बढ़ते प्रदूषण के चलते देश्‍ा में ‘अस्‍थमा’ के मरीज़ों की संख्‍या लगातार बढ़ती जा रही है.आंकड़ों के मुताबिक़, भारत में अस्‍थमा से 30 करोड़ से अधिक लोग पीडि़त हैं. अस्‍थमा के मरीज़ों के लिए बदलता मौसम, सर्दी-गर्मी और धूल भरा वातावरण नुकसानदेह साबित होता है. आमतौर पर डॉक्टर अस्‍थमा के मरीज़ों को इन्‍हेलर का इस्‍तेमाल करने की सलाह देते हैं. अस्थमा के मरीज़ हर साल हज़ारों रुपये इसके इलाज पर ख़र्च कर देते हैं. 

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लेकिन हैदराबाद के नमपल्ली में गौड़ परिवार पिछले कई सालों से ‘मछली प्रसादम’ के जरिए फ़्री में लोगों का इलाज कर रहा है. गौड़ परिवार के मुखिया हरिनाथ गौड़ तर्क देते हैं कि ‘ज़िंदा मछली के निगलने से गले में छटपटाहट होती है, ऐसे में पीला पेस्ट श्वसन प्रक्रिया को बाधित नहीं होने देता. इस पेस्ट की रेसिपी क़रीब 173 साल पुरानी है.’

1. हैदराबाद के नमपल्ली स्थित एग्जिबिशन ग्राउंड में हर साल बठिनी गौड़ परिवार मछली प्रसादम का आयोजन करता है.

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2. नमपल्ली में लाखों की संख्या में लोग अस्थमा के इलाज के लिए आते हैं.

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3. गौड़ परिवार फ़्री में लोगों का इलाज़ करता है. 

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4. गौड़ परिवार के मुताबिक, हर धर्म के लोग वर्षों से यहां ये प्रसाद लेने आ रहें हैं और ठीक हो रहे हैं.

5. गौड़ परिवार के मुताबिक, इस बार एक लाख से भी ज्यादा अस्थमा के मरीज़ प्रसादम लेने पहुंचे.

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6. इसके लिए मत्स्य विभाग से एक विशेष प्रकार की मछली ख़रीदी जाती है.

7. ज़िंदा मछली के मुंह में पीले रंग का पेस्ट डालकर उसे मरीज़ के मुंह में डाल दिया जाता है.

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8. मान्यता है कि जो भी अस्थमा मरीज़ इस मछली को ज़िंदा निगल लेता है, उसकी बीमारी ठीक हो जाती है.

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9. इस बीमारी के पूरी तरह ठीक होने के लिए लगातार तीन साल तक इस ‘दवा’ को ग्रहण करना होता है.

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10. ‘प्रसादम’ लेने से दो घंटे पहले और बाद तक मरीज़ को कुछ खाना नहीं होता है.

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11. हालांकि वैज्ञानिक इसे अन्धविश्वाश बता रहे हैं, लेकिन लोग इस पर यकीन रखते हैं. इससे कई लोगों को राहत भी मिल रही है.

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12. गुजरात से आये बानो कुमार ने कहा ‘मेरा 14 साल का बेटा अस्थमा से पीड़ित है. हम यहां दूसरी बार प्रसादम लेने आये हैं. बेटे को इससे राहत मिली है.’ 

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अगर ‘मछली प्रसादम’ से सचमुच अस्थमा के मरीज़ों को राहत मिल रही है तो ये महंगी दवाइयों से बेहतर हो सकता है. 

Source: scmp