आंकड़ों के अनुसार इस समय देश की 13 फ़ीसदी आबादी मानसिक बिमारियों से जूझ रही है. शहरों में तो फिर भी आपको मेंटल इलनेस से लड़ने वाले क्लिनिक, अस्पताल आदि मिल जाएंगे, लेकिन गांव में नहीं, जहां देश की 66 फ़ीसदी आबादी रहती है. ऐसे लोगों के लिए उम्मीद की किरण बनकर सामने आए हैं डॉ. मनोज कुमार,जो एक मनोवैज्ञानिक हैं. वो केरल के ग्रामीण इलाके के मानसिक रोगियों का इलाज कर रहे हैं, वो भी मुफ़्त.
मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों पर आम आदमी सालाना तकरीबन 1 ख़रब रुपये ख़र्च कर डालता है लेकिन लोगों में जागरुकता फैला कर, इसे कम किया जा सकता है और इस समस्या से मज़बूती से लड़ा जा सकता है. ऐसे ही एक मिशन पर निकले हैं डॉ. कुमार.
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30 साल की थी यूके में प्रैक्टिस
डॉ. मोनज कुमार ने यूके में 30 साल तक बतौर Psychiatrist की प्रैक्टिस की और 10 साल पहले वो स्वदेश लौटे हैं. वो अपने देश के लोगों के लिए कुछ करना चाहते थे, इसलिए वो केरल आ गए. यहां उन्होंने Mental Health Action Trust (MHAT) नाम की एक संस्था की शुरुआत की. ये संस्था केरल के ग्रामीण इलाकों में जाकर लोगों को मानसिक रोग के प्रति जागरुक करने के साथ ही, उनका इलाज भी मुफ़्त में करती है.
2008 में शुरू की संस्था
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2008 में शुरू हुई इस संस्था में करीब 1000 स्वयंसेवक काम कर रहे हैं. ये लोग रूरल एरियाज़ के लोगों और संस्था के बीच सूत्र का काम करते हैं. इनमें गृहणियां, रिटार्यड प्रोफ़ेशनल्स आदि हैं, जिनसे कोई भी 24 घंटे में किसी भी वक़्त संपर्क कर सकता है. इसके स्वयंसेवक लोगों से मिलते हैं. उन्हें मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करते हैं.
टेक्नोलॉजी का भी होता है इस्तेमाल
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अगर कोई मनोरोगी इन्हें मिलता है, तो ये उस केस को स्टडी कर अपनी रिपोर्ट टेक्नोलॉजी की मदद से आगे भेजते हैं. इसके बाद डॉ. तय करते हैं कि उसका इलाज थेरेपी या कांउंसलिंग से होगा या फिर दवाइयों की ज़रूरत होगी. संस्था में कुछ मनोचिकत्सक हैं, जो इन रोगियों को देखते हैं.
गंभीर रूप से बीमार लोगों को डॉ. कुमार देखते हैं. वो उनसे वीडियो कॉलिंग कर, बात कर उनकी स्थिति समझने की कोशिश करते हैं. इस तरह वो दिन में तकरीबन 20 गंभीर रूप से बीमार लोगों को अटेंड करते हैं. इन लोगों का एक डेटाबेस तैयार किया जाता है, जिस पर हर साल रिसर्च की जाती है.
MHAT के स्वयंसेवक रोज़ाना 2500 रोगियों को देखते हैं
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MHAT के स्वयंसेवक अपने 55 सेंटर्स में लोगों को ट्रेंनिंग भी देते हैं. वो उन्हें मानसिक रोगी को पहचानना और उनसे बात करना सिखाते हैं. ये ट्रेनिंग सेंटर केरल के कोझिकोड, एलेप्पि, मल्लपुरम, वायनाड, थ्रिसूर जैसे ज़िलों में हैं. ऐसे लोगों को Community Mental Health Workers (CMHW) कहा जाता है. ऐसे लोगों की संख्या 100 है. इस तरह से पूरे दिन नें ये संस्था करीब 2,500 रोगियों को देखती है.
द बेटर इंडिया से बात करते हुए डॉ. मनोज ने कहा, मैंने अपनी रिसर्च में पाया कि मानसिक स्वास्थय के क्षेत्र में सरकार कुछ ख़ास नहीं कर रही है. इसलिए मैंने एक ऐसे मॉडल को शुरू करने के बारे में सोचा, जो किसी मनोरोगी को उसकी फ़ैमिली की तरह ही ट्रीट करे. इसलिए मैंने MHAT की शुरुआत की.
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डॉ. कुमार का कहना है कि मानसिक रोगियों को ठीक किया जा सकता है. बस उसके लिए लोगों में जागरुकता और सरकार को इस बीमारी के इलाज को मुफ़्त करना होगा. कम से कम पहले दो स्टेज पर. इस तरह हम अपने समाज को इस बीमारी से छुटकारा दिला सकते हैं.
आप भी कर सकते हैं मदद
हालांकि, डॉ. कुमार ख़ुद कोई सैलरी नहीं लेते, लेकिन इस संस्था में काम करने वाले लोगों को सैलरी भी मिलती है. इनकी सैलरी का इंतज़ाम संस्था को मिले दान से किया जाता है. आप भी इनकी मदद कर सकते हैं, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर उनसे संपर्क कर सकते हैं.
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डॉ. कुमार ने केरल के कई लोगों को स्वस्थ किया है. सोशल मीडिया पर उनकी कई सक्सेस स्टोरीज़ आपको मिल जाएंगी. केरल का ख़्याल तो डॉ. कुमार रख रहे हैं. हमें उनके जैसे ही अन्य डॉक्टर्स की आवश्यकता है, जो देश के दूसरे इलाकों में मानसिक रोग से लड़ने में लोगों की मदद कर सकें.