तस्वीरें देखकर लगा होगा न की धत्त क्यों आर्टिकल पर क्लिक कर लिया?
क्या है Basic Shit?
इस सवाल के जवाब में The Better India को अश्वनी ने बताया,
मैंने देखा कि हमारे सामने एक बहुत बड़ी समस्या है और इसका समाधान निकालने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं किया जा रहा तो मैंने ही इस पर कुछ करने की ठानी.
-अश्विनी
अश्विनी मात्र 24 साल के थे जब उन्होंने इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया. वो लोगों से मिले और उन्हें खुले में टॉयलेट करने के दुष्परिणामों के बारे में बताया. जल्द ही उन्हें पता चल गया कि सिर्फ़ जागरुकता अभियान से कुछ नहीं होगा. समाधान ढूंढते-ढूंढते उन्हें जवाब मिला, ‘Urinals बनाना’.
पहला टॉयलेट लगाने के बारे में अश्विनी ने बताया,
पब्लिक टॉयलेट्स इतने गंदे होते हैं कि लोगों को सड़क पर टॉयलेट करना ज़्यादा सही लगता है. अश्विनी ने ये सब बातें ध्यान में रखकर तक़रीबन 9000 प्लास्टिक बोतलों से अश्विनी ने इको-फ़्रेंडली Urinal बनाया. इस टॉयलेट की सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें से बदबू नहीं आती और न ही इसे पानी से साफ़ करने की ज़रूरत पड़ती है.
एक Urinal को बनाने में लगभग 12000 ख़र्च हुए और इन्हें लगाने में 2 घंटे लगते हैं. टॉयलेट्स में 2 Integrated Urine Carriages हैं जिनकी Capacity 200 लीटर हैं. एक Carriage दिन में 150 लीटर Urine जमा कर सकता है. इसके बाद इसे Activated Carbon से प्यूरिफ़ाई किया जाता है.
-अश्विनी
Purification Process की वजह से यूरीन Groundwater को प्रदूषित नहीं करता. अश्विनी ने बताया कि इन Urinals को रोज़ साफ़ नहीं करना पड़ता और इनमें फ़िल्टर लगे हैं जिन्हें 6 महीने में बदलना होता है.
लोगों को भी मनाने में बहुत मेहनत लगी क्योंकि उन्हें सड़क पर टॉयलेट करने की आदत जो है.
-अश्विनी
Basic Shit के Urinals शहर के कई थानों के बाहर भी लगाए गए हैं.
सभी थानों में टॉयलेट होते हैं लेकिन उनमें Urinals नहीं होते इसलिए हम अलग-अलग पुलिस स्टेशन्स में PeePee को इंस्टॉल कर रहे हैं. ये आसान है क्योंकि सिर्फ़ SHO से अनुमित लेनी पड़ती है.
-अश्विनी
Basic Shit की टीम ने दिल्ली में 30 ऐसी दीवारें ढूंढी जहां हर रोज़ 500 से ज़्यादा लोग टॉयलेट करते हैं. इनमें से 20 दीवारों के पास Urinal इंस्टॉल करने की अनुमति मिल गई है.