भारत में तृतीय लिंग को मान्यता देने को लेकर कई सालों से लड़ाई चलती आ रही है. कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी तृतीय लिंग के विकल्प पर मुहर लगा दी थी. आपको मिलाते हैं, आज एक ऐसे ट्रांसजेंडर से, जिसे एक परीक्षा में अपनी पहचान बताने के लिए तृतीय लिंग का दर्जा नहीं दिया गया था, इसी बात के विरोध में वो सरकार के खिलाफ़ लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो गई. 27 वर्षीय अत्री कर Bratati Bandhipandhyay इंस्टिट्यूट में Elocution की छात्र हैं. उनका परिवार भी हर मोड़ पर उनका समर्थन करता आया है और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जुड़ने का पूरा मौका दिया.

आपको बता दें कि दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक फ़ैसला सुनाते हुए कहा था कि किसी भी फॉर्म में या गवर्नमेंट ऑफ़िस के नोटिस में थर्ड जेंडर का ऑप्शन देना अनिवार्य होगा. 5 दिसम्बर को वेस्ट बंगाल गवर्नमेंट ने भी अपने सारे विभागों में इस सर्कुलर को जारी कर दिया था. हूगली त्रिवेणी में रहने वाली अत्री कुन्तीघाट में एक स्कूल में पढ़ाती हैं. उन्होंने बर्धमान विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट के लिए अप्लाई किया था, पर वहां हो रहे भेद-भाव के कारण उन्हें ये कोर्स बीच में ही छोड़ना पड़ा. उसके बाद टीचर्स एबिलिटी टेस्ट में पास होकर अत्री ने एक स्कूल ज्वाइन कर लिया. पर ये ख़ुशी ज़्यादा दिन तक नहीं रही, क्योंकि उनकी Sex Identity की वजह से मैनेजमेंट के द्वारा उन्हें परेशान किया जाने लगा. जब अत्री ने दूसरा स्कूल ज्वाइन किया तो उन्हें वहां प्रिंसिपल का काफी सपोर्ट मिला. उन्हें वहां जाकर एक नार्मल इंसान जैसा फील हुआ.

पर आगे पद्दोनति के लिए उन्होंने SSC TET फॉर्म भरा था, जब उन्होंने उस फॉर्म को देखा तो हैरान रह गयीं, क्योंकि उसमे लिंग चुनने के लिए बस दो ही विकल्प थे. उस समय सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला नहीं आया था, अत्री को वहां एक महिला के तौर पर अप्लाई करने को कहा गया. अत्री ने उसे छोड़ दिया और वेस्ट बंगाल स्टाफ सेलेक्शन के लिए अप्लाई किया. जब 2016 में उन्होंने उसका फॉर्म देखा तो, वहां भी थर्ड जेंडर का कोई ऑप्शन नहीं था.

मैंने फिर PSC के खिलाफ़ कोर्ट में केस कर दिया. मुझे आज भी याद है वो दिन, जब मैं पहली बार कोर्ट में गयी थी. जज ने मेरे केस में इंटरेस्ट दिखाई और मुझे सलाह दी. जज के अनुसार, ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन था, इसलिए मुझे State Vs Tribunal जाने के लिए कहा गया. फिर वहां मेरे केस पर सुनवाई की गयी और PSC को नोटिस दिया कि जल्द से जल्द मुझे नया फॉर्म ऑफर किया जाए, जिसमें थर्ड जेंडर का ऑप्शन हो.- अत्री कर

इस फ़ैसले के समय फॉर्म भरने के डेट निकल गई थी, फिर भी अत्री को फॉर्म भरवाया गया. इस मामले में अत्री का मानना है कि सरकार की कोई गलती नहीं है. इस फैसले को आये दो साल हो चुके हैं, पर अभी तक समाज के डर से एक ही ऐसा कैंडिडेट नहीं आया होगा, तो सरकार क्या बदलाव करे. अत्री कई लोगों के साथ रिलेशनशिप में रहीं, पर समाज के तिरस्कार के डर से सब टूट गये.

इन सबके पीछे सरकार से ज़्यादा समाज की तय हो चुकी धारणा का हाथ है. सरकार को चाहिए कि वो इस मुद्दे पर जनता को जागरूक करे, ताकि कोई तृतीय लिंग का आदमी खुद को उपेक्षित महसूस न करे.

Source: IndiaTimes