प्रतिभाएं किसी पब्लिक स्कूल या महंगे कॉलेज की मोहताज नहीं होतीं. इंसान की विकट परिस्थितियां भी उसे कभी-कभी इतना मज़बूत बना देती हैं कि वो खुद को तपाकर सोना बना लेता है. आपको पता होगा कि अभी दो दिन पहले भारत ने अन्तरिक्ष में एक साथ 104 सैटेलाइट भेज कर नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया. इसके लिए हमने ISRO की पूरी टीम को ढेर सारी शुभकामनाएं दीं. ISRO के इस प्रोजेक्ट का हिस्सा दो ऐसे युवा भी थे, जिनमें से एक किराना दुकान संभालता था, तो दूसरा अपने पिता की हत्या से टूट चुका था.

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ISRO द्वारा अन्तरिक्ष में भेजी गयीं 104 सैटेलाइट्स में मात्र 3 ही भारत के थे, बाकि 101 इज़रायल, कज़ाकिस्तान, नीदरलैंड, स्विट्ज़रलैंड और अमेरिका के थे. अब आपको बताते हैं इन दो युवाओं के बारे में, जिनके नाम अमन वहीद खान और विकास अग्रवाल हैं. अमन के पिता छत्तीसगढ़ पुलिस में सब-इंस्पेक्टर थे और 2009 में बस्तर में हुए माओवादी मुठभेड़ में शहीद हो गए थे. इस समय अमन 12वीं में पढ़ रहे थे.

मेरे पति की अपने SP से अनबन हो गई थी, तब उन्होंने पूछा कि क्या करें कि मेरे बच्चों को देख कर SP भी खड़े हो जायें और उनसे हाथ मिलाएं. फिर किसी ने कहा कि बच्चे को IIT भेज दो पढ़ाई के लिए. फिर हमने अमन को भेज दिया हैदराबाद. मरने के कुछ दिन जब पहले जब वो मिलने आये थे, तभी उन्होंने कहा था कि बच्चों को खूब पढ़ाना. IIT से निकलने के बाद उसे कई कम्पनीज़ के ऑफर मिले, पर उसे देश के लिए कुछ बड़ा करना था, इसलिए उसने ISRO जॉइन किया. – हीना यासमीन, अमन वहीद खान की मां

विकास के पिता उन्हें आगे पढ़ाना नहीं चाहते थे और उनका कहना था कि विकास अपनी पढ़ाई यहीं रोक दे और पारिवारिक व्यवसाय में उनका हाथ बटाये. उनके पिता की कोरबा में किराने की दुकान थी. पिता की ज़िद की वजह से विकास IIT की परीक्षा नहीं दे पाए. लेकिन पिछले साल 16 फरवरी को हुई ISRO की परीक्षा पास कर ली. इसके बाद विकास ने अपने सपने को जीना शुरू कर दिया. अमन फ़िलहाल इसरो में मौसम विज्ञानी हैं और विकास अग्रवाल रॉकेट के उस पुर्ज़े की देखभाल करते हैं, जिसे Hot Shield कहा जाता है. दोनों का इस मिशन में बड़ा योगदान था.

विकास की कहानी थोड़ी अलग है, क्योंकि उनके पिता उन्हें बी.कॉम करवाना चाहते थे. विकास ने स्कूल से लेकर कॉलेज तक, हर जगह टॉप किया और पापा को आगे पढ़ाई करने की अनुमति देने के लिए कहा. उनकी मम्मी ने कहा कि उसे IIT जाना चाहिए. मगर जब उन्हें वहां नहीं जाने दिया गया, तब उन्होंने कोरबा के किसी कॉलेज से ही मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर ली और ISRO की चयन परीक्षा पास कर ली. फिर क्या था, विकास ने दुकान पर बैठे-बैठे पा लिया अपने सपने को.

आज इन दोनों युवाओं पर बस छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरा देश नाज़ कर रहा है. दोनों के घर बधाइयों का तांता लगा हुआ है.