106 साल के फ़ौजा सिंह को आज पूरी दुनिया पहचानती है. इस उम्र में भी मैराथन के कई रिकॉर्ड इनके नाम हैं. लेकिन फ़ौजा सिंह का बचपन इतना आसान नहीं था. जब वो पैदा हुए थे, तब उनके पैर काफ़ी कमज़ोर थे. उनके पैरों की हालत कुछ ऐसी थी कि वो खुद अपने शरीर का भार भी नहीं उठा सकते थे. बचपन में उन्हें लोग हीन भावना से देखते थे.
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फ़ौजा सिंह के अंदर यही बात घर कर गई और उन्होंने अपने पैरों को इस तरह से मजबूत कर लिया कि वो इस उम्र में भी किसी भी युवा से ज़्यादा दूरी तक भाग सकते हैं. लेकिन 1947 के बंटवारे के बाद उनकी ज़िंदगी में काफ़ी बदलाव आया.
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फ़ौजा सिंह की तीन बेटियां और तीन बेटे हैं. जो लंदन शिफ़्ट हो गए थे. 1994 में जब फ़ौजा सिंह की उम्र 83 साल की थी, उन्होंने ने भी अपने बेटे के पास शिफ़्ट होने का निर्णय लिया. साल 2000 में उन्होंने लंदन मैराथन के बारे सुना और उन्हें अपने बचपन के दिन याद आ गए. तब तक 89 साल के हो चुके फ़ौजा सिंह ने इस मैराथन में भाग लेने के बारे में सोचा. लेकिन उनके कोच ने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया. लेकिन उन्होंने 26 मील, 6 घंटे 54 मिनट दौड़ने के बाद पूरी दुनिया ने देखा कि किसी तरह से 89 साल का बुज़ुर्ग भी मैराथन में दौड़ सकता है.
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फिर तो ये सिलसिला चलता ही रहा और साल 2011 में फ़ौजा सिंह दुनिया के इकलौते शख़्स बन गए, जिसने 100 साल की उम्र में मैराथन में भाग लिया हो. पेटा और Adidas जैसे Brands के Brand Ambassador भी रह चुके हैं फ़ौजा सिंह.
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साल 2004 और 2012 के ओलम्पिक में उन्हें मशाल ले कर भागने का भी मौका मिला. लेकिन 1911 में जन्में फ़ौजा सिंह का नाम कभी गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नहीं आया क्योंकि उनके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं था. इसके बावजूद दुनिया उन्हें आदर्श मानती है. अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने जो कर दिखाया, वो सच में काबिले तारीफ़ है.
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फ़ौजा सिंह की पूरी कहानी को बयां कर रही है खुसवंत सिंह की किताब ‘Turbaned Tornado’. इस किताब में उनकी ज़िंदगी के कई अनछुए पहलू भी हैं.