कई बार हमने अपने आस-पास सुना होगा कि ‘फलां ने प्रेगनेंसी के बाद नौकरी छोड़ दी.’

या फिर ‘उसने बच्चे पालने के लिए ब्रेक लिया फिर जॉइन नहीं की.’ 
या फिर ‘उसके पति ने उसे बच्चे होने के बाद नौकरी करने नहीं दी.’  

महिलाएं कितनी भी टैलेंटेड हों पर शादी और बच्चों के बीच अक़सर उनका करियर दब के रह जाता है. हमारे समाज बहुत कम लोग ही महिलाओं को आगे बढ़ते हुए देख पाते हैं. 

Humans of Bombay

Humans of Bombay ने एक ऐसी कहानी शेयर की है जो न सिर्फ़ आपके दिल को छू लेगी बल्कि आपको मोटिवेट भी करेगी. 

2015 में मैं और मेरी पत्नी ऑस्ट्रेलिया जाने के लिए बचत कर रहे थे… हमें नहीं पता था कि हमारी सेविंग्स जल्द ही निगल ली जायेगी और मेरे अनुभव के हिसाब से तो अचानक हुए आगमन ने लगभग सच में निगल लीं! 
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लहर और उनकी पत्नी को प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में पता चला कि वो दोनों माता-पिता बनने वाले हैं. उनके सरप्राइज़ेज़ यहीं नहीं रुके, पहली सोनोग्राफ़ी में उन्हें ये पता चला कि वो एक नहीं दो बच्चों के माता-पिता बनने वाले हैं. 

आप वो डरावने एक्साइटमेंट का अंदाज़ा लगा सकते हैं. 

इसके बाद लहर ने कुछ ऐसा निर्णय लिया जिसके बारे में ज़्यादातर लोग सोच भी नहीं पाते.  

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मैंने घर पर रहने का निर्णय लिया और मेरी पत्नी काम पर जाती रही क्योंकि वो ज़्यादा कमाती थी और अब हमारे यहां खाने वालों की तादाद बढ़ने वाली थी. जब मैं पहली बार अपने पापा को मेरे घर पर रहने के निर्णय के बारे में बताया उन्होंने सिर्फ़ मुझ से एक बार पूछा कि क्या मुझे पूरा यक़ीन है- जब मैंने हां कहा उसके बाद उन्होंने कभी दूसरा सवाल नहीं किया. 

बाहर के लोगों के लिए लहर का दफ़्तर ना जाना बहुत बड़ी बात हो गई. बाहरी लोग लहर से कुछ इस तरह के सवाल पूछते, ‘लहर, क्या तुम अपनी पत्नी से पैसे मांगने को लेकर सहज हो?’ या ‘क्या तुम सच में घर का काम करोगे?’ 

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और नहीं तो क्या… मैं काम नहीं कर रहा था, और किससे मांगूंगा? मैं ऐसे सवालों का सही, सटीक और सच्चे जवाब देने में हमेशा माहिर था. बात ये है कि मेरी पत्नी ने उन्हें 9 महीने गर्भ में रखा, उसका बच्चों के साथ एक ऐसा अनोखा रिश्ता है जो किसी और के साथ कभी नहीं होगा. तो सही तो यही होगा न कि मुझे भी उनसे बॉन्डिंग का वक़्त मिले. पर ये बच्चे आपको हमेशा नचाते हैं और ये तो दो थे… मैं बस भागता था… खाना, पॉटी कराना, सुलाना लाइफ़ का मंत्र बन गया था. 

दूसरे बच्चों की तरह लहर के बच्चे भी 18 घंटे सोते थे लेकिन दोनों बच्चों के सोने के अलग शिड्यूल थे. लहर की नींद पूरी नहीं होती थी. लहर कई बार सामने पड़ी, दिख रही चीज़ से चोट लगा लेते थे.


लहर और उनकी पत्नी ने फ़ीडिंग शिड्यूल बनाकर रखा था और वो दिवार पर टंगा रहता था. इससे किसने किस बच्चे को खिला दिया है ये पता रहता था.  

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कई बार ऐसा होता था कि कोई शिड्यूल अपडेट करना भूल जाता था और दूसरा उसी बच्चे को खिला देता था जिसे पहले ही खिलाया जा चुका है, दूसरा भूखा ही रह जाता था…ये मेरे और मेरी पत्नी के बीच में जोक की तरह हो गया है और में मार्च और अप्रैल 2016 के महीने ढंग से याद भी नहीं है. इन दोनों की वजह से वो 2 महीने की यादें कतई धुंधली हैं. 
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लहर ने ये भी बताया कि उन दोनों के साथ उस वक़्त से ज़्यादा उनके लिए कुछ भी क़ीमती नहीं होगा… डायपर बदलना, रातें जागना, रोने के सिलसिले… वो वक़्त कोई नहीं बदल सकता.


लहर ने अपने काम पर लौटने के अनुभव के बारे में भी बताया.  

जब मैंने काम पर वापस लौटने का निर्णय लिया तो ये बदलाव भी काफ़ी सहज था. मैं और मेरी पत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं और अपने बच्चों का पालन करते हैं, हम दोनों के लिए फ़ैमिली पहले आती है. कौन कमा रहा है और कौन घर पर रहता है ये मायने क्यों रखता है? पत्नी ख़ुश है, मैं ख़ुश हूं और दोनों रास्कल (बच्चे) निश्चित तौर पर ख़ुश हैं… मुझे नहीं लगता कुछ और मायने रखता है. 
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कहानी कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइए.