जिस्म के दरख़्तों तक तो सभी पहुंचते हैं, इश्क तो वो है, जब कोई रूह की सिलवटों को सुलझाए.
प्यार, इश्क और मोहब्बत… कितने आसान से हैं ये लफ़्ज़, पर उतने ही मुश्किल भी. किसी किसी के लिए इनका मतलब हर रोज़ बदलता है, तो किसी के लिए इश्क का मतलब है सिर्फ़ उसी का चेहरा, सिर्फ़ उसी का नाम.
वही सबसे ख़ूबसूरत भी है और वही सबसे सच्चा भी. ज़िन्दगी में हमें नाकामयाबियां इतनी घेर लेती हैं, कि सच्चे प्यार पर से भरोसा ख़त्म होने लगता है. पर रोज़ाना कुछ न कुछ ऐसा होता है कि मोहब्बत पर हम दोबारा भरोसा करने लगते हैं.
GMB Akash ने Facebook पर एक Sex Worker और एक विकलांग की प्रेम कहानी के बारे में लिखा. इनकी कहानी पढ़कर आपका भी प्यार पर से खोया हुआ विश्वास लौट आएगा.
किसी से दोबारा प्यार करना बहुत ही मुश्किल है, ख़ासकर किसी वेश्या के लिए. जब से मैंने ज़िन्दगी का मतलब समझा है, मेरी आत्मा के हर कतरे ने सिर्फ़ दुख ही सहा है. मुझे अपनी उम्र और मां-बाप के बारे में कुछ नहीं पता. मेरी जीने की सिर्फ़ एक ही वजह थी, मेरी बेटी. मैंने कभी उसे ये नहीं बताया कि मैं क्या करती हूं. बहुत प्यारी है वो. उससे झूठ बोलना आसान नहीं था, खासकर तब जब वो अपनी मासूमियत से मुझे देखकर मुस्कुराती थी.
जब भी वो मुझसे पूछती, ‘अम्मा क्या आप रात में भी काम करोगी’? मेरे पास उसके सवालों का कोई जवाब नहीं था. फिर भी कभी-कभी मैं उससे कहती, ‘मुझे भी रात में काम करना पसंद नहीं है.’ बिना कुछ समझे ही वो मुझे गले लगा लेती थी और फिर मैं अपने काम पर निकल जाती थी.
मैं उस दलदल से बाहर निकलना चाहती थी. मैंने कई बार भागने की भी कोशिश की थी. पर मैं किसी को नहीं जानती थी, न कोई मेरी सहायता को आगे आया. सभी ने मेरा इस्तेमाल किया, सभी ने मेरे दिल के साथ खिलवाड़ किया. मैं टूट चुकी थी, समझ ही नहीं आता था कि जाऊं तो जाऊं कहां?
वो बरसात का दिन था, बहुत तेज़ बारीश हो रही थी. मैं एक पेड़ के नीचे खड़ी थी और सूरज के डूबने का इंतज़ार करती थी. मैंने ध्यान भी नहीं दिया कि पेड़ के दूसरी तरफ़ Wheelchair पर एक भिखारी था. मैं बहुत ज़ोरों से रो रही थी, चिल्ला रही थी. मुझे पता नहीं कब से, पर मैं दर्द और गुस्से से चीख रही थी. मैं अपनी बेटी के पास वापस जाना चाहती थी, मैं किसी अजनबी के साथ नहीं जाना चाहती थी. मैं थक चुकी थी, लोगों के लिए मैं सिर्फ़ एक इस्तेमाल करने की चीज़ थी.
अचानक मुझे Wheelchair के चक्के की आवाज़ दी. उस भिखारी ने खांस कर मेरा ध्यान खींचना चाहा. मैंने अपने आंसू नहीं पोछे और उससे कह दिया कि मेरे पास किसी भिखारी को देने के लिए पैसे नहीं है. उसने मेरी तरफ़ एक नोट बढ़ा दिया और कहा, ‘मेरे पास सिर्फ़ इतने ही हैं.’ उसने मुझे आने वाले तुफ़ान के बारे में आगाह किया और घर जाने को कहा. मैं एकटक उसे देखती रह गई. वो नोट भीग गया था पर मैंने उसे रख लिया. मूसलाधार बारिश में वो भिखारी अपनी Wheelchair में काफ़ी आगे निकल चुका था. मेरी ज़िन्दगी में पहली बार किसी ने मुझे कुछ दिया था, वो भी बिना मेरा इस्तेमाल किए. मैं घर पहुंचकर बहुत रोई. उस दिन पहली बार मैंने प्यार को महसूस किया था.
बरसात का मौसम था, पर मैंने बहुत दिनों तक उस भिखारी की तलाश की. वो मुझे उसी पेड़ के नीचे मिला. मुझे पता चला कि उसकी बीवी ने उसे छोड़ दिया था क्योंकि वो विकलांग था. मैंने बहुत सारी हिम्मत जुटाकर उससे कहा कि मैं दोबारा प्यार नहीं कर सकूंगी, पर मैं उसे और उसकी Wheelchair को ताउम्र संभाल सकती हूं. उसने मुस्कुराते हुए कहा, ‘बिना प्यार के कोई Wheelchair वाले को नहीं संभाल सकता.’
आज हमारी शादी को 4 साल हो गए. हमारी शादी के वक़्त उसने वादा किया था कि वो दोबारा मेरी आंखों में आंसू नहीं आने देगा. हमने कई दिनों तक भूखे ही रातें बिताई हैं. हमने साथ में कई मुश्किल दिन, महीने और साल गुज़ारे हैं. पर अब्बास मियां ने अपना वादा निभाया है.
ये कहानी है रज़िया बेग़म की.
इस दुनिया में प्यार ही सबसे अनमोल चीज़ है. प्यार किसी भी रूप में हमारे सामने होता है, बस ज़रूरत है उसे पहचाननी की. एक बच्चे की हंसी से लेकर, एक पक्षी की आंखों तक में प्यार नज़र आ सकता है. ज़िन्दगी में अगर प्यार मुश्किल लगने लगे, तो एक बार इस कहानी को याद ज़रूर कर लेना.
Source: Scoop Whoop