‘यार, बच्चों के कितने मज़े हैं’
‘हद है यार बच्चों के समर वेकेशन, विंटर वेकेशन फलाना वेकेशन, ढिमकाना वेकेशन होते हैं और हमें विकेंड पर भी काम करना होता है!’
‘बच्चों का सही है यार, कुछ भी गड़बड़ी हो पहले स्कूल बंद!’
भई, राइटर के दिमाग़ में तो ये बातें हर दिन आती हैं और राइटर को ये यक़ीन है कि बाक़ी बड़ों के दिमाग़ में भी आती होंगी. बच्चे पसंद है पर किसी भी दुकान पर ज़िद्द करके कुछ भी हासिल कर लेने वाले बच्चों को जब भी देखती हूं बहुत जलन होती है.
यही तो बात है, जब बच्चे थे तब लगता है बड़े होकर ये करेंगे, वो करेंगे, दुनिया हिला देंगे. बड़े होने के बाद लगता है बच्चे थे तो ही अच्छा था. बड़े होने के बाद हमें कई ऐसी बातें भी पता चलती हैं, जो बचपन में पता होतीं तो लाइफ़ शायद किसी और पटरी पर होती.
हमने कुछ बड़ों से पूछा कि अपने अंदर के बच्चे से क्या कहना चाहोगे, जवाब ये मिले-
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आप अपने अंदर छिपे छोटे से बच्चे से जो कहना चाहते हो वो कमेंट बॉक्स में बताओ.
Illustrated by: Muskan