कुछ महीनों पहले ‘बुद्धा इन अ ट्रैफ़िक जैम’ के निर्माता और निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने, ‘Urban Naxals: The Making of Buddha in a Traffic Jam’ किताब निकाली.

सवाल है, कौन हैं Urban Naxals?

Quora के अनुसार,

‘पढ़े-लिखे, अच्छी नौकरी और आय वाले, अच्छी जीवनशैली वाले लोग जो नक्सली और माओवादियों के समर्थक हैं, Urban नक्सली कहलाते हैं.’ 

ABP Asmita

मंगलवार को Urban Naxals को लेकर ही विवेक अग्निहोत्री ने ये ट्वीट कर डाला:

‘मैं चाहता हूं कि देश के कुछ Intelligent युवा ऐसे लोगों की सूची बनाए जो #UrbanNaxals का पक्ष ले रहे हैं. देखते हैं ये पहल कहां तक जाती है. अगर आप इसके लिए सच्चे मन से तत्पर हैं तो मुझे Message कीजिए.’

फिर क्या था ट्विटर वालों ने न सिर्फ़ विवेक का साथ दिया, बल्कि अपने जवाबों से बिना साबुन-पानी के धो डाला:

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भीमा-कोरेगांव हिंसा भड़काने और पाबंदित सीपीआई(एम) से जुड़े होने के इल्ज़ाम में सुप्रीम कोर्ट ने 5 मानवाधिकार कार्यकर्ता और वक़ीलों को नज़रबंद करने का आदेश दिया है. 

हर बुद्धीजीवी नक्सल समर्थक हो, ये ज़रूरी नहीं और घर पर अंबेडकर की मूर्ति लगाना या माओ या मार्क्स से जुड़ी किताब रखना, इस देश में ग़ैरक़ानूनी नहीं फिर इस तरह की पुलिस कार्रवाई का क्या मतलब है? जो देश का अहित चाहते हैं उन पर कार्रवाई ज़रूर होनी चाहिए, लेकिन देश का हर प्रोफ़ेसर माओवादी समर्थक है, ये कैसे तय कर लिया गया?

इस पूरे मामले पर आप क्या सोचते हैं, ये हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं.