मैं 21 साल की हूं और हमेशा मैंने ख़ुद से और अपनी ज़िंदगी से परफ़ेक्शन मांगा है. मगर बीते कुछ सालों में मुझे कुछ बातें समझ मे आई हैं जिनको मैं हर रोज़ स्वीकार करने के कोशिश कर रही हूं. मैं कहीं न कहीं जानती हूं कि कुछ बातें मैं जितनी जल्दी समझ लूंगी उतना मेरे लिए अच्छा होगा. उतना मैं ज़्यादा ख़ुश और तसल्ली से रहूंगी. ज़िंदगी में परफ़ेक्शन जैसा कुछ नहीं होता. दरअसल हम ख़ुद को जितना ज़्यादा स्वीकार कर पाते हैं, ज़िंदगी उतनी ज़्यादा ‘परफ़ेक्ट’ होती जाती है.
वास्तव में ये बातें पढ़ने और लिखने में जितनी आसान हैं उतनी जीने में नहीं हैं, मैं हर रोज़ इन 5 बातों से किसी न किसी समय लड़ रही होती हूं.
1. आइने में ख़ुद को प्यार कर पाना
मैंने एक बहुत लम्बे अरसे तक अपनी स्किन और बॉडी से नफ़रत की है. कद छोटा होने से लेकर चेहरे पर निशान और दाने होने तक मैंने हर रोज़ इन सब चीज़ों से लड़ा है. हां, किसी हद तक मैंने अपने क़द को स्वीकार कर लिया है मगर आज भी मैं बहुत मामलों में अपनी स्किन से ख़ुश नहीं हूं. आज भी ऐसे बहुत से दिन हैं जब मुझे अपनी स्किन अच्छी नहीं लगती. मैं उसे हमेशा किसी और से उसकी तुलना करती रहती हूं. मुझे पता है कि ये मेरा शरीर है, मुझे सबसे पहले इससे प्यार करना चाहिए लेकिन नहीं हो पाता.
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2. कभी कभी लोग आपके क़रीबी आपको हर्ट करेंगे
हम हमेशा सोचते हैं कि हमारा परिवार या हमारे दोस्त हमारा ख़्याल रखते हैं. वे हमारे बारे में ऐसी बातें नहीं कहेंगे जो हमें दुख पहुंचाए. लेकिन इस बात को स्वीकार करने में अब भी वक़्त लग रहा है कि ऐसा होगा कि आपके क़रीबी आपको कभी कभी हर्ट कर सकते हैं. कभी वो आपको बेहद सख़्ती से क्रिटिसाइज़ कर देंगे, हो सकता है कि वे आपसे छोटी मोटी बातों पर नाराज़ हो जाएं या फिर ग़ुस्से में कोई ऐसी बात कह दें जिसकी आपने उम्मीद न की हो. और ये तो इंसानी स्वभाव है कि हम हम सभी कभी कभी इस तरह का व्यवहार करेंगे ही. क्योंकि कोई आपका क़रीबी है इसलिए वो ‘परफ़ेक्ट’ हो ऐसा नहीं ही हो सकता.
3. कभी कभी रिश्ते टूटने की बहुत बड़ी वजहें नहीं होंगी
हमको हमेशा लगता है कि रिश्ते टूटने या लोगों के अलग होने की बड़ी और गंभीर वजहें होंगी. स्वाभाविक है कि अगर हम किसी स्पेस में हैं तो साथ होने या अलग होने के बारे में बात कर सकें और उसे समझ सकें. लेकिन कभी रिश्तों से अलग होने की बहुत बड़ी वजह नहीं होती. और इसको जीना मुश्किल है और शायद हमेशा मुश्किल रहे लेकिन इसे स्वीकार तो करना ही होगा.
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4. कभी-कभी चीज़ों पर रुपये ख़र्च कर लेने चाहिए-
ऐसा कई बार होता है कि मुझे कोई चीज़ पसंद आती है मगर मैं उस पर रुपये ख़र्च नहीं करती हूं. मुझे लगता है कि उससे बहतर है मैं बचत कर लूं. भले ही मैं वो चीज़ तब नहीं खरीदती हूं मगर मेरे मन में वो चीज़ बार-बार चल रही होती है. ऐसे में कई बार में दोबारा उस जगह वापस कर वो सामान ख़रीद लेती हूं और सच में बेहद ख़ुशी महसूस होती है. ऐसे में मुझे लगता है कि अपनी ख़ुशी के लिए कभी कभार चीज़ें ख़रीद लेनी चाहिए भले ही वो बेहद महत्वपूर्ण न हों.
5. बहुत समय तक मेरे पास रुपये का आभाव रहेगा-
मैं पिछले 1 साल से भी ज़्यादा समय के लिए दिल्ली में नौकरी कर रही हूं. और मुझे अभी तक ऐसा एक भी महीना नहीं याद जब मुझे ऐसा लगा हो कि हां इस महीने मेरे पास कुछ रुपये बच गए हों. नहीं, कभी नहीं. मन उदास सा भी होता है ये बात सोच कर, मगर शायद ऐसे ही चीज़ों की कद्र करना भी आएगा. और मुझे इस बात का लगातार अहसास रहता है कि मैं अपने पैरों पर खड़े होने के लिए इस शहर में आई हूं. मेरे पास आज कुछ कम रुपए हैं, लेकिन शायद ज़्यादातर लोगों के साथ शुरुआत में ऐसा ही होता है. लेकिन जैसे सब जीवन में आगे बढ़े, मैं भी बढ़ूंगी. और तब तक.. मुझे ये किल्लत भरे दिन भी प्यारे हैं.