सिविल सर्विस की परिक्षाओं की गिनती देश की सबसे कठीन प्रतियोगिता परिक्षाओं में होती है. इसको पास करने के लिए सिर्फ़ कठिन परिश्रम और लगन से काम नहीं चलता, इसके लिए कुछ ख़ास चाहिए होता है और वो ख़ास बात थी सतेंद्र सिंह में.  

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714वां रैंक हांसिल करने वाले सतेंद्र के पास आखों की रौशनी नहीं है. उत्तर प्रदेश के अमरोहा में जन्मे सतेंद्र का लालन-पालन संयुक्त परिवार में हुआ, किन्हीं वजहों से उन्हें शुरुआती दिनों में दिल्ली आ कर बसना पड़ा.  

Indiatimes से हुई उनकी बातचीत में उन्होंने अपनी कहानी सुनाई कि कैसे एक ग़लत इंजेक्शन की वजह से उनकी रौशनी चली गई.  

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सतेंद्र जन्मजात अंधे नहीं थे, डेढ़ साल की उम्र में उन्हें निमोनिया हुआ और इलाज़ के दौरान ग़लत इंजेक्शन लगाने की वजह से उनकी ऑप्टिक नर्व्स क्षतिग्रस्त हो गई. सतेंद्र बताते हैं कि इससे उनके जीवन में अंधकार फैल गया, उस दुर्घटना को भूला पाना नामुमकिन हो गया.  

सरकारी हिन्दी मिडियम स्कूल में उनकी पढ़ाई हुई, सतेंद्र ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनका नामंकन देश के प्रतिष्ठित संत कॉलेज में होगा. साल 2009 से 2012 तक उन्होंने वहां से BA Prog. की पढ़ाई की और यहां उनकी ज़िंदगी बदल सी गई.  

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सतेंद्र कॉलेज के बारे में कहते हैं कि यहां उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला. अंग्रेज़ी, एटिट्युड, सकारात्मकता, अकादमिक ज्ञान आदि ने मुझे कुछ और ही बना दिया.  

स्क्रीन रिडिंग सॉफ़्टवेयर की मदद से उन्होंने UPSC की तैयारी करनी शुरू की. पढ़ने में उन्हें ज़्यादा समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. सॉफ़्टवेयर ने उनका काम आसान कर दिया.असली समस्या थी पढ़ने के लिए मटीरियल जुटाना.  

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सतेंद्र ने UPSC का चयन ही क्यों किया, इस सवाल पर कहते हैं कि सिविल सर्विस में अलग-अलग किस्म की समस्याएं मिलती हैं, जिसे सुलझाने का अपना मज़ा है, कॉरपरेट जॉब में ऐसा नहीं है.  

सतेंद्र ने अंतराष्ट्रीय संबंधों में एम. ए की पढाई की, जे. एन. यू से की और Mphil करके PhD में दाखिला पाया. UPSC में उन्हें तीसरे कोशिश में सफ़लता मिली.  

ऐसी कहानियां आत्म विश्वास और मेहनत की प्रति हमारा भरोसा और मज़बूत कर जाती है.