वहां जब घर की Lights बंद हो रही होती हैं, यहां सड़कों में रौनक आ रही होती है. वहां दुकानों के Shutter बंद हो रहे होते हैं, यहां तब Mood सेट होता है. सपने, सोच, पहनावा, भाषा और कुछ ऐसे ही अंतर होते हैं एक समुद्र से शांत छोटे शहर और पहाड़ी झरने से भागते बड़े शहर में.

बड़ा शहर वो स्टेज है, जिस पर जब पहली बार कदम रखो तो लगता है कि बस इस कहानी के हीरो आप हैं, सारी लाइट्स आप पर ही पड़ेंगी और तालियां भी आपके लिए ही बजेंगी. लेकिन फिर समझ आता है कि उस स्टेज का सिर्फ़ वो हिस्सा आपका है, जहां पर आपके दो पैर हैं. बस, सिर्फ़ इतना ही है आपका किरदार. इस मंच में आप अकेले नहीं, आपके जैसे कई हैं.

ये है बड़ा शहर!

PSX Extreme

‘अमां, कहां आ गए यार’ सोच कर रोज़ इसी बड़े शहर की रोटी खाने वालों में से मैं भी एक हूं. रोज़ बड़े शहर के Sophisticated अंदाज़ में इसे ही गालियां देती हूं कि काश अपने शहर में नौकरी होती, तो यहां न रहती. मेरा शहर, उसकी फ़िज़ा की वो ठंडक, उसके मौसम में वो रंगत, उसकी शाम की मीठी चाय में वो सुकून, बड़ा याद आता है अपना शहर.

मेरी तरह अगर आप भी बड़े शहर और छोटे शहर के बीच Pendulum की तरह झूलते रहते हैं, तो ये हैं कुछ वो एहसास जो कभी न कभी आपसे टकराये होंगे:

2 मिनट

Sportskeeda

एक बड़ा शहर कितनी तेज़ी से भागता है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि यहां दो मिनट में नूडल बन कर तैयार हो जाता है. किसी से मिलने जाओ, तो उसी नूडल स्टाइल में मिलते हैं, जल्दी से मिले, चाय-नाश्ता पूछा, इधर-उधर की बातें की और बस थोड़ी देर के बाद जय राम जी की. छोटे शहरों में जिस तसल्ली से लोग मिलते हैं, वो देखने लायक होती है. वहां लोगों के पास समय होता है सुख-दुःख सुनाने और बांटने का. ये बड़े शहर में रहने वालों की गलती नहीं, शायद ये जगह उन्हें ऐसा बना देती है.

Patience की कमी

Nagpur Today

Door-to-Door डिलीवरी के इस ज़माने ने शायद बड़े शहरों को असहनशील बना दिया. यहां सब कुछ जल्दी मिलता है, गुस्सा भी. जल्दी न मिले, तो गुस्सा और जल्दी मिलता है. सब मिलने पर भी लोग चिढ़े हुए रहते हैं, झल्लाते हैं. छोटे शहर के आदमी को एक बस के इंतज़ार में घंटों बैठने की आदत है. उसने घर के सामान के लिए अच्छा मॉडल आने का वेट किया है. वो न ज़्यादा गर्मी होने पर AC लगाने को भागता है, न ठंड होने पर महंगे शोरूम्स से विंटर कलेक्शन लेने.

रूखापन

Static Flicker

ये कहने का मेरा बिलकुल भी तात्पर्य नहीं है कि बड़े शहर के लोग रूखे होते हैं, लेकिन मैंने उनमें संवेदनशीलता की नमीं को कम होते हुए देखा है. शायद उनके सामने इतनी समस्याएं रहती हैं कि वो ऐसे हो जाते हैं. शायद हालात उन्हें रूखा कर देते हैं. छोटे शहर का आदमी आपको रास्ता बताने के लिए अपनी दुकान छोड़ कर आपके साथ चल देगा. वो अगले दिन भी आपसे उसी आत्मीयता से मिलेगा जैसे पहले. शायद रूखापन अभी तक उसकी दुकान में डिलीवरी नहीं करता.

सब हैं, फिर भी नहीं

Blogspot

एक सोसाइटी में रह कर पला-बढ़ा बच्चा और छोटे शहरों की गलियों की धूल खाये बच्चों में ज़मीन-आसमान का अंतर होगा. दोनों ने बचपन जिया होगा, लेकिन एक के घर वालों की जगह Gadgets और टीवी ने ले ली होगी और एक ने हर जगह मां का साथ पाया होगा. Nuclear फैमिली में रह रहे छोटे शहर के बच्चे के लिए पड़ोसी भी Extended फॅमिली होती है.

यहां ज़्यादा में तड़प है, वहां कम में सुकून है

Rediff

एक दुकान में जब ज़्यादा Options रख दो या एक ही चीज़ के लिए 400 Options हो जाएं, तो दिमाग कहता है कुछ और हो जाये. लेकिन जब ज़्यादा ऑप्शन नहीं होते, तो मन दो में ही खुश हो जाता है. बड़े शहर में खुशियों के इतने Options हैं कि दिल कहता है, 4 और हो जाएं तो, लेकिन छोटे शहर में वो जो एक ही अड्डा होता है न यारी-दोस्ती का, उसी में Feel आ जाती है.

हर दिन बड़े शहरों के रेलवे स्टेशन, बस अड्डों में कई छोटे शहर, नन्हें कस्बे और मासूम गांव आते हैं. कुछ यहीं के हो जाते हैं, कुछ झूलते रहते हैं Pendulum की तरह. कभी यहां-वहां.