किसी ज़रूरतमंद की मदद के लिए अमीर होना ज़रूरी नहीं है, बल्कि दिल से अमीर होना ज़्यादा ज़रूरी है. कम पैसों में भी आप किसी ग़रीब मदद कर सकते हैं. किसी भूखे को खाना खिला सकते हैं. लेकिन कर्नाटक में इन दो भाईयों ने दिहाड़ी मज़दूरों की मदद के लिए कुछ ऐसा किया जो काबिल-ए-तारीफ़ है.

दरअसल, कर्नाटक के कोलार निवासी तजमुल और मुज़मिल पाशा ने लॉकडाउन के चलते भूख से बेहाल दिहाड़ी मज़दूरों की मदद के लिए 25 लाख रुपये में अपनी पुश्तैनी ज़मीन बेच दी. इन पैसों से ये दोनों भाई अपने इलाके के ग़रीब और ज़रूरतमंदों की मदद कर रहे हैं.

देशभर में जिस दिन से लॉकडाउन लागू हुआ है तजामुल और मुज़ामिल दिन रात एक करके ज़रूरतमंदों की मदद में लगे हुए हैं. ज़मीन बेच जो पैसे मिले हैं उनसे ये दोनों भाई दिहाड़ी मज़दूरों को राशन और ज़रूरी सामान मुहैया करा रहे हैं.

तजामुल और मुज़ामिल पाशा अब तक 2800 परिवारों के 12000 लोगों तक राशन पहुंचा चुके हैं. इसके साथ ही 2000 से अधिक लोगों को पका हुआ भोजन वितरित कर चुके हैं.

लॉकडाउन के दौरान पाशा भाइयों के साथ 20 अन्य स्वयंसेवकों भी उनके साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इस दौरान ये लोग प्रतिदिन थोक में किराने का सामान ख़रीदकर उसके पैकेट बनाते हैं और उसे ग़रीबों के घर पहुंचाते हैं. एक राशन के पैकेट में 10 किलो चावल, 1 किलो आटा, 2 किलो गेहूं, 1 किलो चीनी, तेल, चाय पाउडर और मसाला पाउडर होता है. साथ में हैंड सैनिटाइज़र की एक बोतल और फ़ेस मास्क भी देते हैं.

इतना ही नहीं तजामुल और मुज़ामिल प्रतिदिन अपने घर के पास एक बड़ा सा टेंट लगाकर वहां पर बड़ी मात्रा में खाना बनाते हैं. इसके बाद जो लोग अपने घरों में खाना पकाने में असमर्थ होते है उन्हें ये भोजन वितरित करते हैं. ये दोनों चाहते हैं कि वो ग़रीबों को तीनों टाइम का भोजन उपलब्ध करा पायें.

इस दौरान पुलिस द्वारा उनके सभी स्वयंसेवकों के लिए पास जारी किए गए हैं, ताकि वो अपनी बाइक पर आवश्यक सामान वितरित कर सकें.

Deccan Herald से बातचीत में तजामुल पाशा का कहना था-

हमें मालूम है कि कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए सोशल डिस्टेंसिंग ही एकमात्र उपाय है. लेकिन ऐसे में दिहाड़ी मज़दूरों के लिए जीवन यापन करना बेहद मुश्किल हो रहा है. काम न मिलने से उनके सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है. ऐसे में वो अपने घरों के अंदर सुरक्षित रहें, इसलिए हम ख़ुद उनके घर जाकर उन्हें किराने का सामान और भोजन पहुंचा रहे हैं
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मुश्किलों में बीता है बचपन 

तजामुल और मुज़ामिल दोनों बचपन में ही अनाथ हो गए थे. जिसके बाद वो अपनी दादी के साथ कोलार चले गए. इस दौरान गौरीपेट इलाके के हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों ने मिलकर उन्हें एक मस्जिद के पास रहने को घर दिया. इस दौरान इलाके के लोग ही उन्हें भोजन दिया करते थे और इस बार मानवता की पुकार में शामिल होने की बारी थी।

परिवार की माली हालत ठीक न होने के चलते तजामुल और मुज़ामिल ने परिवार का पालन पोषण के लिए चौथी कक्षा के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ दी. इसके बाद दोनों भाई बेहद कम उम्र में ही काम करने लगे थे. कड़ी मेहनत और लगन के दम पर आज ये दोनों भाई हज़ारों लोगों की मदद कर रहे हैं.