साल 2001 की बात है. राजस्थान के सूतागढ़ में भारतीय वायुसेना का ‘मिग-21’ दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. इस दुर्घटना में फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट अभिजीत गडगिल शहीद हो गए थे. इस घटना से गडगिल परिवार सदमे में था, लेकिन अभिजीत के माता-पिता को उस वक़्त बड़ा झटका लगा जब उनके बेटे को ही इस दुर्घटना के लिए दोषी ठहरा दिया गया.

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दरअसल, उन दिनों ‘मिग-21’ लगातार दुर्घटनाग्रस्त हो रहे थे. बावजूद इसके भारतीय वायुसेना लगातार इन विमानों का इस्तेमाल कर रही थी. जिस कारण इन फ़ाइटर जेट्स को ‘Flying Coffin’ तक कहा जाने लगा था.

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27 वर्षीय जवान बेटे को खो देने वाले भारतीय वायुसेना से रिटायर्ड अभिजीत के पिता कैप्टन अनिल गडगिल और मां कविता गडगिल के लिए ये एक मुश्किल समय था. ऊपर से देश के लिए शहीद होने वाले बेटे को हादसे के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाना तो और भी मुश्किल पल था.

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इसके बाद रिटायर्ड कैप्टन अनिल गडगिल और कविता गडगिल ने न केवल अपने बेटे के लिए, बल्कि उन सभी पायलटों के लिए लड़ने का फ़ैसला किया, जिन्होंने विमान में तक़नीकी ख़राबी के चलते अपनी जान गंवा दी थी.

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साल 2002 में अभिजीत की मां कविता गडगिल ने तत्कालीन रक्षा मंत्री स्वर्गीय जॉर्ज फ़र्नांडिस को एक ज्ञापन सौंपकर कहा था कि ‘मिग-21’ की तक़नीकी ख़राबी के चलते उनके बेटे समेत देश के कई युवा पायलट बिना किसी युद्ध के शहीद हो रहे हैं.

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अपने बेटे के लिए न्याय की मांग करते हुए इस दंपति ने तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से भी मुलाक़ात की थी. जिसके बाद राष्ट्रपति ने उन्हें आश्वस्त किया कि ‘मिग-21’ उड़ान भरने वाले पायलटों को सुरक्षा प्रदान की जाएगी. अनिल और कविता के इन्हीं प्रयासों के चलते आख़िरकार भारतीय वायुसेना ने एक पत्र भेजकर स्वीकार किया कि ‘मिग-21’ में तक़नीकी ख़राबी के कारण ही फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट अभिजीत गडगिल शहीद हुए थे.

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अभिजीत के पिता अनिल गडगिल ने ‘द बेटर इंडिया’ से बातचीत के दौरान कहा कि जब अभिजीत ने ‘मिग-21’ में उड़ान भरी, उसके 33 सेकंड बाद ही विमान क्रैश हो गया था. इसका मतलब उस विमान में तक़नीकी ख़राबी थी.

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बेटे की याद में खोला एयरोस्पेस इंस्टीट्यूट  

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अपने बेटे को न्याय दिलाने के बाद साल 2006 में रिटायर्ड कैप्टन अनिल गडगिल ने वैज्ञानिक डॉ. आरए माशेलकर और पत्रकार कुमार केतकर के साथ मिलकर पुणे में खडकवासला बांध के पास ‘जीत एयरोस्पेस इंस्टीट्यूट’ (जेएआई) की स्थापना की. ताकि यहां पर भारतीय वायुसेना में पायलट बनने का सपना देखने वाले युवाओं को प्रशिक्षित किया जा सके. शहीद बेटे की यादों को हमेशा के लिए जीवित रखा जा सके.  

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कैप्टन अनिल गडगिल को पहले से ही भारतीय वायुसेना के साथ उड़ान का अनुभव था, इसलिए भी उनको ‘जीत एयरोस्पेस इंस्टीट्यूट’ की स्थापना करने में ज़्यादा दिक्कत नहीं आयी. जबकि उनकी पत्नी कविता ने इस इंस्टीट्यूट के संचालन की ज़िम्मेदारी उठायी.

कविता गडगिल कहती हैं कि युवा पायलटों को प्रशिक्षित करने के लिए उन्होंने एक मोबाइल ट्विन-जेट सिम्युलेटर डिज़ाइन किया है. एक छोटा सा घर बनाया है जिसमें युवा पायलट के लिए ट्रेनिंग रूम्स बनाये गए हैं. साथ ही इन मोबाइल सिम्युलेटर को रखने के लिए एक हैंगर भी बनाया गया, जहां पायलटों को जेट कॉकपिट में उड़ान भरने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.

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अनिल और कविता ने इस नेक प्रयास के लिए अपनी ज़िंदगी भर की पूंजी लगा दी है. इस पूरी प्रकिया में करीब 2 करोड़ रुपये का ख़र्चा आया.

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शहीद बेटे को न्याय दिलाने के लिए इस दंपति की कोशिश को हमारा सलाम. 

जय हिन्द !