ने बच्चों को पढ़ाने के लिए व्हाट्सएप क्लासेस से लेकर लाउडस्पीकर तक का सहारा लिया. ताकि घर पर रहकर बच्चे इस ख़तरनाक वायरस से भी बच जाएं और इससे उनकी पढ़ाई भी प्रभावित न हो.   

शिक्षक दिवस के मौके पर हम आज ऐसे ही टीचर्स के बारे में आपको बताएंगे, जिन्होंने COVID-19 के मुश्क़िल समय में बेहद सराहनीय तरीके से एक शिक्षक का धर्म निभाया है.   

1-बच्चों को कविता के ज़रिए कोरोना के बारे में किया जागरूक  

महाराष्ट्र के औरंगाबाद की एक टीचर सरिता नागकीर्ति ने झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों को एक नर्सरी कविता के ज़रिए COVID-19 महामारी के बारे जागरूक किया. उन्होंने बच्चों को 20 सेकंड तक हाथ धोने की दिनचर्या सिखाने के लिए मराठी में एक नर्सरी कविता सुनाई.  

सरिता रवींद्र स्कूल के स्टेट स्काउट और प्रोग्राम गाइड के ज़रिए मलिन बस्तियों में जाकर लोगों को कोरोना संक्रमण से बचने के टिप्स देती हैं. Hindustan Times से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘बच्चे सैनिटाइज़र और हैंडवॉश की बोतलें देखकर डर गए, लेकिन मैंने कुछ लोकप्रिय मराठी नर्सरी राइम्स का इस्तेमाल किया और एक मज़ेदार हैंडवॉश गीत बनाया.’  

उन्होंने कहा कि इस बीमारी के संकट से उभरने के बाद भी वो बच्चों को पढ़ाने के लिए इन हॉटस्पॉटों इलाकों में आती रहेंगी.  

2- लखनऊ के शिक्षकों ने बच्चों को पढ़ाने के लिए किया व्हाट्सएप का इस्तेमाल  

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मेट्रो सिटीज़ में डिजिटल क्लासेज़ आम बात हो गई है. जिन लोगों के पास Zoom, Skype और ऐसी ही अन्य कम्युनटी कॉलिंग एप्स हैं, उनके लिए ये बेहद कारगर है. लेकिन हर कोई ई-क्सासेज़ की लक़्ज़री लेने में सक्षम नहीं है.  

ऐसे में लखनऊ से सटे एक प्रशासनिक ब्लॉक बख़्शी का तालाब में छह शिक्षकों ने बेहद इनोवेटिव आइडिया निकाला. व्हाट्सएप क्लास. ब्लॉक के 60 गांवों के 500 छात्रों का इसमें रजिस्ट्रेशन किया गया, जिसमें उन्हें वीडियो, इमेजस, असाइनमेंट और इंटरएक्टिव सेशन के ज़रिए पढ़ाया जाता है.  

India Today से बातचीत में इस टीचर ग्रुप की मेंबर नंदिनी ने बताया कि, ‘हमने स्कूल के रिकॉर्ड में से ऐसे माता-पिता के नाम तलाशने शुरू किए, जिनके पास मोबाइल हो और ये पता किया कि क्या वे व्हाट्सएप यूज़ कर रहे हैं… आख़िरकार हमारी कोशिशों के तीन हफ़्ते बाद सफ़लता मिलनी शुरू हो गई और हमारे नेटवर्क में अब बच्चों की काफ़ी संख्या हो गई है.’  

3-बच्चों को पढ़ाने के लिए किया लाउडस्पीकर का यूज़  

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स्कूल बंद होने के चलते कहीं ड्रॉप-आउट रेट न बढ़ जाए, ऐसे में पश्चिम बंगाल के गज़लपुर सरकारी स्कूल ने खंड विकास अधिकारी (BDO) के साथ मिलकर लाउडस्पीकर के ज़रिए क्लासेज़ ऑर्गनाइज़ कीं.    

हर रोज़ की पढ़ाई को रिकॉर्ड करे उन्हें स्कूल के समय पर ब्रॉडकास्ट किया जाता है, ताकि बच्चे घर पर ही रहकर पढ़ सकें. हालांकि, इससे बच्चे बहुत अच्छे तरीके से नहीं सीख पाएंगे, लेकिन फिर भी जो छात्र लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं या वीडियो के ज़रिए नहीं पढ़ पा रहे हैं, उनके लिए ये तरीका बेहद मददगार साबित होगा.   

 4-बच्चों को पढ़ाई में रेडियो बना मददगार  

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उत्तर प्रदेश के हाथरस में जिन बच्चों की ऑनलाइन वर्चुअल क्लासेज़ तक पहुंच नहीं है, उनके लिए रेडियो बड़ा मददगार साबित हुआ है. यहां बच्चों को रेडियो के ज़रिए इंग्लिश की क्लासेज़ दी जा रही हैं.   

मॉडल इंग्लिश मीडियम प्राइमरी स्कूल के प्रधानाध्यापक हेमंत कटारा ने बताया कि, रेडियो कार्यक्रम का उद्देश्य उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में स्कूल और स्कूल के बाहर के छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच में सुधार करना है. इंटरैक्टिव रेडियो इंस्ट्रक्शन के ज़रिए इंग्लिश लेसन और टीचिंग मैटीरियल को ऑन-एयर डिलीवर किया जा रहा है. इसके साथ ही बच्चों पर केंद्रित अभ्यास और अभिभावकों की ज़्यादा भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि टीचिंग क्वालिटी के साथ ही लर्निंग आउटकम भी बेहतर हों.   

5-छात्रों और शिक्षक के बीच पुल बना इंटरनेट  

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Femy Wasim चेन्नई के एचएलसी इंटरनेशनल स्कूल में 11 वीं और 12 वीं क्लास में रसायन विज्ञान पढ़ाती हैं. अचानक हुए लॉकडाउन में सभी स्कूल बंद हो गए. ऐसे में इस महत्वपूर्ण ग्रेड में बच्चों की पढ़ाई ख़राब न हो जाए, ये सोचकर वसीम काफ़ी परेशान हो गईं.  

हालांकि, उन्हें इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने में ज़्यादा टाइम नहीं लगा. बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने इंटरनेट का सहारा लिया. उन्होंने इसके ज़रिए छात्रों के लिए स्टडी कंटेंट क्रियेट किया और उसे उनके साथ शेयर भी किया.  

आज वो live.google.com पर लाइव क्लासेज़ लेती हैं. उसका रिफ़्रेंस मैटीरियल Google ड्राइव पर है और एक वर्चुअल ब्लैकबोर्ड पर नोट्स लिखती है. बेशक, ये चुनौतीपूर्ण है और वो अपनी कक्षाओं की तैयारी, नए संसाधनों की खोज और अपने सभी सामग्रियों को ऑनलाइन ट्रांसफ़र करने में काफ़ी समय ख़र्च करती हैं. लेकिन यही वजह है कि वसीम और उनेके जैसे कई अन्य शिक्षक ख़ास हैं क्योंकि वे खुशी से अपने छात्रों के लिए ज़्यादा से ज़्यादा मेहनत करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.  

6-इंटरनेट स्पीड के लिए पेड़ पर चढ़कर पढ़ाते हैं एक शिक्षक  

पश्चिम बंगाल में इतिहास एक शिक्षक सुब्रत पति लॉकडाउन के दौरान अपने पैतृत गांव अंहदा चले गए. लेकिन इस दौरान भी उन्हें पढ़ाना था. ऐसे में वो फ़ोन से ही ऑनलाइन क्लासेज़ दे रहे थे, लेकिन इस काम में ख़राब इंटरनेट कनेक्टिविटी अड़चन पैदा कर रही थी. जिसके चलते उन्हें ठीक नेटवर्क और बच्चों को पढ़ाने के लिए अपने गांव के एक पेड़ पर आसरा लेना पड़ा.   

सुब्रत एक नीम के पेड़ पर चढ़कर ऑनलाइन क़्लासेज़ लेने लगे, जहां नेटवर्क ठीक आ रहा था. यहां उन्होंने लकड़ी का ढांचा भी तैयार कर लिया है. जब ज़्यादा देर तक क्लास लेनी होती है, तो वो खाना और पानी के साथ लेकर प्लैटफॉर्म पर चले जाते हैं और हर दिन 2-3 क्लास लेते हैं.  

उन्होंने कहा कि, ‘मैं एक शिक्षक के रूप में अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता था. यहां इंटरनेट नेटवर्क ठीक नहीं रहता है. इसलिए मुझे समाधान की तलाश थी… कभी-कभी गर्मी से या पेशाब करने के समय मुझे परेशानी होती है, लेकिन मैं एडजस्ट करता हूं. आंधी-तूफ़ान के चलते मेरे प्लेटफ़ॉर्म को भी नुक़सान हो जाता है, लेकिन अगले दिन मैं उसे फ़िक्स कर लेता हूं. किसी भी परिस्थिति में मैं नहीं चाहता कि मेरे छात्रों को असुविधा हो.’  

7- पुल के नीचे मज़दूरों के बच्चों को पढ़ा रहीं केरल की टीचर्स  

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मैसूरु, कर्नाटक के प्रवासी श्रमिकों के छह बच्चे 10 वर्षों से अधिक समय से कोच्चि में वल्लारपदम पुल के नीचे रह रहे हैं. लॉकडाउन के चलते ये बच्चे स्कूल नहीं जा पाए. ऐसे में St. John Bosco U.P. की टीचर्स स्कूल को ही इन बच्चों तक ले गईं.     

हेडमिस्ट्रेस एलिजाबेथ फर्नांडीज, जो तीन अन्य शिक्षकों के साथ हर दिन बच्चों को पढ़ाने जाती हैं, उन्होंने बताया कि, ‘हम उनके लिए पिछले दिन की क्लासेज़ को डाउनलोड करने का निर्णय किया और यहां तक कि कक्षा के दौरान उन्हें इंगेज रखने के लिए रंगीन चार्ट और इंटरएक्टिव गेम तैयार करने का फ़ैसला किया.’

सभी आवश्यक सावधानी बरतते हुए ये चार शिक्षक इन बच्चों की दैनिक कक्षाएं लेने के लिए पिछले एक महीने से लंबी दूरी तय कर यहां आती हैं.