दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल.
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जश्न मनाते हुए हम अकसर इस गीत को सुनते आए हैं. ये राष्ट्रपिता गांधी जी को सम्मान देने का हमारा तरीका है. भारत को आज़ाद कराने में उनके योगदान के लिए देश सदैव आभारी रहेगा, लेकिन आज़ादी का जश्न चंद गिने-चुने नाम को याद करने के बाद ख़त्म हो जाता है. यहां हम स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहूती देने वाले गुमनाम सिपाहियों को भूल जाते हैं.
जिस स्वतंत्रता संग्राम में लाखों सैनानियों ने कुर्बानियां दी हों, उसमें चंद नाम याद रखना उनके बलिदान का अपमान होगा. इस लड़ाई में अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले कुछ ऐसे नाम, जिन्हें याद रखना हमारी ज़िम्मेदारी है.
अल्लूरी सीताराम राजू- विशाखापटनम
वनवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अल्लूरी सीताराम राजू गोरिल्ला युद्ध में माहिर थे. उन्होंने अंग्रेज़ी सत्ता को जंगल से ही चुनौती दी थी. आंध्र प्रदेश और केरल की पुलिस उनके पीछे पड़ी थी, लेकिन वो कभी अल्लूरी को पकड़ नहीं पाई. अपने कई साथियों के मारे जाने के बाद जब वो अकेले पड़ गए, तो एक अंग्रेज़ी अफ़सर ने उन्हें पीछे से गोली मार कर उनकी हत्या कर दी.
श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’- कानपुर
‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा..’ इस गाने के रचयिता थे महान स्वंतत्रता सेनानी श्यमलाल गुप्त ‘पार्षद’. शिक्षक और समाज सुधारक श्यामलाल जी ने नमक आंदोलन, भारत छोड़ो और असहयोग आंदोलन में सक्रीय भूमिका निभाई थी. उन्हें 1973 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.
रानी गाइदिनल्यू- मणिपुर
अंग्रेज़ों के ख़िलाफ बगावत करने वाली रानी गाइदिनल्यू एक नागा अध्यात्मिक और राजनीतिक नेता थीं. वो ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ छापामार दल ‘हरेका’ की लीडर थीं, जो अंग्रेज़ों की दमनकारी नीतियों का खुलकर विरोध करता था. 1982 में इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था.
मुनिदेव त्यागी-अमरोहा
अमरोहा के मुनिदेव त्यागी ने भी ब्रिटिश सेना को जमकर छकाया. वो और उनके साथी गांव-गांव जाकर लोगों को अंग्रज़ी हुकुमत के ख़िलाफ खड़ा होने के लिए तैयार करते थे. इन क्रांतिकारियों का दल अंग्रेज़ों पर हमला करता था और बाद में गंगा पार कर दूसरे ज़िलों में छिप जाता था.
रानी चेन्नम्मा- कित्तूर
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा का नाम भी गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में दर्ज है. इन्होंने रानी लक्ष्मीबाई से पहले अंग्रेज़ी हुकूमत को सशस्त्र चुनौती दी थी. कहते हैं एक बार रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश सैनिकों को अपने प्राणों की भीख मांगने पर मजबूर कर दिया था.
मदनलाल ढींगरा- पंजाब
एक मध्यमवर्गीय फ़ैमिली से ताल्लुक रखने वाले पंजाब के मदनलाल ढींगरा ने अाज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी. इन्होंने एक ब्रिटिश अफ़सर विलियम हट कर्ज़न की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई.
कनकलता बरुआ- असम
कनकलता बरुआ वो वीरांगना थीं, जिन्होंने मात्र 18 साल की ही उम्र में तिरंगे की ख़ातिर सीने पर गोली खाई थी. 20 सितंबर 1942 में हुई क्रांतिकारियों की मीटिंग में तेजपुर थाने पर तिरंगा फैलाने का फै़सला किया गया था. इसी दल का नेतृत्व करते हुए इन्होंने अपनी शहादत दी थी.
बटुकेश्वर दत्त- नानी बैदवान(पश्चिम बंगाल)
बटुकेश्वर दत्त स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले, पहला देसी बम बनाने वाले और कालापानी की सज़ा पाने वाले महान क्रांतिकारी थे. 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय विधानसभा में हुए बम विस्फोट के वक़्त भगत सिंह के साथ गिरफ़्तारी देने वालों में से एक वो भी एक थे.
स्वतंत्रता संग्राम के इन गुमनाम सिपाहियों को शत्-शत् नमन!