क्या भगवान कभी कुछ गलत नहीं करते और अगर करते भी हैं, तो कोई उन्हें सजा कैसे दे सकता है? पर इस गांव के लोग काफ़ी हद तक ऐसा कर रहे हैं. पौराणिक कथाओं का आजकल की ज़िंदगी से कोई लेना-देना है, इसका मैंने पहला किस्सा देखा है. आपको रामायण की वो कहानी तो याद ही होगी, जिसमें लक्ष्मण को जब बाण लग गया था और वो मूर्छित हो गये थे, तो उन्हें ठीक करने के लिए हनुमान संजीवनी पर्वत उखाड़ लाए थे. कहानी वहीं से शुरू होती है. जहां वो पर्वत विराजमान था, उस गांव का नाम द्रोणगिरी है और हनुमान जी के इस कृत्य से नाराज इस गांव के लोगों ने उनकी पूजा करनी छोड़ दी है. साथ ही गांव के किसी भी मंदिर में हनुमान जी को जगह नहीं दी गयी है.
संजीवनी बूटी के लिए हनुमान ने जिस द्रोणगिरी पर्वत की दाहिनी भूजा उखाड़ कर उसे खंडित कर दिया था, उसको गांव वाले बहुत ही आस्था के साथ पूजते थे. आज भी जब वहां के परंपरागत जागर महोत्सव के दौरान द्रोणगिरी पर्वत को देवप्रभात के नाम से पूजते हैं, तो देवप्रभात किसी पश्वा के शरीर में आभासित होते हैं, तो उसके शरीर का दाहिना हिस्सा काम नहीं करता. गांव वालों के अनुसार, ये प्रमाण है इस बात का कि द्रोणगिरी पर्वत का अंग आज भी भंग है. आपको बता दें कि इस गांव में रामलीला भी होती है, तो उसमें से हनुमान को अनदेखा कर दिया जाता है. रामलीला में बस तीन ही चीज़ें दिखाई जाती हैं: रामलला का जन्म, उनकी शादी और उनका राज्याभिषेक. कहा जाता है कि गांव वालों को जब इस बात की ख़बर हुई कि हनुमान संजीवनी लेने आ रहे हैं, तो उन्होंने इस पर्वत को छिपा दिया था. लेकिन हनुमान छल से ब्राह्मण का वेश धारण कर यहां तक आ पहुंचे और एक ही झटके में इसे उखाड़ लिया.
द्रोणगिरी पर्वत समुद्र की सतह से 11,800 फीट की ऊंचाई पर बसा है. छल-कपट और आधुनिकता की चकाचौंध से काफ़ी दूर बसे इस गांव तक पहुंचने के लिए जोशीमठ से जुम्माह तक लगभग 45 किलोमीटर की दूरी बस से तय करनी पड़ती है.इसके बाद आठ किलोमीटर की सीधी चढ़ाई चढ़नी होती है. सर्दियों में ये गांव बिलकुल खाली हो जाता है क्योंकि गांव के लोग निचले इलाके में लौट आते हैं. कई ग्लेशियर्स के पास बसे इस गांव के लोग जीवन-व्यापन के लिए पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर हैं.