बचपन में खेली गई पहेलियां आज पहेलियां बन कर कहीं गुम हो गई हैं, उन पहेलियों को बूझना आज बेशक बचकानापन लगता है. लेकिन कुछ पल के लिए ही सही पर ये पहेलियां ही हैं, जो एक बार फिर बचपन की उन्हीं गलियों में ले जाती हैं, जो रात को लाइट जाने पर हम दोस्तों के साथ छत पर बूझा करते थे. आज हम आपको एक बार फिर बचपन की उन्हीं गलियों में दोबारा ले जा रहे हैं, जिसमें से वापस लौटना आज नामुमकिन-सा लगता है.

कहने को तो ये एक पहेली ही है, पर दोस्त इस पहेली ने आपके दिमाग के तोते न उड़ा दिए तो कहना. सिंपल-सी इस पेंटिंग में आपको बाघ तो दिखाई दे ही रहा होगा न! पर दोस्त इस पेंटिंग में एक और बाघ छुपा है. तो दौड़ाओ दिमाग के घोड़े और ढूंढ़ निकालो.

पता था, तुमसे न हो पायेगा.

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हो गए खुश!