लॉकडाउन के इन दिनों में सैंकड़ों प्रवासी मज़दूरों की लाइफ़ पर प्रश्नचिन्ह सा लग गया है. ये वो लोग हैं जिन्होंने रोज़ी-रोटी की तलाश में शहरों का रुख किया था. आजकल ये सभी सोच कर परेशान हैं कि वो कैसे जियेंगे और आगे उनका भविष्य क्या होगा? गुरुग्राम के कुछ ऐसे ही परेशान मज़दूरों की ज़िंदगी को रौशन कर रही है एक संस्था. ये संस्था संकट की इस घड़ी में उनके खाने-पीने का इंतज़ाम करने में लगी हुई है. साथ ही वो उनके दुख को बांटने और उन्हें ढांढस देने का काम भी कर रही है.

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संजीवनी कल्याण केंद्र नाम की ये संस्था गुरुग्राम में रह रहे ऐसे कई प्रवासी मज़दूरों का ख़्याल रख रही है. इस संस्था के लोग इनके परिवारों तक समय-समय पर राशन पहुंचाने का काम कर रहे हैं. 

गुरुग्राम के नरसिंहपुर में रहने वाली ऋतु भी उन्हीं में से एक हैं. वो उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव से यहां काम की तलाश में अपने पति के साथ आई थीं. वो पास के ही एक स्कूल में काम करती हैं. मगर लॉकडान के चलते उनका काम बंद हो गया है. इसके बाद वो बहुत परेशान हो गई थीं मगर इस बीच वो इस संस्था के लोगों के संपर्क में आ गईं और उन्होंने इनके लिए राशन का इंतज़ाम किया.

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ऋतु कहती हैं- ‘इस संस्था के लोग अन्य लोगों की तरह आपके साथ दुर्व्यवहार नहीं करते. ये लोग हमें अपने परिवार की तरह मानते हैं और हमारी इज़्ज़त करते हैं. ये न सिर्फ़ हमें राशन दे रहे हैं बल्कि हमें इमोशनली भी सपोर्ट कर रहे हैं.’

ऐसा ही कुछ लखनऊ के पास से आए एक अन्य प्रवासी मज़दूर सोनू के साथ भी हो रहा है. वो यहां मोहम्मदपुर गांव में रहते हैं. वो बस अपनी फ़ैमिली के साथ आए ही थे कि कुछ दिनों में लॉकडाउन की घोषणा हो गई. शुरुआत में पड़ोसियों ने इनकी थोड़ी-बहुत मदद की मगर बाद में ये इस संस्था के संपर्क में आ गए.

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सोनू कहते हैं- ‘कुछ दिन पड़ोसियों ने हमारी मदद की फिर बाद में हमें इस संस्था के लोगों से मिलवा दिया. उन्होंने कुछ दिनों में ही हमारे घर पर एक महीने से अधिक का राशन भरवा दिया है. साथ ही ये आश्वासन भी दिया कि जब तक सब ठीक नहीं हो जाता और वो फिर से काम पर नहीं जाने लगते, तब तक वो हमारा ख़्याल रखेंगे.’

ये बातें कहते हुए सोनू की आंखें भर आई थीं. इन मुश्किल हालातों में संजीवनी कल्याण केंद्र जैसी कई संस्थाएं ज़रूरतमंदों का सहारा बन रही हैं. इन सभी को हमारा दिल से सलाम. 
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