गांव में खुली बैठक होना आम बात है. लोग इकट्ठे होकर गांव की आम समस्या पर चर्चा करते हैं, उसे ठीक करने के रास्ते निकाले जाते हैं. 

गुजरात के अधगम गांव में भी अक्टूबर, 2018 को ऐसी ही बैठक हुई थी. लेकिन ये आम बैठक नहीं थी, गांव वाले तीन घंटे तक एक बाहरी महिला के भाषण को सुनते रहे, वो आत्मविश्वास के साथ गांव में पानी की समस्या पर बोल रही थी. 

Mittal Patel

आखिर में गांव के मुखिया ने कहा, ‘ये ज़रूरी है कि गांव के लोग गांव को ऊपर उठाने के लिए आगे आए, और हम लोग आपकी हर मुमकिन मदद करेंगे.’ 

ऐसा पहली बार नहीं था, जब गांव के लोग मित्तल पटेल के ध्यान से सुन रहे थे और उन्हें भरोसा जताया था कि वो समस्या का ठीक कर लेंगे. 

दो सप्ताह के भीतर मोतीसार नहर को पुनरुत्थान करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई, सबसे पहले ग़ैर ज़रूरी पेड़-पौधों को झील से निकाला गया, इस प्रक्रिया में ये सुनिश्चित किया गया कि अन्य पेड़ों को नुकसान न पहुंचे. मिट्टी हटाने वाले मशीन की मदद से आस पास की गंदगी की सफ़ाई हुई और झील को कुछ फ़ीट और गहरा किया गया. 

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आखिर में झील के चारों ओर ऐसी व्यवस्था कर दी गई, जिससे जानवर पानी पीते वक़्त झील में न गिर जाएं. अब ये झील पूरी तरह बरसात के पानी को जमा करने के लिए तैयार थी. 

अघगम गांव गुजरात के बनसकंठा ज़िले में पड़ता है, ये इलाका अर्धशुष्क है. इस काम से गांव के पानी की समस्या तो हल नहीं हुई. लेकिन झील इस स्थिति में पहुंच गई, जिससे नर्मदा नहर द्वारा छोड़े गए पानी को स्टोर कर सके. 

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ज़िले के 86 गांवों ने पानी की स्थिति सुधारने की ज़िम्मेदारी ली थी. हालांकि सारे गांव पहली मीटिंग में इस काम के लिए राज़ी नहीं हुए थे. कुछ को उनकी सहायता के लिए बार-बार समझाने की ज़रूरत पड़ी. इस बारे में मित्तल पटेल ने The Better India से ख़ास बातचीत की. 

मित्तल पटेल का सपना आईएएस ऑफ़िसर बनने का था. तैयारी के दौरान उन्होंने गुजरात विद्यापीठ में पत्रकारिता को कोर्स में नामंकन करा लिया, इस वजह से उन्हें गुजरात के कुछ इलाकों में काम करने का मौका मिला. 

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लोगों को सूखे ले लड़ते देख उन्होंने अपने सपने को छोड़ उनकी मदद के लिए NGO की स्थापना की. ‘विचारता समर्थन समुदाय मंच'(VSSM) का मक़सद लोगों के अधिकारों के लिए लड़ना और आदिवासी समुदाय के फ़ायदे की बात करना था. 

यह ज़िला अर्धशुष्क है और यहां की मिट्टी रेतिली है और यहां प्रतिवर्ष 15 इंच वर्षा होती है. गावं के अधिकांश बोरिंग का गहराई 900-1000 फ़ीट है, जो की आदर्श रूप में 100 फ़ीट होनी चाहिए थी. खेती के लिए बेतरतीब पानी को निकालने और कम वर्षा की वजह से ये हालत हुई है. पीने के पानी के लिए गांव के लोग सरकारी पाइपलाइन है, जिसमें रोज़ पानी नहीं आती.

-मित्तल पटेल

साल 2015 में मित्तल पटेल और उनकी टीम के 7 लोग गांव-गांव घूम कर लोगों को इकट्ठा करना शुरू किया. इस दौरान उन्हें समझ आ गया कि बिना समुदाय की मदद के इस काम को तेज़ी और आसानी से नहीं किया जा सकता. 

जब एक बार गांव वाले राज़ी हो जाते हैं. तब गांव में JCB और दूसरे काम करने वाले बुलाए जाते हैं. सभी लोग स्थानीय गांववासी के साथ रहने लगते हैं, उनके खाने-रहने की व्यवस्था गांव वालों कि जिम्मे ही होती है.
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नारी शक्ति अवॉर्ड से सम्मानित मित्तल पटेल को इस काम में कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, कुछ गांव वाले अंतिम मौके पर मदद करने से मुकर जाते हैं, तो कुछ गांव के मुखिया बदले में रिश्वत की मांग करते हैं. 

वर्तमान में मानसून की वजह से झीलों के पुनरुत्थान का काम रुका हुआ है, उनकी संगठन ने अगले सीज़न तक 100 झील बनाने की योजना बना चुकी है.